कविता के शब्द
कुछ दिन पहले लाल्टू की कविताओं की नयी किताब मिली. कविताएँ मुझे धीरे धीरे पढ़ना अच्छा लगता है, जैसे शाम को सैर से पहले दो एक कविता पढ़ कर जाओ तो सैर के दौरान उन पर सोचने का समय मिल जाता है और इस तरह से यह भी समझ में आता है कि कविता में दम था या नहीं. अगर थोड़ी देर में ही कविता भूल जाये तो लगता है कि कुछ विषेश दम नहीं था. कभी किसी कविता से कुछ और याद आ जाता है. लाल्टू की किताब का शीर्षक है " लोग ही चुनेंगे रंग ", और शीर्षक वाली कविता बहुत सुंदर हैः चुप्पी के खिलाफ़ किसी विषेश रंग का झंडा नहीं चाहिए खड़े या बैठे भीड़ में जब कोई हाथ लहराता है लाल या सफ़ेद आँखें ढूँढ़ती हैं रंगो के अर्थ लगातार खुलना चाहते बन्द दरवाज़े कि थरथराने लगे चुप्पी फ़िर रंगों की धक्कलपेल में अचानक ही खुले दरवाज़े वापस बंद होने लगते हैं कुछ ऐसी ही बात स्पेनी गीतकार और गायक मिगेल बोज़े (Miguel Bosé) ने अपने एक गीत में कही थी जिसमें वह ऐसे रंग के सपने की बात करते थे जो किसी झँडे में न हो. राष्ट्रीयता के नाम पर होने वाले भूतपूर्व युगोस्लोविया में होने वाले युद्ध के बारे में लिखा यह गीत मेरे प