सेठ ने कहा
बहुत बार मन में विचार आता, यह जीवन किस लिए मिलता है, क्या अर्थ है इस जीवन का ? शायद ऐसे विचार तभी अधिक आते हैं जब इन्सान को रोज़मर्रा के जीवन में आम चिन्ताओं से मुक्ति मिल गयी हो. यानि कि, जब रहने, खाने, पहनने के लिए भरपूर हो तो मन इस तरह के सवालों से परेशान रहता है ? इन प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए बहुत किताबें पढ़ीं. योग, मोक्ष, निर्वाण, भक्ति जैसे विषयों पर पढ़ा. विवेकानंद, डा. राधाकृष्णन, जे. कृष्णामूर्ती और श्री अरबिंदो जैसे विचारकों की किताबें भी पढ़ी. विभिन्न धर्मों के ग्रंथ क्या कहते हैं वह भी पढ़ा. इतना सब कुछ पढ़ने के बाद भी ऐसा कोई उत्तर नहीं मिला जो मन को पूरी तरह भाया हो. भग्वदगीता और कठोउपानिषद दोनो किताबें मुझे बहुत अच्छी लगीं पर हिंदू धर्म का मुख्य जीवन दर्शन का संदेश, "यह जग माया है, विरक्ति से जीवन जीना सीखो. लोगों से, वस्तुओं से मोह न बाँधो, अपने कर्तव्य का पालन करो", मुझे अधूरा सा लगता है. जीवन माया है और हमें अपने कर्म का सोचना चाहिये, बिना किसी फ़ल की आशा किये हुए, का संदेश यह नहीं बताता कि यह जीवन हमें क्यों मिला ? कर्म और पुनर्जन्म का विश्वास भी मुझे यह उत