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नवंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चुप्पी का झूठ

विकास, विश्वीकरण, उदारवाद एवं पश्चिमी उपनिवेशवाद जैसे विषयों पर लिखने बोलने वाले भारतीय विचारक, श्री यश टँडन के एक लेख में रूसी कवि येवतूशेंको की एक बात का ज़िक्र है. येवतूशेंको ने कहा, "जब सच की जगह चुप्पी ले लेती है, वह चुप्पी एक झूठ है". येवतूशेंको का प्रश्न उनसे था जिन्हें मालूम था कि क्या हो रहा है लेकिन वह लोग चुप रहे. इस बात को देर तक सोचता रहा. कितनी बार ऐसा होता है कि रिश्तों की वजह से, जान पहचान की वजह से, किसी का दिल न दुखे यह सोच कर, या फ़िर भविष्य में होने वाले किसी फायदे का सोच कर, कितनी बार गलत बात को जान कर भी, मैं चुप रहना ही पसंद करता हूँ, इसलिए भी कि झूठ बोलने की वजाय चुप रहना अधिक नैतिक लगता है. पर मित्रता तथा पारिवारिक रिश्तों में "सच" बोलने का अर्थ क्या उन रिश्तों में कड़वाहट नहीं भर देगा? शायद येवतूशेंको की बात तभी महत्वपूर्ण है जब ताकतवर लोग या संस्थाएँ लोगों के साथ अन्याय करते हैं, उसके सामने चुप नहीं रहना चाहिये, आम जीवन में बिना चुप्पी के रहना बहुत कठिन होगा?

प्राकृतिक यानि जँगली, असभ्य

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बहुत साल पहले जब पहली बार इटली में आया था तो अस्पताल में मेरे एक मित्र ने एक दिन मुझसे कुछ हिचकिचा कर कहा कि बुरा नहीं मानो पर तुम्हारे शरीर से तेज़ गंध आती है, तुम डियोडोरेंट क्यों नहीं लगाते? मुझे समझ नहीं आया कि क्या उत्तर दूँ. बुरा तो लगा पर साथ ही मन में कुछ दुविधा सी भी उठी. डियोडोरेंट क्या होता यह मालूम नहीं था, क्यों लगाते हैं, कैसे लगाते हैं, यह नहीं मालूम था. पर साथ ही मन में विचार था कि मानव शरीर की गंध, विषेशकर नये जवान होते पुरुष की गंध अच्छी होती है, सेक्सी होती है, जिससे लड़कियाँ आकर्शित होती हैं. जबकि मेरे इतालवी मित्र का कहना था कि इस तरह की तेज़ गंध से, लड़कियाँ मेरे करीब भी नहीं आयेंगी. जब पहली बार प्रेम हुआ और एक लड़की के करीब आने का मौका मिला तो यही सबक दोबारा सुना कि लड़की की करीबी चाहिये तो पहले स्वयं को तैयार करना चाहिये, दाँत ब्रश करने चाहिये, माउथ फ्रेशनर यानि मुँह की गंध को सुगंधित करने वाला स्प्रे का प्रयोग करना चाहिये, अच्छी तरह से डेयोडोरेंट यानि शरीर की गंध मिटाने वाला स्प्रे बगल में और जहाँ बाल हों, वहाँ लगाना चाहिये. यह सब नहीं करेंगे तो आप असभ्य समझे

कौन सी भाषा?

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कल यहाँ बोलोनिया के करीब ही एक शहर फैरारा में इतालवी पत्रिका इंतरनात्ज़ोनाले (Internazionale) ने साहित्यक समारोह का आयोजन किया था जिसमें एक गोष्ठी का विषय था, "हिंसा के समय में लेखन". इसमें भाग ले रहे थे पलिस्तीनी लेखिका सुआद अमेरी, श्री लंका के लेखक रोमेश गुनेसेकेरा, जिबूटी के लेखक अब्दुरहमान वाबेरी तथा उनसे बात कर रहीं थीं इतालवी लेखिका और पत्रकार मरिया नेदोत्तो. सुआद, रोमेश तथा अब्दुरहमान, तीनो लेखकों ने अपने लेखन में अपने देशों में होने वाली हिँसा के बारे में लिखा है. मैंने तीनों में से किसी की भी कोई किताब नहीं पढ़ी और गोष्ठी में जाने से पहले उनके बारे में कुछ जानता भी नहीं था. पर उनकी बातों से तीनो का लिखने और सोचने का तरीका भिन्न लगा. अब्दुरहमान अपनी पुस्तक "संयुक्त राष्ट्र अफ्रीका में" के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसमें उल्टी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ अफ्रीका अमीर और ताकतवर है और यूरोप गरीब तथा पिछड़ा, और इस तरह वह अफ्रीका के बारे में की जाने वाली हर बात को और अफ्रीकी गरीब प्रवासियों के साथ किये जाने वाले व्यवहार को उल्ट कर देखते हैं कि यही बात अगर यूरोप

