संदेश

मार्च, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कबूतर और कौए

चित्र
शाम को कुत्ते के साथ सैर से वापस आ रहा था कि बैंच पर चिपके कागज़ को देख कर रुक गया. बाग में पत्थर के कई बैंच बने हैं जहाँ गरमियों में लोग शाम को बाहर बैठ कर अड़ोसियों पड़ोसियों से गप्प बाजी करते हैं. कागज़ पर लिखा था, "मैं रोज़ यह बैंच साफ करती हूँ ताकि हम लोग यहाँ बैठ कर बातचीत कर सकें, पर कबूतरों की बीट से यह इतना गन्दा हो जाता है कि सफाई करना कठिन हो गया है. मैंने पहले भी इस बारे में कहा था पर शाँति से कोई बात की जाये तो शायद समझ में नहीं आती. तो मुझे अन्य तरीके भी आते हैं. कबूतरों को खाना देना कानूनी जुर्म है. एक औरत को इसके लिए 500 यूरो का जुर्माना देना पड़ा था. मैं भी पुलिस में रिपोर्ट कर सकती हूँ." पढ़ कर थोड़ी सी हँसी आई. कुछ कबूतरों की बीट के लिए इतना तमाशा! अगर आप कभी अपार्टमेंट में रहे हैं तो साथ रहते हुए पड़ोसियों के झगड़े छोटी छोटी बात पर भी कितने बढ़ सकते हें, इसका अंदाज़ा आप को हो सकता है. जहाँ हम रहते हैं वहाँ भी कुछ न कुछ झगड़े चलते ही रहते हैं. अभी तक रात को शोर मचाने का, ऊपर बालकनी से कालीन झाड़ने का और नीचे वालों के घर गंदा करने का, पार्किग में बाहर के लोगों की कार

परदे के पीछे औरत

चित्र
पामबज़ूका पर कमीलाह जानन रशीद का हिजाब (मुस्लिम औरतों का सिर ढकना) के बारे में लेख पढ़ा. कमीलाह अमरीकी-अफ्रीकी हैं और मुस्लिम हैं, और आजकल दक्षिण अफ्रीका में जोहानसबर्ग में पढ़ रही हैं. कमीलाह लिखती हैं: मुझे यह साबित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि मैं स्वतंत्र हूँ या फ़िर अमरीका में हिजाब पहन कर मैं कोई बगावत का काम कर रही हूँ... लोगों को यह यकीन दिलाना कि हिजाब मेरे सिर से ओपरेशन करके चिपकाया नहीं गया है, इसमें भी मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है... मेरा काम है यहाँ वह लिखूँ जो इस बात को खुल कर समझा सकें कि जिन लोगों ने मेरी मुक्ती की ठानी है और जो सोचते हैं कि मेरा दमन हो रहा है, वही लोग कैसे मेरा दमन करते हैं. ऐसा दमन जो हिजाब से नहीं होता, उनके मेरे बारे में सोचने से होता है क्योंकि वे मुझे अपनी मानसिक जेलों में बंद नज़रों से देखते हैं. यह कह कर कि हिजाब पहनने से मैं केवल दमन का प्रतीक बनी हूँ, आप उन्हीं पृतवादी समाजों को दृढ़ कर रहे हैं, जिनसे आप नफरत करने का दावा करते हैं. आप ने मुझे अपनी कल्पना के पिंजरे में कैद किया है और बाहर निकलने का मेरे लिए केवल एक ही रास्ता है कि मैं आप की बात

बदलते हम

1966-67 की बात है, तब हम लोग दिल्ली के करोलबाग में रहने आये थे. मेरे कामों में सुबह और शाम को दूध लाने का काम की जिम्मेदारी भी थी. यह "श्वेत क्राँती" वाले दिनों से पहले की बात है जब दिल्ली में दिल्ली मिल्क सप्लाई के डिपो होते थे और काँच की बोतलों में दूध मिलता था. नीले रंग के ढक्कन वाला संपूर्ण दूध, सफेद और नीली धारियों के ढक्कन वाला हाल्फ टोन्ड यानि जिसमें आधा मक्खन निकाल दिया गया हो, और हल्के नीले रंग के ढक्कन वाली बिना मक्खन वाला दूध. गिनी चुनी दूध की बोतलों के क्रेट आते और बूथ खुलते ही आपा धापी मच जाती, थोड़ी देर में ही दूध समाप्त हो जाता और देर से आने वाले, बिना दूध के घर वापस जाते. दूध पक्का मिले इसके लिए डिपो खुलने के कुछ घँटे पहले ही उसके सामने लाईन लगनी शुरु हो जाती. यानि सुबह चार बजे के आसपास और दोपहर को तीन बजे के आसपास. सुबह सुबह उठ कर डिपो के सामने पहले अपना पत्थर या खाली बोतल रखने जाते फ़िर, डिपो खुलने से आधा घँटा पहले वहाँ जा कर इंतज़ार करते. उसी इंतज़ार में अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता. पहले जहाँ रहते थे, वहाँ सभी बच्चे हमारे जैसे ही थे, निम्न

मेरी प्रिय महिला चित्रकार (2) - अमृता शेरगिल (1)

चित्र
भारत की शायद सबसे प्रसिद्ध महिला चित्रकार अमृता शेरगिल, भारत से बाहर कला विशेषज्ञों में उतनी पसिद्ध नहीं हैं, पर भारतीय कला क्षेत्र में उनका प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण रहा है. भारतीय विषयों, विशेषकर सामान्य स्त्रियों और गरीबों के जीवन पर बने उनके चित्र में पाराम्परिक पश्चिमी कला शैली को भारतीय परिवेश में ढालने का काम जब उन्होंने बीसवीं सदी के तीसरे दशक में प्रारम्भ किया तो वह भारतीय कला क्षेत्र के लिए नवीनता थी. भारतीय कला क्षेत्र में अपना नाम बनाने और प्रसिद्धि पाने वाली वह पहली महिला थीं. अमृता का जन्म 30 जनवरी 1913 में हँगरी की राजधानी बुदापस्ट में हुआ. उनके पिता सरदार उमराव सिंह अमृतसर के पास मजीठा से थे और पंजाब के राजसी घराने से सम्बंध रखते थे. उनकी रुचि साहित्य, आध्यात्मिकता, कला आदि क्षेत्रों में थीं. 1911 में उनकी मुलाकात हँगरी की मेरी अन्तोनेत्त से हुई जो महाराजा रंजीत सिंह के पोती राजकुमारी बम्बा के साथ भारत आईं थीं. उमराव सिंह ने अन्तोनेत्त से विवाह किया और विवाह के बाद पत्नी के साथ हँगरी चले गये जहाँ उनकी दो बेटियाँ हुई, अमृता और इंदिरा. वे दिन प्रथम विश्व महायुद्ध के थे और उन