प्रार्थना ध्वज
कल सुबह की उड़ान से भारत जाना है और इस चिट्ठे की तीन सप्ताह के लिए छुट्टी. हो सकता है कि भारत से चिट्ठे पर तस्वीरें चढ़ाने का मौका मिल जाये पर शादी के शोर शराबे में बैठ कर लिखना तो असंभव ही होगा. इसलिए आज का संदेश इस वर्ष का अंतिम संदेश है. पुराने वर्ष का अंत, कहने को तो वह भी क्मप्यूटर और अंतरजाल की तरह काल्पनिक सच्चाई (virtual reality) है, यानि सब माया है, सब कुछ हमारी अपनी सोच में है. दिन तो वैसे ही हमेशा की तरह सूरज के उगने और डूबने से बनता है, पर हम लोग उसे केलेण्डर में दिनों, महीनों, वर्षों का नाम दे देते हैं. कुछ भी हो, वर्ष का अंत कहने से, जी करता है कि पीछे मुड़ कर देखें, क्या हुआ, क्या किया, क्या नया हुआ. अंतरजाल पर बहुत सी जगह यही हो रहा है, २००५ के प्रमुख समाचारों को याद करने के लिए. मैंने अपने चिट्ठे पर एक ट्रेकिंग का प्रोग्राम लगा दिया था, जिससे पता चलता है कि कौन, कहाँ से मेरे लिखे चिट्ठे को पढ़ने आता है. उससे देखा कि पिछले महीने करीब २५० लोग इस चिट्ठे को पढ़ने आये. यह देख कर लगा कि वाह, कितने पाठक हैं जो मेरे लिखे को पढ़ने आये. फिर और गहराई में देखा तो पाया कि बहुत से लोग गूग