प्रधानमंत्री का सेक्स जीवन

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इटली के प्रधानमंत्री करोड़पति, उद्योगपति, टीवी चैनल, अखबारों, पत्रिकाओं के मालिक श्री बरलुस्कोनी शुरु से ही कुछ विवादों से जुड़े रहे हैं. कभी जर्मनी की अधिपति एँजेला मर्कर को कुछ कहा, कभी उँगलियों से साँकेतिक भाषा में घटिया सा मज़ाक किया, कभी बोले कि मैं जब तक चुनाव जीतूँगा नहीं तब तक सेक्स से दूर रहूँगा, कभी अमरीकी राष्ट्रपति को धूप से साँवले हुए रंग वाला कहा, यानि कि हर सप्ताह उनका कोई नया ही समाचार होता है. लेकिन पिछले कई महीनों से, जब से उनकी पत्नि वेरोनिका ने उन पर आरोप लगाया कि वह नाबालिग लड़कियों से सम्बंध रखते हैं और उनसे अलग होने की माँग की, तब से उनके सेक्स जीवन की खुलेआम बातों ने हचलच सी मचा दी है. दक्षिण इटली के एक बिज़नेसमेन ने बताया कि कैसे वह उनके द्वारा आयोजित पार्टियों में पढ़ी लिखी, माडल बनने की इच्छा रखने वाली युवतियाँ तथा छुटपुट अभिनेत्रियाँ भेजते थे, जिनसे स्पष्ट कहा जाता था कि अगर वह रात को रुक कर प्रधानमंत्री के साथ सोयेंगी तो उन्हें अतिरिक्त पैसा मिलेगा. वह इनमें से कुछ युवतियों को कुछ वायदे भी करते जैसे कि तुम्हें सँसद का सदस्य बनवाऊँगा, या योरोपियन संसद का

प्रकृति का चक्र

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पिछले दो दशकों से बदलते पर्यावरण के बारे में बहुत कुछ पढ़ा सुना है. एक तरफ कहा जाता है कि मानव क्रियाओं, जिनमें मानव निर्मित फैक्टरियाँ आदि भी शामिल हैं, की वजह से पर्यावरण प्रदूषण का स्तर खतरे की सीमा से बाहर जाने वाला है, पर साथ ही विभिन्न देशों की सरकारें इसी चिंता में रहती हैं कि किस तरह उन का विकास न रुके और विकास रोकने के लिए नयी फैक्टरियाँ बनाना, अधिक से अधिक नयी वस्तुएँ बेचना, बड़ी बड़ी कारें बनाना और उन्हें भी अधिक से अधिक बेचना, जैसी नीतियाँ बनाती रहती हैं, जिनसे प्रदूषण का रोना बिल्कुल बनावटी लगता है. कुछ थोड़े से लोग हैं जो यह कहते हैं कि मानव जीवन के विकास के दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है पर उन्हें बाकी के लोग उन्हें आदर्शवादी या पागल ही कह कर टाल देते हैं. कुछ दिन पहले जब अमरीकी पत्रिका अटलाँटिक के जुलाई अंक के एक लेख को पढ़ने का मौका मिला तो पर्यावरण की बहस की गम्भीरता को समझने के लिए नयी बात जानी. इस लेख का विषय था कि किस तरह नयी तकनीकों के माध्यम से पर्यावरण के बदलाव के बुरे प्रभावों को रोका जाये. इस लेख में बहुत सारी तकनीकों का विवरण है जिनके बारे में वैज्ञानि

घादा जमशीर की लड़ाई

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घादा जमशीर (Ghada Jamshir) बहरेन की रहने वाली हैं और उन्होंने स्त्री अधिकारों की माँग के लिए एक संस्था बनायी है जिसका ध्येय है कि शरीयत कानून के द्वारा होने वाले स्त्रियों के मानव अधिकारों के विरुद्ध होने वाले फैसलों के बारे में आवाज़ उठायें. उन्होंने इस संस्था को बनाने का निर्णय आठ वर्ष पहले लिया जब उनकी मुलाकात एक अदालत के बाहर एक स्त्री से हुई जिसे उसके पति ने तलाक दिया था और साथ ही अदालत ने फैसला किया था कि उसकी बेटी पिता के साथ रहेगी. जमशीर का भी तलाक हुआ है. (From nomulla.net) धीरे धीरे जमशीर की संस्था वुमेनज़ पेटिशन कमेटी (Women's petition committee) को स्थानीय स्त्रियों का सहारा मिला है और घादा जमशीर का नाम जाने जाना लगा है. जमशीर ने देश में घूञ घूम कर शरीयत अदालयतों में होने वाले फैसलों से प्रभावित स्त्रियों की कहानियाँ एकत्रित की, उन्हों लोगों तक पहुँचाया और सरकार से माँग की न्याय पद्धती में बदलाव आवश्यक है. जिन मुद्दों को जमशीर की संस्था ने उठाया है उनमें बड़ी संख्या में तलाकशुदा स्त्रियाँ हैं जिनके अधिकारों को पुरुषों के अधिकारों से कम माना गया, पर साथ ही अन्य मुद्