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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भाषाओं के चक्रव्यूह

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लूका का ईमेल आया कि वह भाषाओं पर शौध कर रहा है और मुझ से हिन्दी के बारे में बात करना चाहेगा, और साथ में कहा कि मेरा नाम उसे बोलोनिया विश्वविद्यालय में काम करने वाली मेरी एक पुरानी मित्र से मिला था, तो मैंने अधिक सोचा नहीं, हाँ कर दी. आज सुबह उसके साथ चार घँटे गुज़ारे तो समझ में आया कि हम जिस भाषा को अपनी सोचते और कहते हैं, उसके कई पक्षों को ठीक से नहीं समझते और जानते. लूका हालैंड के उट्रेख्ट विश्वविद्यालय में शौध कर रहा है जहाँ दुनिया भर की भाषाओं को परखा जा रहा है. इस शौध में लूका को कुछ भारतीय भाषाओं के बारे में जानकारी जमा करने की ज़िम्मेदारी मिली है, जिनमें हिन्दी, पँजाबी, बँगला, तमिल, तेलगू और मलयालम भी हैं. पहले ही वाक्य का हिन्दी अनुवाद करते हुए मैं रुक गया. "I wash" का क्या अनुवाद करता? मैंने पूछा कि यह तो बताना पड़ेगा कि क्या धोना है, हाथ, मुँह या कपड़े, इसको जाने बिना इस वाक्य का हिन्दी अनुवाद नहीं हो सकता. लूका बोला, धोना नहीं, अंग्रेज़ी में तो इसका अर्थ हुआ कि मैंने नहाया. मैंने कहा कि शायद लंदन में पानी की कमी नहीं, उनके लिए नहाने और धोने में फ़र्क न हो, पर

अलेसान्द्रा का प्रश्न

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बोलोनिया में रहने वाली मेरी जान पहचान की अलेस्साँद्रा की कहानी आज कल हर दिन किसी न किसी अखबार पत्रिका या टीवी पर दिखायी जा रही है. अलेस्साँद्रा कहती है, "मेरा बस चलता तो मैं यह बात इस तरह से नहीं उठाती, लेकिन बात मेरे मानव अधिकारों की है और मैं पीछे नहीं हटूँगी." हुआ यह कि अलेस्साँद्रा ने नगरपालिका दफ़्तर में अर्ज़ी दी अपना नया व्यक्तिगत पहचानपत्र यानि आई कार्ड बनाने की. नगरपालिका वालों ने कहा कि हम आप को आई कार्ड में विवाहित नहीं लिख सकते, आप को तलाक लेना पड़ेगा, आप का विवाह हमारे देश के कानून के हिसाब से गलत है. अलेस्साँद्रा कहती है, "क्या जबरदस्ती है, मैं क्यों तलाक लूँ? मैंने चर्च में भगवान के सामने शादी की है, फ़िर कोर्ट में सिविल विवाह किया है. हमने सुख दुख में साथ निभाने की कसम खायी है, जब हम दोनो खुश हैं तो हम क्यों तलाक लें, हम तलाक नहीं लेंगे." इस कहानी को समझने के लिए हमें घड़ी की सूई को पीछे ले जाना पड़ेगा. 39 वर्ष पहले जब अलेस्साँद्रा पैदा हुई थी तो उसका नाम अलेस्साँद्रो रखा गया था. पर बचपन से ही अलेस्साँद्रो को समझ आ गया कि कुछ गलत था, उसका शर

गार्गी की यवनी बेटी

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कुछ दिन पहले स्पेन-चिली के फ़िल्म निर्देशक अलेहान्द्रो अमेनाबार (Alejandro Amenàbar) की फ़िल्म अगोरा (Agorà) देखी जिसमें चौथी शताब्दी की यवनी (ग्रीक) दर्शनशास्त्री और नक्षत्रशास्त्री हाइपाटिया (Hypatia) की कहानी है. पुरुष प्रधान समाज में स्वतंत्र सोचने वाली स्त्री के विषय के अतिरिक्त यह फ़िल्म धार्मिक कट्टरवाद के विषय को भी छूती है. इस फ़िल्म को देख कर भारत के पूर्व-इतिहास की ऐसी ही एक युवती, गार्गी, जिसकी कथा वेदों में लिखी है, के बारे में जानने की इच्छा भी मन में जागी. ईसा से तीन सौ साल पहले यवनी सम्राट सिकन्दर यानि अलेक्ज़ान्डर (Alexander) ने आधुनिक तुर्की, सीरिया, मिस्र, ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत तक कर अपना साम्राज्य बनाया था. उनके नाम से बने यवनी शहर इन सभी देशों में आज भी उस इतिहास की गवाही देते हैं. हाइपेटिता की कहानी मिस्र (Egypt) में समुद्र तट पर बसे अलेज़ान्ड्रिया (Alexandria) शहर की है, जो उस समय अपने प्रकाश स्तम्भ तथा पुस्तकालय के लिए दुनिया भर में मशहूर था. तब तक यवन साम्राज्य कमज़ोर हो चुका था और रोमन साम्राज्य चर्म पर था. हाइपेटिया, रोमन जिसे इपेत्