शनिवार, फ़रवरी 16, 2008

चारमीनार की छाया में

कल रात को तीन सप्ताह की भारत यात्रा के बाद वापस बोलोनिया लौट आया. प्रस्तुत हैं इस यात्रा की डायरी के कुछ पन्ने.

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हैदराबाद की हाईटेक सिटी में ठहरे थे. हाईटेक सिटी यानि वही जाना पहचाना भारतीय मेले जैसा जीवन जिसमें धूल मिट्टी, पान तम्बाकू, गाय भौंपू, साग सब्जी फिल्मी गाने, गप्पबाजी गालियाँ, सब वही हैं जो पुराने शहर में हैं पर इस तेज बहती जीवन धारा के बीच बीच में साईबर टावर जैसे द्वीप बने हैं जहाँ गेट पर पहरेदार खड़े हैं, साफ़ सुथरी चौड़ीं सड़कें, हरियाली, वातानाकूलित भवन, वाईफाई, स्टील और शीशे. लाल्टू कहते हैं कि एक अन्य अंतर है नये हाईटेक शहर में और पुराने शहर में जो बहुत महत्वपूर्ण है, यानि हर वस्तु पाँच गुना महँगी मिलती है.

कुष्ठ रोग पर विश्व कोनफ्रैंस नये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में हो रही है जहाँ पहुँचना आसान नहीं. कोनफ्रैंस में सारा दिन इधर उधर भागते, सुनते, बहस करते निकल जाता है. बीच बीच में कोई बोलने वाला बोर करता है तो थोड़ी देर सोने का मौका भी मिलता है. सारा दिन नींद आती है पर रात में बिस्तर में लेटते ही गुम हो जाती है, सुबह सुबह जब आँख लगती है तो उठने का समय हो जाता है.

रात भर समाचार चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ सुन देख कर लगता है कि मानों एलिस एन द वंडरलैंड की ऊल्टी दुनियाँ में पहुँच गया हूँ. एक रात को सैफ और करीना के गुप्त विवाह पर तो दूसरी रात को राज ठाकरे के मचाये उपद्रव पर, समाचार पढ़ने वाले बार बार एक ही बात को चिल्ला चिल्ला कर इतनी बार कहते हैं मानो कोई वेद मंत्र हो जिसका बार बार भजन करने से ही ज्ञान मिलेगा. कभी लगता है कि वे समाचार नहीं पढ़ रहे लाईव कमेंट्री सुना रहे हों जिसमें घटनास्थल पर खड़े संवाददाता बार बार कहते हैं, "पिछले पाँच मिनट में कुछ नया नहीं हुआ पर जैसा कि मैंने कुछ देर पहले कहा कि हो सकता है कि इससे बात और बहुत बिगड़ जाये या शायद फ़िर न बिगड़े, पर ..."

साथ में राजेंद्र यादव का एक पुराना उपन्यास "शह और मात" ले कर गया था पर उसे पढ़ने में मन नहीं लगता. बिस्तर में करवटें बदल बदल कर कुढ़ते कुढ़ते फ़िर उसी टेलीविज़न को खोलना पड़ता है. जब लाल्टू ने अपनी कहानी और कविता की किताबें दीं तो उन्हें एक ही रात में पढ़ लिया.

हैदराबाद में बचपन में आया था, तब पाँच या छह साल का था. उस समय की थोड़ी थोड़ी यादें हैं कि चारमीनार के करीब ही कहीं रहते थे. खेलते कूदते समय घूमने के लिए एक चूड़ियों के फैक्टरी के पास टूटी चूड़ियों के टुकड़े जमा किया करते थे. एक दोपहर को जब कोनफ्रैंस में मन नहीं लगा तो उस जगह को खोजने के विचार से निकल पड़ा. चारमीनार में एक मंदिर भी है, एक दरगाह और एक छोटी सी मस्जिद भी. दरगाह में 41 साल से रहने वाले बूढ़े अब्दुल सईद से कुछ बात की, उनसे पहले दरगाह की देखभाल उनके मामा किया करते थे. उनके कल्फ लगी हुई उर्दू में बात करने की तरीके से लगता था मानो मुगलेआज़म के डायलाग सुन रहा हूँ.

