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फ़लों से झुका पेड़

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बचपन में यह कहावत सुनी थी कि जिस पेड़ पर जितना फ़ल अधिक लगता है, वह उतना ही झुक जाता है. इस कहावत से यह शिक्षा दी जाती थी कि जीवन में जितना ऊपर उठो, उतने ही विनम्र बनो. लेकिन बहुत से बड़े लोगों को देख कर लग कि असल में तो ऊल्टा ही होता है, जो जितना ऊँचा चढ़ता है, उसके उतने ही नखरे, मानो भगवान ने उन्हें अलग बनाया हो और उनका होना भर ही सारी मानवता पर उपकार है. लेकिन कुछ दिन पहले सचमुच ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका मिला जिसने इस कहावत को आत्मसार किया था, हालाँकि शायद उन्हें इस कहावत के बारे में कुछ मालूम न हो. अमरीका से सम्बंधी आये थे, उन्हें शहर घुमा रहा था. हम लोग शहर के पुराने भाग में थे, अचानक मुझे अपने सामने से आते हुए इटली के पूर्व प्रधान मंत्री दिखे, श्री रोमानो प्रोदी. वह दो बार इटली के प्रधान मंत्री बने, 1996 से 1998 और फ़िर, 2006 से 2008 तक. इटली के दूसरी बार प्रधान मंत्री होने से पहले, बीच में 1999 से 2004 तक वह यूरोप संसद के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं. बहुत वर्ष पहले वह प्रधान मंत्री बनने से पहले, हमारे शहर में ही अर्थशास्त्र पढ़ाते थे. मैंने अखबार में पढ़ा तो था कि वह बिना

अगर फ़िर से शुरु होता?

कल सुबह कार पार्क कर रहा था तो अचानक मन में विचार आया, अगर यह जीवन फ़िर से शुरु करने का मौका मिले, एक बार फ़िर से बच्चा बन जाऊँ, तो क्या कौन सी बातें अपने इस जीवन की बदलना चाहूँगा? हरी भरी पहाड़ी के नीचे, सुंदर शांत जगह पर है यह कार पार्क, शायद इसीलिए वहाँ पर सुबह सुबह इस तरह के गम्भीर और महत्वपूर्ण विचार मन में आते हैं? पिछले कुछ दिनों से मैं अमरीकी प्रोफेसर रेंडी पाउश (Randy Pausch) की किताब "द लास्ट लेक्चर" (The last lecture) पढ़ रहा था. शायद यह दोबारा जीवन शुरु करने वाली बात मन में अचानक उनकी किताब पढ़ने की वजह से ही आयी थी. उनके अमरीकी विश्वविद्यालय में इस तरह के भाषण देने का प्रचलन था कि प्रोफेसर से कहिये कि अगर आप को एक अंतिम बार विद्यार्थियों से बोलने का मौका मिले तो आप कौन सी बात कहना चाहेंगे? इन भाषणों को "अंतिम भाषण" कहा जाता है. 2007 में जब रेंडी से इस तरह का भाषण देने के लिए कहा गया था तो उनकी स्थिति कुछ भिन्न थी. कुछ ही महीने पहले उन्हें अपने शरीर में पनपते लाइलाज कैंसर होने की बात का पता चला था. डाक्टरों का कहना था कि उनके जीवन के कुछ महीने ही

बॉली या पॉउली ?

बम्बई के फ़िल्म जगत को बॉलीवुड का नाम कब मिला यह तो कोई ठीक से नहीं कह सकता, विकीपीडिया भी नहीं. मुझे लगता है कि 1970 के दशक में बम्बई से निकलने वाली स्टारडस्ट, सिने ब्लिट्ज़ जैसी फ़िल्मी पत्रिकाओं में तब भी  बॉलीवुड  शब्द का प्रयोग होता था. इधर पिछले कुछ सालों में कई बार पढ़ा कि बम्बई के कुछ प्रसिद्ध सितारे अभिनेता, इस नाम से खुश नहीं, वे अपनी पहचान को हॉलीवुड के नकलची छोटा भाई के रुप में नहीं करवाना चाहते, अपने आत्मसम्मान का सोचते हैं. लेकिन यहाँ यूरोप में तो धीरे धीरे बॉलीवुड शब्द की पहचान ही हर तरफ़ बढ़ती जा रही है, और इसका प्रयोग केवल बम्बई में बनने वाली हिंदी फ़िल्मों के लिए ही नहीं बल्कि भारत में बनी सभी फ़िल्मों के लिए किया जाने लगा है, चाहे वे तमिल में हों या बंगला में. कुछ दिन पहले, इटली के एक लेखक जो कि आजकल बम्बई की पृष्ठभूमि पर एक उपन्यास लिख रहे हैं, उनसे बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि बॉलीवुड शब्द को केवल बम्बई में बनने वाली मसाला फ़िल्मों के लिए प्रयोग करना चाहिये, कला फ़िल्मों, समानांतर सिनेमा, कलकत्ता या केरल में बनने वाली फ़िल्में, इन सब को बॉलीवुड कहना गलत ह