विधवा जीवन का "जल"
4 या 5 साल पहले जब केनेडा में रहने वाली भारतीय फिल्म निर्देशक दीपा मेहता, पृथ्वी तत्वों पर बनायी फिल्म श्रृखँला की तीसरी फिल्म "जल" की शूटिंग करने वाराणसी पहुँची थीं तो कुछ लोगों ने बहुत हल्ला किया, कहा कि वह भारतीय संस्कृति और हिंदु धर्म का मज़ाक उड़ाना चाहती हैं, विदेशियों के सामने उनकी आलोचना करना चाहती हैं. वाराणसी के कई जाने माने लोगों ने उनका साथ देने की कोशिश की पर हल्ला करने वालों के सामने उनकी एक न चली और अंत में दीपा मेहता को अपना बोरिया बिस्तर ले कर लौट जाना पड़ा. अभी कुछ समय पहले उन्होने इस फिल्म को श्रीलँका में फिल्माया और प्रदर्शित किया है. जब फिल्म देखने का मौका मिला तो वाराणसी में हुए उस हल्ले का सोच कर ही, मन में उत्सुक्ता थी कि भला क्या कहानी होगी जिससे भारतीय संस्कृति के रक्षक इतना बिगड़ रहे थे ? फिल्म का कथा सारः भारत 1938, स्वतंत्रता संग्राम में पूरा भारत जाग उठा है. छोटी बच्ची छुईया, विवाह के थोड़े से दिनों के बाद विधवा हो जाती है और उसके पिता उसका सिर मुँडवा कर, एक विधवा आश्रम में छोड़ जाते हैं. आश्रम में शासन चलता है बूढ़ी मधुमति का. छुईया पहले तो सोचती है