कोई आप से पूछे कि विक्रम सँवत के अनुसार यह कौन सा सन है या कौन सा महीना है, तो क्या आप बता पायेंगे ? शायद भारत में आज विक्रम सँवत की जानकारी या तो पँडितों को होगी या गाँव में रहने वाले लोगों को, अतरजाल पर घूमने वालों को इसके बारे में मालूम होगा, मुझे नहीं लगता.
पर भारतीय विक्रम सँवत नेपाल में आज भी खुली हवा में सिर ऊँचा कर के जी रहा है. इसके हिसाब से यह सन है 2062 और यह महीना है फागुन. फागुन के अंतिम दिन, बुधवार को होली है.
चैत, वेशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादों जैसे विक्रम सँवत के महीनों के नाम हमारे लोक गीतों और पुरानी फिल्मों के गानों में कभी कभी सुनाई दे जाते हैं, पर किसी को उनका अर्थ शायद ही समझ आता हो.
प्रचलित इसाई कैलेण्डर से 62 साल अधिक पुराना विक्रम सँवत किसने बनाया और क्यों, मुझे ठीक से मालूम नहीं. विक्रमादित्य बड़े सम्राट थे भारत के, उज्जेन में रहते थे यही मालूम है और बचपन में चंदा मामा में पढ़ी विक्रम और बेताल की कहानियाँ कुछ याद हैं और कौन थे विक्रमादित्य, क्या किया उन्होंने कि उन्हें भारतीय जनता ने इतना सम्मान दिया, यह नहीं मालूम. उनके मुकाबले में उनसे 400 साल पहले के बुद्ध और अशोक के बारे में अधिक जानकारी मिल जाती है.
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बहुत दिनों से नया फोटो ब्लोग बनाने की इच्छा थी, जिसमें लिखना कम पड़े बस फोटो चिपका देने से ही काम हो जाये. आखिरकार, कल यह इच्छा भी पूरी हो गयी. मेरे नये फोटो ब्लोग का नाम है छायाचित्रकार, जो अधिकतर अँग्रेजी में होगा पर कुछ कुछ हिंदी में भी.
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कल शायद हिंदी के दैनिक जनसत्ता में देवाषीश का चिट्ठा जगत के बारे में एक लेख छपा है. मुझे मालूम तब चला जब दिल्ली से छोटी बहन का टेलीफोन आया, बोली, "तुम्हारे हिंदी के ब्लोग का क्या नाम है ?" मैंने जब बताया तो वह खुशी से बोली, "वाह, तुम्हारे ब्लोग के बारे में तो अखबार में निकला है! किसी देवाषीश का लेख है और हिंदी में अच्छा लिखने वालो में से तुम्हारा नाम भी है."
धन्यवाद देवाषीश. मैंने तो कितनी बार बताया सब को मैं हिंदी में लिख रहा हूँ पर उसका उतना असर नहीं हुआ जितना तुम्हारे लेख का हुआ. शायद हम अंतरजाल पर घूमने वालों को अखबार का महत्व न ठीक समझ में आता हो पर बहुत से लोगों के लिए जब कोई बात अखबार में निकलती है तभी उसका महत्व बनता है!
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आज जो तस्वीरें पिछले वर्ष के बोलोनिया के ग्रीष्म ऋतु फैस्टीवल से.
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विक्रम सम्वत् के बारे में विद्वानों में काफ़ी मतभेद हैं। कुछ का कहना है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को परास्त कर के विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और विक्रम सम्वत् शुरू किया। हाँलाकि सभी प्राचीन साक्ष्य यह इंगित करते हैं कि शकों पर विजय की घटना ७८ ई. की है, जबकि विक्रम सम्वत् ५७ ई.पू. आरम्भ हुआ था। दरअसल विक्रमादित्य एक उपाधि थी और समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त और पुरुगुप्त आदि कई राजाओं ने इसे धारण किया था। इतिहासकार 57 ई.पू. के आस-पास किसी भी विक्रमादित्य को नहीं खोज पाए हैं। इसलिये यह रहस्य है कि विक्रम सम्वत् किसने और क्यों चालू किया, और यह इतना प्रसिद्ध कैसे हो गया?
जवाब देंहटाएंARRE WAH!!!!AB SELF-DOUBT KE LIYE KOI JAGAH NAHIN HONI CHAHIYE.LIKHTE RAHO!!!!PADHNA BAHUT ACHCHA LAGTA HAI.
जवाब देंहटाएंMere khayal se vikramaditya upaadhi to thi hi lekin shayad saath me ek isi naam ka raaja bhi tha.
जवाब देंहटाएंSunil ji books ki detail dene ka shukriya
विक्रमी संवत की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। हम कश्मीरियों में भी इस संवत का बहुत महत्व है -- हम अपने जन्मदिन एवं अन्य वार्षिकियाँ इसी के हिसाब से मनाते हैं। यह इसाई कैलेण्डर से 57 साल पुराना है -- पिछले वर्ष लिखी मेरी यह प्रविष्टि पढ़ें। और यह भी देखें।
जवाब देंहटाएंदेबाशीष, जरा हम लोगों को भी दिखायें लेख की कतरन!
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मैंने पढ़ा है, गुप्त साम्राज्यकाल में, जिसे भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है(क्योंकि प्रचलित है कि उन दिनों समाज और आम जनता इतनी प्रगतिशील और संतुष्ट थी कि राजमार्ग पर यदि कोई स्वर्ण मुद्रा भी पड़ी मिल जाती तो कोई उसे न उठाता था), उसके प्रथम राजा चन्द्रगुप्त प्रथम थे। उनके पुत्र समुद्रगुप्त के पश्चात चन्द्रगुप्त द्वितीय ने राज संभाला जिन्हें विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता था और लोक कथाओं आदि में जिस विक्रमादित्य की चर्चा होती है, वे यही थे।
जवाब देंहटाएंजनसत्ता पर लेख की कतरन तो अब सुनील जी ही उपलब्ध करा सकते हैं. अपने देबाशीष का कहना है कि उन्होंने जनसत्ता में नहीं लिखा, और संभवत: लिखने वाले कोई और देबाशीष हैं.
जवाब देंहटाएंसुनील जी, अगर संभव हो तो दिल्ली में बहन जी से कहें कि वे उस खबर का चित्र या स्कैन इंटरनेट पर कहीं डालें.
वैसे भी, जनसत्ता एक बढ़िया अखबार है - प्रभाष जोशी के क्रिकेट पर लेख अब भी बहुत पसंद किए जाते हैं.
रवि
जनसत्ता का लेख
जवाब देंहटाएंरवि जी, क्योंकि छोटी बहन के यहाँ जनसत्ता ही आता है इसलिए मेरा विचार है कि वह लेख जनसत्ता में ही निकला होगा. पर इतना तो पक्का है कि जहाँ भी छपा हो वह लेख अपने जाने पहचाने देवाषीश का ही है, कितने देवाषीश चैटर्जी हो सकते हैं जो हिंदी चिट्ठों पर लेख लिख सकते हैं और उनमें से अनूप के फुरसतिया और मेरे चिट्ठे के बारे में कह सकते हैं ?
खैर मैं अपनी बहन से पूछूँगा. पिछले सप्ताह लंदन काम से गया था इसलिए उत्तर देने में कुछ देर हो गयी!
सुनील