जब उनका ईमेल देखा तो स्पेम समझ कर उसे कूड़ेदान में डालने चला था क्योंकि अनुभव से मालूम है कि इतने अजीब नाम वाले तो स्पेम ही भेजते हैं. फ़िर नज़र पड़ी थी ईमेल के विषय पर जिसमें लिखा था "कल्पना के बारे में", तो रुक गया था. सँदेश में लिखा था कि वह अधिकतर भारत में रहते हैं, पर उनकी पत्नि और परिवार इटली में बोलोनिया के पास रहते हैं, वह आजकल छुट्टी में इटली आयें हैं, उन्होंने अंतर्जाल पर कल्पना के कुछ पृष्ठ देखे और वह मुझसे मिलना चाहते हैं.
भारत से कोई भी आये और उससे मिलने का मौका मिले तो उसे नहीं छोड़ना चाहता. तुरंत उन्हे उत्तर लिखा और घर पर आने का न्यौता दिया. कल एक मई का दिन मिलने के लिए ठीक था क्योंकि मेरी छुट्टी थी और उन्हें शायद बोलोनिया आना ही था.
Mark Dyczkowski, कितना अजीब नाम है, कौन से देश से होगा, मैं सोच रहा था. फ़िर कल सुबह अचानक मन में आया कि उनके बारे में गूगलदेव से पूछ कर देखा जाये. पाया कि वह बनारस में रहते हैं, हिंदू धर्म में ताँत्रिक मार्ग पर बहुत से किताबें लिख चुके हैं, सितार भी बजाते हैं.
वह अपनी पत्नी ज्योवाना और एक मित्र फ्लोरियानो के साथ आये. उन्हे देखते ही पहली नज़र में उनसे एक अपनापन सा लगा. कभी कभी ऐसा होता है कि कोई अनजाना भी मिले तो लगता है मानो बरसों से उसे जानते हों, वैसा ही लगा मार्क को मिल कर. इससे पहले कि कुछ बात हो मैंने तुरंत पूछ लिया, "यह तुम्हारा नाम कैसे बोलते हैं?" और मार्क ने बताया, कि उनके पारिवारिक नाम का सही उच्चारण है "दिचकोफस्की".
पोलैंड के पिता और इतालवी माँ की संतान, मार्क का जन्म लंदन में हुआ. सतरह अठारह वर्ष की उम्र में गुरु और ज्ञान की खोज उन्हें भारत ले आयी, जहाँ उन्होने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. भारत में ही उनकी मुलाकात अपनी पत्नी ज्योवाना से हुई और पहला पुत्र भी भारत में पैदा हुआ. पिछले पैंतीस वर्षों से वह भारत में ही रहते हैं और ताँत्रिक मार्ग के अलावा संगीत, योग, भारतीय दर्शन आदि बहुत से विषयों में दिलचस्पी रखते हैं. पोलिश, इतालवी, हिंदी, अँग्रेजी और संस्कृत भाषाएँ जानते हैं.
दो घँटे के करीब वह रुके और इस समय में बहुत सी बातें हुई. वह भी बहुत बोले, पर मैं भी उन्हें बार बार टोक कर कुछ न कुछ प्रश्न पूछता. कभी कृष्ण की बात करते तो कभी राम की. कभी वेदों उपानिषदों से उदाहरण देते कभी बढ़ती उपभोक्तावादी सँस्कृति से भारतीय मूल्यों को आये खतरे के बारे में चिंता व्यक्त करते. "मानव के भीतर की असीमित विशालता की ओर हिदू दर्शन ने जो ध्यान बँटाया है और सदियों से इस दिशा में ज्ञान जोड़ा है वह विश्व को भारत की देन है", बोले. मैं उन्हे मंत्रमुग्ध हो कर सुनता रहा.
जब चलने लगे तो मुझे दुख हुआ कि बातचीत में इतना खोया कि उनकी बातों को रिकार्ड नहीं किया, वरना सब बातों को लिख कर अच्छा साक्षात्कार बनता और नये लोगों को उनके विचार जानने का मौका भी मिलता. अभी तो मैं यहीं हूँ, यहाँ एक सप्ताह पहले ही आया हूँ, अगले दिनों में फ़िर अवश्य मिलेंगे, तब रिकार्ड कर लेना, उन्होने मुझे मुस्करा कर कहा. इतने ज्ञानी विद्वान से घर बैठे अपने आप मिलने का मौका मिला, यह तो मेरा सौभाग्य ही था.
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कल रात को समाचार मिला कि भारत से यहाँ आये शौध विद्यार्थी विवेक कुमार शुक्ल के माता पिता जो कानपुर में रहते थे, उनका किसी ने खून कर दिया. विवेक आज ही घर वापस जाने की कोशिश कर रहे हैं. हम सब इस समाचार से स्तब्ध हैं. विवेक को बोलोनिया के भारतीय समुदाय की संवेदना.