यहाँ लोग साईकल वालों की तरफ़ बहुत सावधान रहते हैं और अधिकतर कार वाले उनका हाथ उठा देखते हैं तो रुक कर या धीमा करके उन्हें सामने मुड़ना या सड़क पार करने देते हैं. जिस रास्ते से मैं घर आता हूँ उस पर बहुत साईकल चलाने वाले नहीं होते, कोई इक्का दुक्का ही होता है.
खैर यह सारी कहानी यह कहने के लिए सुनाई कि कल शाम को साईकल से घर वापस आ रहा तो जाने क्यों मन में एक पुराना गाना आया. गाना था फिल्म "ज्योती" से जिसमें अभिनेता थे संजीव कुमार और निवेदिता, और उनके बेटे का भाग निभाया था उस समय की बाल अभिनेत्री सारिका ने. मेरा ख्याल है कि यह फिल्म रंगीन नहीं श्वेत+श्याम थी, पर यह भी हो सकता है कि क्योंकि फिल्म पुराने रंगहीन टेलीविज़न पर देखी थी, इसलिए ऐसा सोचता हूँ. फिल्म का विषय था भगवान पर से विश्वास या अविश्वास.
अच्छा यादाश्त भी अजीब चीज़ है. जाने कौन से दिमाग के तंतु जुड़ गये अचानक, शायद साईकल को कोई झटका लगा हो जिससे यह हुआ हो, पर ३५ साल पहले की इस फिल्म की इतनी बातें अचानक इतनी साफ़ याद आ गयीं जबकि पूछिये कि रात को सोने से पहले चश्मा कहाँ रखा तो याद नहीं आता.
जो गाना याद आया, उसके शब्द थेः
पुरुष स्वरःबात आनेवाले बच्चे की हो रही है और चाँद का निकलने का अर्थ है बच्चे का पैदा होना. माँ का यह सोचना कि बच्चे के पैदा होने के बाद सब बच्चे को ही देखेंगे, माँ की ओर कोई नहीं देखेगा पर माँ इसी में खुश है, बहुत अच्छा लगा.
"अभी चाँद निकल आयेगा
झिलमिल चमकेंगे तारे
देखके यह गगन
झूँमें"
स्त्री स्वरः
"चाँद जब निकल आयेगा
देखेगा न कोई गगन को
चाँद को
ही देखेगें सारे
सोचके यह गगन झूँमें"
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आज की तस्वीरों का विषय है बच्चे. सभी तस्वीरें नेपाल से हैं.