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मई, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बच्चन जी की कमसिन सखियाँ

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आखिरकार मुझे करण जौहर की फ़िल्म "कभी अलविदा न कहना" देखने का मौका मिल ही गया. अक्सर ऐसा होता है कि जिस फ़िल्म की बहुत बुराईयाँ सुनी हों, वह उतनी बुरी नहीं लगती, कुछ वैसा ही लगा यह फ़िल्म देख कर. फ़िल्म के बारे में पढ़ा था कि समझ में नहीं आता कि अच्छे भले प्यार करने वाले पति अभिशेख को छोड़ कर रानी मुखर्जी द्वारा अभिनेत्रित पात्र को इतने सड़ियल हीरो से किस तरह प्यार हो सकता है? मेरे विचार में इस फ़िल्म यह फ़िल्म भारत में प्रचलित परम्परागत विवाह होने वाली मानसिकता को छोड़ कर विवाह के बारे प्रचलित पश्चिमी मानसिकता से पात्रों को देखती है. यह तो भारत में होता है कि अधिकतर युवक और युवतियाँ, अनजाने से जीवन साथी से विवाह करके उसी के प्रति प्रेम महसूस करते हैं. इसके पीछे बचपन से मन में पले हमारे संस्कार होते हैं जो हमें इस बात को स्वीकार करना सिखाते हैं. इन संस्कारों के बावजूद कभी कभी, नवविवाहित जोड़े के बीच में दरारें पड़ जाती है. मेरे एक मित्र ने विवाह में अपनी पत्नी को देखा तो उसे बहुत धक्का लगा, पर उस समय मना न कर पाया, लेकिन शादी के बाद कई महीनों तक उससे बात नहीं करता था. एक अन्य मित्र

भूली बरसियाँ

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इटली का स्वतंत्रता दिवस का दिन था, 25 अप्रैल. हर साल इस दिन छुट्टी होती है पर मुझे अक्सर याद नहीं रहता कि किस बात की छुट्टी है. सुबह कुत्ते को सैर कराने निकला तो घर के सामने वृद्धों के समुदायिक केंद्र का बाग है, वहाँ देखा कि एक बूढ़े से व्यक्ति पेड़ों पर पोस्टर लगा रहे थे. हर पोस्टर पर इटली का ध्वज बना था और लिखा था, "वीवा ला राज़िस्तेंज़ा" यानि संघर्ष जिंदाबाद. मैंने उससे पूछा कि क्या बात है और पोस्टर क्यों लग रहे हैं तो उसने कुछ नाराज हो कर कहा, "यह हमारा स्वतंत्रता दिवस है". शायद उसे कुछ गुस्सा इस लिए आया था कि उसके विचार में इतना महत्वपूर्ण दिन है इसका अर्थ तो यहाँ रहने वाले हर किसी को मालूम होना चाहिये. मैंने फ़िर पूछा, "हाँ, वह तो मालूम है पर स्वतंत्रता किससे?" "मुस्सोलीनी और फासीवाद से. यहाँ बोलोनिया में उसके विरुद्ध संघर्ष करने वाले बहुत लोग थे. जँगल में छुप कर रहते थे और मुस्सोलीनी की फौज और जर्मन सिपाहियों पर हमला करते थे. बहुत से लोग मारे गये. 25 अप्रैल 1945 को अमरीकी और अँग्रेज फौजों ने इटली पर कब्जा किया था और फासीवाद तथा नाजियों की हार हुई

सौभाग्य

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"यह तुम्हारा नाम कैसे बोलते हैं?" मैंने उनसे पूछा. लम्बा हरे रँग का कुर्ता. थोड़ी सी काली, अधिकतर सफ़ेद दाढ़ी. सिर के बाल लम्बे, पीछे छोटी सी चोटी में बँधे थे. और निर्मल सौम्य मुस्कान जो दिल को छू ले. जब उनका ईमेल देखा तो स्पेम समझ कर उसे कूड़ेदान में डालने चला था क्योंकि अनुभव से मालूम है कि इतने अजीब नाम वाले तो स्पेम ही भेजते हैं. फ़िर नज़र पड़ी थी ईमेल के विषय पर जिसमें लिखा था "कल्पना के बारे में", तो रुक गया था. सँदेश में लिखा था कि वह अधिकतर भारत में रहते हैं, पर उनकी पत्नि और परिवार इटली में बोलोनिया के पास रहते हैं, वह आजकल छुट्टी में इटली आयें हैं, उन्होंने अंतर्जाल पर कल्पना के कुछ पृष्ठ देखे और वह मुझसे मिलना चाहते हैं. भारत से कोई भी आये और उससे मिलने का मौका मिले तो उसे नहीं छोड़ना चाहता. तुरंत उन्हे उत्तर लिखा और घर पर आने का न्यौता दिया. कल एक मई का दिन मिलने के लिए ठीक था क्योंकि मेरी छुट्टी थी और उन्हें शायद बोलोनिया आना ही था. Mark Dyczkowski, कितना अजीब नाम है, कौन से देश से होगा, मैं सोच रहा था. फ़िर कल सुबह अचानक मन में आया कि उनके बारे में गूगलदेव