फ़िर चारमिनार के करीब ही बने युनानी अस्पताल और मक्का मसजिद भी गया. अस्पताल के बाहर भीख माँगने वाली सलमा से बात की जो कोल्हापुर की रहनेवालीं हैं और जिन्हें किस्मत ने हैदराबाद ला कर भीख माँगने को मजबूर कर दिया. उनकी आँखों में अपनी मजबूरी की ग्लानी देख कर मेरा भी मन भर आया.

फ़िर कुछ देर तक चारमीनार के आसपास गलियों में घूमा. बचपन की छुट्टियों में कहाँ ठहरे थे यह समझ में नहीं आया. सब गलियाँ अनजान बेपहचानी सी लग रहीं थीं. कई जगह घरों के हिस्से टूटे हुए थे, सड़क की ओर वाले हिस्से. शायद नगरपालिका ने बिना अनुमति के बनाये हिस्सों को तोड़ा था. भग्न खिड़कियाँ दीवारें देख कर बहुत बुरा लग रहा था. मन उचाट हो गया था तो वापस होटल लौट आया.

चार मिनार से जो आटो लिया था उसे चलाने वाला गुरमीत सिंह सिख था पर हैदराबादी में ही बात करता था. गर्व से बोला कि उसके पुरखे सौ से भी अधिक सालों से हैदराबाद में रह रहे थे. बता रहा था कि कैसे घर वालों ने छोटी सी उम्र में ही शादी करा दी, कैसे उसने बैंक में नौकरी छोड़ कर आटो चलाने की सोची, कैसे वह एक बार दिल्ली में बने गुरुद्वारे देखने गया था. मैंने पूछा कि क्या तुम्हारी पत्नी भी काम करती है, तो बोला हम लोग हैदराबादी हैं और असली हैदराबादी अपनी औरत को काम नहीं करवाते. पंजाब में पुरखों का गाँव कहाँ है पूछा तो बोला कि उसे नहीं मालूम, उसका तो वतन हैदराबाद ही है.

चारमीनार की छाया में बितायी उस दोपहर की कुछ तस्वीरें प्रस्तुत हैं:
































Tag: Hyderabad, Chaar Minaar, Nostalgia

9 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार नज़र। बेमिसाल तस्‍वीरें।

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  2. आप हैदराबाद आकर चले गये और हम आपसे मिल भी नही पाये :(
    बहुत नाइंसाफी है......

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  3. बड़ा आत्मीय-सा विवरण। अच्छा लगा। लगा कि आपके साथ मैं भी इन सारे अनुभवों से गुजर रहा हूं।

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  4. हैदराबाद तो मैं भी बहुत बार गई हूँ परन्तु उसे कभी आपकी सी नजरों से नहीं देखा ।
    घुघूती बासूती

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  5. सुन्दर तस्वीरें। अच्छी पोस्ट!

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  6. बहुत अच्छे, तस्वीरें बहुत सुंदर है।
    ये क्या मियां हैदराबाद के बारे मे लिखा, लेकिन वहाँ ने निजामी लज़ीज पकवानों के बारे मे कुछ नही लिखा। चारमीनार एरिया मे तो खाने पीने के सबसे ज्यादा आउटलेट है, वो भी शायद सबसे पुराने। कुछ बताइए उनके बारे मे भी।

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  7. हैदराबाद घुमे अरसा हुआ पर आपने आज फ़िर से घुमा दिया । बहुत अच्छा लगा पढ़कर और देखकर।

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  8. I like Hyedrabad city . I saw this city since 1986 . Your's views & photos very fantastic.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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