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अँग्रेज भगवान

सलमान खान की नयी फ़िल्म "गोड तुस्सी ग्रेट हो" की तस्वीरें देख रहा था तो समझ में आया कि यह फ़िल्म अँग्रेजी में बनी अमरीकी फ़िल्म "ब्रूस आलमाईटी" का हिंदी रूप है और इसमें अमिताभ बच्चन जी भगवान का रूप निभा रहे हैं जो कि कुछ दिनों के लिए भगवान की सभी ताकतें एक नवयुवक यानि सलमान खान को दे देते हैं. विदेशी फ़िल्मों से प्रभावित हो कर उन पर हिंदी फिल्म बनाना, उसकी फ्रेम टू फ्रेम नकल करना और फ़िर साक्षात्कार देना कि नहीं हमने तो केवल प्रेरणा ली है, बहुत से फ़िल्म निर्माताओं की पुरानी आदत है. पर इतनी लापरवाही कि फ़िल्म लो पर उसे भारतीय वातावरण में ढालने की रत्ती भर कोशिश भी न करो, इसका क्या अर्थ हो सकता है? कोट पैंट पहनने वाले आफिस के मैनेजर जैसे लगने वाले भगवान भारत में किस धर्म में होते हैं भला? मैंने फ़िल्म नहीं देखी, इसलिए यह नहीं कह सकता कि सारी फ़िल्म में भगवान का यही रूप है या फ़िर जब भगवान जी धरती पर आते हैं और अपना सही रूप छुपाने के लिए कोट पैंट जैसे कपड़े पहनते हैं, जिसे वैचारिक तौर पर समझा जा सकता है क्योंकि शायद आज अगर राम या कृष्ण धरती पर आयें तो अपने पुराने रूप म

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का भविष्य

हम लोग साथ वाले पड़ोसी, साजिद भाई के आँगन में खेल रहे थे, अचानक सड़क पर लोगों को कहते सुना था कि सँजय गाँधी की मृत्यु हो गयी है. भाग कर रेडियो सुनने गये थे पर आल इँडिया रेडियो पर इसकी कोई खबर नहीं थी, तब तुरंत सुझाव उठा था कि बीबीसी लगा कर उसे सुनने की कोशिश करनी चाहिये. विपत्ती के समय पर आल इँडिया रेडियो का भरोसा नहीं कर सकते बल्कि बीबीसी का भरोसा अधिक है यह बात तो स्वयं राजीव गाँधी ने भी स्वीकारी थी जब उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि अपनी माँ इंदिरा गाँधी की मृत्यु का समाचार जब उन्हें मिला तो वह किसी यात्रा पर थे और तुरंत उन्होंने बीबीसी लगा कर यह जानना चाहा था कि इस समाचार में सच था या नहीं. यह बातें १९८० के आसपास की हैं और तब भारत में प्राईवेट टेलिविज़न नहीं थे, न ही प्राईवेट एफएम रेडियो थे. मीडिया की बात हो तो भारत में सरकारी सोच विचार अब भी पुराने ढर्रे की लगते हैं, कुछ भी बात हो सुरक्षा और आतंकवाद की दुहाई दे कर, हर क्षेत्र में बात को दबाने और निषेध लगाने की कोशिश की जाती है, हालाँकि प्राईवेट समाचार चैनलों से आज स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है. लेकिन अगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर