बाद में गूगल से श्री ट्यूनिक के बारे में खौज की तो मालूम चला कि श्रीमान जी इस तरह के निर्वस्त्र अमूर्त कला तस्वीरों, यानि इतने शरीर साथ हो कि बजाय एक व्यक्ति की नग्नता देखने के सारे शरीर मिल कर अमूर्त कला बनायें, के लिए प्रसिद्ध हैं और इस तरह के प्रयोग न्यू योर्क के रेलवे स्टेशन, वेनेसूएला में काराकास शहर, इंग्लैंड में न्यू केस्ल के मिलेनियम ब्रिज और अन्य बहुत सी जगह पर कर चुके हैं. जो लोग इन तस्वीरों में भाग लेते हैं वह निशुल्क काम करते हैं, शुल्क के तौर पर बस उन्हें अपनी एक तस्वीर मिलती है. प्रस्तुत हैं ट्यूनिक जी की अमूर्त कला के कुछ नमूने.
सोचये कि अगर ट्यूनिक जी भारत में अगली तस्वीर खींवना चाहें तो क्या उसमें भाग लेना पसंद करेंगे? वैसे तो भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाले उन्हें ऐसा कुछ करने से पहले इतने दँगे करेंगे तो ट्यूनिक जी तस्वीर लेना ही भूल जायेंगे. पर मान लीजिये कि वह किसी तरह से इस काम में सफ़ल हो भी जायें तो क्या उन्हें भारत में इतने लोग मिलेंगे, स्त्रियाँ और पुरुष जो इस तरह की तस्वीरें खुली जन स्थलों पर खिंचवा सकें? मुझे तो शक है, क्योकि मुझे लगता हैं हम लोग अपने शरीरों के बारे में इतनी ग्रथियों में बँधे हैं कि शरीर को परदों से बाहर लाने का सुन कर घबरा जाते हैं. भारत में बस नागा साधू ही हैं जो यह कर सकते हें.
आप सोचेंगे कि हमसे पूछ रहा है, क्या इसमें स्वयं इतनी हिम्मत होगी? मेरा विचार है कि हाँ, मुझे इस तरह निर्वस्त्र तस्वीर खिचवाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. शरीर तो केवल शरीर ही है, सबके पास जैसा है, वैसा ही, न कम न अधिक. क्या कहते हैं आप, यह सच बोल रहा हूँ या खाली पीली डींग मारने वाली बात है?
शायद यह खाली पीली डींग ही है कि क्योंकि दस साल पहले तक कोई पूछता तो मुझे शक न होता कि निर्वस्त्र तस्वीर खिंचवाने में हिचकिचाहट न होती पर आज मुझे लगता है कि शरीर बूढ़ा हो रहा है, पेट निकला है, बाल सफ़ेद हैं तो अधिक झिकझिकाहट सी होती है. यह आधुनिक समाज का ही प्रभाव है कि दुनिया में केवल सुंदर शरीर ही होने चाहिये, ऐसा लगने लगता है और अगर आप मोटे, छोटे, दुबले, बूढ़े हों तो यह समाज आप को अपने शरीर से शर्म करना सिखा देता है.