शनिवार, नवंबर 12, 2005

शरीर की लज्जा

मैं अपने डेनिश मित्र ओटो के साथ मिस्र में अलेक्सांद्रिया में था. दिन भर काम के बाद समुद्र के किनारे घूम रहे थे और वह एक व्यक्तिगत अनुभव बता रहा था.

बोला, "तब मैं कोपेनहेगन में अपने पिता वाले घर में रहता था. एक रात को मैं देर से घर वापस आया, साथ में मेरी एक सहेली थी. रात को उसे बाथरुम जाना पड़ा और वह निर्वस्त्र ही चली गयी. संजोग से मेरे पिता भी उसी समय बाथरुम से वापस आ रहे थे और उन्होंने भी कुछ कपड़े नहीं पहने थे. जब उन्होंने मेरी सहेली को देखा तो दोनो एक क्षण के लिए घबरा गये, फिर मेरे पिता ने कहा, "शुभ रात्री मैडम" और अपने कमरे में चले गये."

सुन कर मैं बहुत हँसा पर अंदर ही अंदर सोच रहा था, हमारे यहाँ तो ससुर और जेठ के सामने घूँघट और भी लम्बा कर देते हैं, क्या ऐसा कभी हमारे यहाँ भी हो सकता है?

अतुल के प्रश्न कि क्या मैंने कल की झील वाली तस्वीर छुप कर खींची थी पढ़ कर मुझे यह बात याद आ गयी. नहीं तस्वीर छुप कर खींचने की जरुरत नहीं है, समुद्र तट पर या झील के पास, गरमियों में सभी ऐसे ही कपड़े पहनते हैं, मैं भी पहने था जब तस्वीर खींची थी. शायद यूरोप कुछ बातों में अमरीका से कम रुढ़िवादी है, जैसे शरीर की लज्जा के बारे में?

गरमियों में हमारे घर के पीछे जो बाग है वहाँ बहुत से लोग बिकिनी या जाँघिया पहन कर दिन में धूप लेते हैं, पर मेरे फोटो खींचने पर कभी किसी ने कुछ नहीं कहा. फोटो खींचते समय किसी ने मुझे गुस्से से देखा हो, ऐसा एक दो बार हुआ है, जब मैंने बुरका पहने हुए किसी स्त्री की फोटो खींचने की कोशिश की है. उनके साथ चल रहे आदमी आग बबूला हो जाते हैं.

आज की भारतीय संस्कृति शायद हमें मानव शरीर की लज्जा ही सिखाती है हालाँकि भगवद्गीता कहती है कि यह शरीर केवल वस्त्र है और जब यह पुराना हो जाता है तो आत्मा इसे बदल लेती है.

इटली के उत्तरपूर्व के समुद्र तट पर बहुत सालों से टोपलैस का प्रचलन हो रहा है यानि पुरुष और स्त्रियाँ केवल शरीर का नीचे का भाग ढ़कते हैं, ऊपर वाला भाग खुला रहता है. बिबयोने जहाँ हम लोग छुट्टियों पर जाते हैं, से करीब पाँच किलोमीटर दूर समुद्र तट पर बहुत से लोग बिना वस्त्रों के भी रहते हैं. मेरे विचार में अपने शरीर की लज्जा से छुटकारा पाना एक स्वतंत्रता है.


बिबियोने समुद्र तट पर दीपक परिवार (1986)

मैरीएंजला, मेरी इतालवी मित्र कहती है कि आज कि सभ्यता हमें अपने शरीर के बारे में शर्म करना सिखाती है. पत्रिकाओं, टेलीविजन, हर तरफ केवल लम्बे, पतले सुंदर शरीर ही दिखते हैं. यानि कि अगर हम जवान, पतले, लम्बे या सुंदर नहीं तो हमे अपने शरीर को छुपा कर रखना चाहिये और उस पर शर्म आनि चाहिये.

"न्यूड बीच" ऐसी सोच से बगावत करने का तरीका है. शायद इसी वजह से पिछले जून में हुए बोलोनिया के ग्रीष्म ऋतु समारोह में यहाँ की यनिवर्सिटी की छात्रों ने शहर के बीच में केवल अंडरवियर पहन कर जलूस निकाला था (नीचे तस्वीर में)!


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2 टिप्‍पणियां:

  1. again post inspired by your post. Looks like i am becoming Bappi Lehri or Anu Malik, getting inspired every day. http://hankabaji.blogspot.com/2005/11/blog-post_12.html

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  2. खुशवंत सिंह ने अपने अनुभवों में कहीं लिखा था कि मनुष्य का नग्न शरीर ही सबसे कुरूप होता है. इसीलिए वह तमाम फैंसी कपड़ों में छुपाता है!

    और, शायद शर्म भी उसे इसी लिए आती है!!!

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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