शुक्रवार, नवंबर 17, 2006

अचानक

गुयाना से वापस आ कर थकान हो गयी थी, पर वैसे सब कुछ ठीक था. उस दिन सुबह साईकल पर दूर तक पहाड़ी पर सैर करने गया. फ़िर दोपहर को सोया और शाम को परिवार के साथ बाहर खाना भी खाया और फ़िर पार्क में सैर भी की. अचानक रात को दर्द से नींद खुली, दाहिने कूल्हे में पीड़ा हो रही थी और करवट बदलने में तकलीफ़ होती थी. सुबह होते होते बुरा हाल था. बिस्तर से ठीक से उठा नहीं जाता, न ही कुर्सी पर बैठा जाता. थोड़ी सी हैरानी हुई कि रात तक तो सब ठीक था अचानक कैसे, क्या हो गया. खैर दवा खाई, सोचा अनजाने में कुछ चोट या धक्का लग गया हो जिस पर उस समय बातों में खोये होने से ध्यान न किया हो. दूसरी रात तो और भी कठिन बीती, दर्द घटने के बजाय बढ़ गया था.

मन में विचार आया फ्राँचेस्को का. हम दोनो इकट्ठे दक्षिण भारत में वैलूर के पास कारीगिरी में एक कोर्स में मिले थे और जल्दी ही दोस्ती हो गयी थी. कुछ वर्षों के बाद उससे अफ्रीका में गिनिया बिसाऊ में मुलाकात हुई जहाँ वह अस्पताल में काम करता था और मैं विश्व स्वास्थ्य संस्थान के लिए एक काम से वहाँ गया था. वह मुझे होटल से अपने घर ले गया, बोला मेरे साथ ही रहो. दक्षिण इटली का रहने वाला था और प्यार हुआ आल्बा से जो बोलोनिया की रहने वाली थी, अफ्रीका से लौटा तो कुछ दिन दोनो बोलोनिया रहे. तब बीच में कभी कभी मिलते रहते थे. फ़िर वे दोनो उत्तरी इटली में आउस्ट्रिया के पास एक अस्पताल में काम करने चले गये तो मिलना कम हो गया. दो साल पहले अचानक सुना कि फ्राँचेस्को की हालत बहुत खराब है, हड्डी का कैंसर हुआ है तो दिल धक्क से रह गया. मैं उससे मिलने गया तो उसका चेहरा देख कर समझ नहीं पाया कि क्या कहूँ. बड़ा बेटा नौ साल का छोटी बेटी दो साल की. छः महीने बाद मृत्यु हो गयी.

जब मन में फ्राँचेस्को का विचार आया तो बची खुची नींद भी गयी और दर्द भी बढ़ गया. कुछ कुछ याद था कि उसका कैंसर कुछ इसी तरह दर्द के साथ प्रकट हुआ था. सुबह सुबह अँधेरे में अस्पताल के एमरजैंसी विभाग में जा कर दिखाने का फैसला किया. जब तक एक्सरे वगैरा होते तीन घँटे बीते और उन तीन घँटों में बहुत सी बातें मन में आईं. जाने पोते या पोती का मुख देखने को मिलगा मरने से पहले? अगले सप्ताह एक जगह रोम में बोलने जाना है और दूसरी जगह फ्लोरैंस में, वहाँ कौन जायेगा? दिसंबर में जो भारत में प्राकृतिक चिकित्सा की अंतर्राष्ट्रीय सभा आयोजित कर रहा हूँ, उसे कौन सँभालेगा? जो उपन्यास लिखने का सपना था वह अधूरा रह जायेगा?

रोज की भागादौड़ी में यह तो कभी याद ही नहीं आता कि अचानक एक दिन सब कुछ समाप्त भी हो सकता है. लगता है कि अभी तो बहुत जीवन बाकी है, बहुत कुछ करना है.

जब एक्सरे की रिपोर्ट आई तो देखा कि हड्डी तो ठीक ही दिख रही थी, यानि कि फ्राँचेस्को को जो कैंसर हुआ था, वह तो नहीं दिख रहा था. फ़िर एमरजैंसी के डाक्टर से बात हुई. वह बोला कि कुछ माँसपेशियों की मोच सी लगती है. नहीं, न ही मुझे कोई मोच आई है और न ही कोई चोट लगी है, अवश्य इसमें कोई अन्य वजह है, मैंने कहा, आप अल्ट्रासाऊँड या कुछ और टेस्ट नहीं कर सकते? मुस्कुराने लगा डाक्टर, बोला पाँच दिन तक दवा ले कर देखिये, अगर न ठीक हो तो बाकी टेस्ट भी करवा लेंगे.

दो दिनों में दर्द बहुत कम हो गया है. अब दोबारा अस्पताल में लौट कर जाने और अन्य टेस्ट करवाने का विचार छोड़ दिया है. हाँ, मृत्यु के करीब होने के बारे में जो सोचा था, वह अभी भी मन को कटोचता है. समय बेकार की बातों में नहीं बिताना, जाने कब अचानक सब कुछ अधूरा छोड़ कर जाना पड़ेगा! पर फ़िर मालूम है कि थोड़े से ही दिनों में यह सब बातें भूल जाऊँगा, और वापस रोज रोज की भागदौड़ में यह याद रखने की फुरसत ही नहीं होगी कि एक दिन मरना भी है.

4 टिप्‍पणियां:

  1. दिन रविवार तारीख़ 12 जून 2005 कोएप्पल के CEO स्टीव जाब्स द्वारा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह पर दिये गये व्याख्यान का एक अंश

    जब मैं १७ वर्ष का था, मैंने कहीं पढ़ा था "यदि आप हर दिन को जिन्दगी के अंतिम दिन की तरह जीते हैं, किसी दिन आप जरूर सच होंगे". इसने मेरे मन पर गहरा प्रभाव डाला था और तब से पिछले ३३ सालों से हर सुबह मैंने आईने में खुद को देखा है और पूछा है "यदि आज मेरी जिन्दगी का अंतिम दिन है तो मैं आज मैं करने जा रहा हु वह मैं करना चाहूँगा या नहीं ?" और जब मेरा उत्तर कुछ दिनों तक लगातार नकारात्मक आया है मुझे मालूम हो जाता है कि मुझे कुछ परिवर्तन की जरूरत है.

    अपनी मृत्यु को याद रखना, वह सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसने मुझे जिन्दगी के हर बड़े चुनावों में मदद की है. क्योंकि लगभग सब कुछ , हर उम्मीद , गर्व या असफलता की शर्म का डर ये सब मौत के सामने मायने नहीं रखते, बच जाता है जो सच ए महत्वपूर्ण है. आप एक दिन मरने वाले हैं इसे याद रखना , आपको कुछ खो देने के डर के जाल में फंसने से बचाएगा. आप के पास खोने के लिये कुछ नहीं है, आप को अपने दिल की भावना का पालन नहीं करने के लिये कोई कारण नहीं है.

    पूरा यहा पर देखें

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  2. जितना अच्छा लेख उतनी ही अच्छी आशीष की टिप्पणी.

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  3. लेख और आशीष की टिप्पणी दोनो बहुत बढिया.

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  4. मृत्यु एक ऐसा अंतिम सत्य है जिसके बारे में शायद ही कोई सोच कर चलता होगा.
    अगर हर पल यह ध्यान दे की अगले ही पल हम मर सकते है, तो जीवन के बहुत से क्लेश खत्म हो जाये. हर पल जीने का आनन्द लिया जा सकता है.
    मुझे लगता है संथारा ही एक मात्र उपकर्म है मुत्यु को सहजता से अंगिकार करने का.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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