अंतरजाल, यानि इंटरनैट पर तो बहुत अच्छा लग रहा था. पर सच्चाई अंतरजाल मे दिखाये गये सच से बिल्कुल भिन्न थी. वह होटल हमारी मीटिंग के लिये उपयुक्त नहीं था. इतनी दूर आ कर मायूसी. फ़िर वापस बोलोनिया आने के लिये, उतनी ही लम्बी यात्रा और पूरे रास्ते पछता रहा था कि यूँ ही सारा दिन बेकार किया. अब कोई अन्य जगह ढूँढनी पड़ेगी.
अंतरजाल का कमाल, गधे को दिखाया घोड़े की चाल. नई कहावत है यह मेरी. सोचता हूँ, कैसे लोग ईबे (ebay) जैसी जगह से चीज़े खरीद लेते हैं, क्या उन्हें भी ऐसे लोग धोखा दे सकते हैं ?
फ़िर सोचा, आज के भूमंडलीकरण और अंतरजाल की दुनिया मे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिये, क्या नयी कहावतें बन रही हैं या बन सकती हैं ?
आज की कविता मे हैं, विदिशा की सुश्री अमिता प्रजापति की कविता "मत हो उदास" की कुछ पंक्तियाँ
ओ नीलू मत हो निराश
कि चूक हुई है
हमारी पुरखिन मांओ से
नहीं बना पायीं वे ऐसे पुरुष
कि घुल सकें, बह सकें
हवाओं मे हल्के हो कर
ये हमारे पुरखे पिता
जो कसे हुए घोड़ों की तरह
अपनी टापें हमारी छाती पर रखा करते थे
भाई, पिता, प्रेमी और पति बन कर
और आज की तस्वीर है, दक्षिण भारत में भालकी के पास एक गाँव से
भालकी
जवाब देंहटाएंकौना सा राज्य, जिला?
भालकी उत्तरी कर्नाटक के बिदार जिले में है. नजदीकी हवाई अड्डा है हैदराबाद.
जवाब देंहटाएं