कुछ लोग कहते हैं कि मान लिया कि समलैंगिक लोग भी हैं, उनके अधिकार भी हैं पर वह चुपचाप अपने आप में क्यों नहीं रहते, उनका इस तरह सड़क पर "गर्व परेड" करने का क्या अर्थ है? यानि अगर रहना ही है तो चुपचाप रहिये, शोर नहीं मचाईये, न ही सबके सामने उछालिये कि आप विभिन्न हैं, कोई आप को कुछ नहीं कहेगा. पर यह सच नहीं है. समाज में बहुत भेदभाव है, जब तक दब कर, चुप रह कर, छुप कर रहो, वह भेदभाव सामान्य माना जाता है, उससे लड़ना संभव नहीं होता. अगर मिलिटरी वाले परेड कर सकते हैं, पुलिस, स्काऊट, सर्कस वाले, कलाकार, विभिन्न श्रेणियों के लोग सबके सामने प्रदर्शन करते हैं, अपनी बात रखते हैं तो समलैंगिक लोगों को यह अधिकार क्यों न हो. बल्कि मैं मानता हूँ कि समलैंगिक गुटों की तरह अन्य अम्पसंख्यक और समाज से दबे सभी गुटों को यह अधिकार होना चाहिये जैसे प्रवासी, विकलाँग, अन्य धर्मों को लोग, इत्यादि.
यह बहस सिर्फ इटली में ही नहीं हो रही. पूर्वी यूरोप के बहुत से देश जो कई दशकों के बाद सोवियत प्रभाव और कम्युनिस्म से बाहर निकले हैं, वहाँ भी यही बहस चल रही हैं और कई देशों में इस तरह के प्रदर्शनों को सख्ती से दबाया जा रहा है. वहाँ यह भी कहा जा रहा है कि "यह समलैंगिकता हमारी सभ्यता में ही नहीं है, यह तो केवल यूरोप की गिरी हुई सभ्यता के सम्पर्क में आने से हो रहा है कि हमारे यहाँ भी इस तरह की बीमारियाँ फ़ैलने लगी हैं.". उनका मानना है कि इस छूत की बीमारी है जो उसके बारे में बात करने से फ़ैलती है. इन वर्षों में रूस, पोलैंड, लेटोनिया, लिथुआनिया जैसे देशों में समलैंगिक गर्व परेड में भाग लेने वालों पर हमले किये गये, कभी पुलिस ने मारा, तो कभी राष्ट्रवादी कट्टरपंथियों ने और पुलिस चुपचाप देखती रही.
बहुत देशों में समलैंगिक सम्पर्क को कानूनन अपराध माना जाता है जैसे कि भारत में, जहाँ कुछ समय से यह कानून बदलने के लिए अभियान चल रहा है. इटली में यह कानून 1887 में हटा दिया गया था और 2003 में नया कानून बना जिससे उनके साथ काम के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जा सकता, पर आज भी इटली में मिलेटरी तथा पुलिस में समलैंगिक लोगों को जगह नहीं मिलती. कुछ दिन पहले ब्रिटेन ने नया कानून बना कर मिलेटरी तथा पुलिस में समलैंगिक लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त किया है. पोलैंड में यह कानून 1932 में बदला गया, रूस में 1993 में, पर दोनो जगह कानून सही होते हुए भी भेदभाव बहुत है.
अमरीकी रंगभेद से लड़ने वाले अश्वेत लोगों ने संघर्ष का यह तरीका बनाया था कि जिस कारण से भेदभाव होता है उसी को गर्व का विषय बना दो. इस तरह काले-गर्व यानि Black Pride की बात उठी थी. विकलाँग लोगों ने भी, क्रिपल (cripple) जैसे शब्दों को ले कर उन्हें गर्व के शब्द बनाने की कोशिश की है. समलैंगिक गर्व परेड की कहानी 28 जून 1968 में न्यू योर्क के स्टोनवाल बार इन्न (Stonewall Bar Inn) पर पुलिस से हुई लड़ाई से प्रारम्भ हुई थी.
मैं सोचता हूँ हर तरह का भेदभाव चाहे वह हमारे रंग से हो, हमारी यौन प्रवृति से, हमारे शरीर के विकलाँग होने से, या हमारे धर्म से, या सोचने की वजह से, सब भेदभाव मानवता को कमजोर करते हैं और हम सबको मिल कर उनका विरोध करना चाहिये.
आज की तस्वीरों में बोलोनिया की पिछले वर्ष की समलैंगिक गर्व परेड.
इस जरूरी सूचना के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंलेख विचारोत्तेजक है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी ।अपके विछार पढ्कर अच्छा लगा । समलैन्गिक मार्जिनल अस्मिताएं है जिन्हे पहचानने से लगातार इन्कार किया जा रहा है ।
जवाब देंहटाएंजरूरी किस्म की साहसी पोस्ट है-
जवाब देंहटाएंसमलैंगिकों के प्रति सहजता और सामान्यता का भाव रखता हूँ, यह कहूँ तो झूठ होगा...इतना जरूर है कि अब ये जानता जरूर हूँ कि दिल में जो लिजलिजाहट इस विचार से उपजती है उसका स्रोत उनमें नहीं वरन खुद हममें ही होता है। 'सेल्फ' व 'अदर' की अपनी निर्मिति में।