मंगलवार, जनवरी 23, 2007

नये संयुक्त परिवार

हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई बेटी है और रिकार्दो, जो अंतोनियो का अपनी पहली पत्नी के साथ हुआ बेटा है.

माउरा के अपने पहले पति राउल और सास ससुर यानि जूलिया के दादा दादी से अच्छे सम्बंध हैं. राउल ने भी दूसरी शादी की और उनका अपनी दूसरी पत्नी सिल्विया के साथ एक बच्चा है.

अंतोनियो के भी अपनी पहली पत्नी के परिवार से अच्छे सम्बंध हैं. उनकी पहली पत्नी मोनिका का भी एक साथी है, जिसका नाम भी अंतोनियो है और जिनका अपनी पहली पत्नी से एक बेटा है, पर मोनिका और उनके वर्तमान वाले अंतोनियो का कोई आपस में बच्चा नहीं है.

कभी भी जूलिया या रिकार्दो से परिवार के बारे में कुछ बात करो तो चक्कर सा आ जाता है. समझ नहीं आता कि किसकी बात कर रहे हैं. माउरा कहती है कि इतने बड़े परिवार होने का यह फायदा है कि जब कभी उन्हें बाहर जाना हो तो बच्चों की देखभाल के लिए बेबी सिटर नहीं खोजना पड़ता, आपस में ही किसी न किसी परिवार में या फ़िर किसी दादा दादी या नाना नानी के परिवार में कोई न कोई अवश्य मिल जाता है.
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न्यू योर्क टाईमस् मेगज़ीन में भी एक अन्य तरह के नये संयुक्त परिवारों के बारे में लेख देखा. यह संयुक्त परिवार हैं समलैंगिक पुरुष तथा महिला युगलों के. समलैंगिक युवतियाँ जब बच्चों वाला परिवार चाहती हैं और अपने किसी समलैंगिक पुरुष मित्र को कृत्रिम वीर्यदान (artificial insemination) के लिए राजी करती हैं. वैसे तो कृत्रिम वीर्यदान किसी वीर्य बैंक से किसी अज्ञात व्यक्ति का भी लिया जा सकता है पर लेख के अनुसार उन्हे अपनी पसंद के जाने पहचाने युवक को अपने साथ जोड़ना बेहतर लगता है ताकि उनके बच्चे को पिता भी मिलें.

कुछ भी करने से पहले सबसे पहला काम जरुरी होता कि सारी बात स्पष्ट की जाये और किसकी क्या ज़िम्मेदारी होगी यह बात साफ़ तय की जाये. युवतियाँ अधिकतर यह माँग करती हैं कि युवक को बच्चे पर से सारे कानूनी अधिकार त्यागने होंगें और बच्चे के पालन पोषण के लिए कोई ज़िम्मेदारी नहीं उठानी पड़ेगी. यह इसलिए कि अगर आपस में न बनी तो युवक कानूनन बच्चे को लेने की कोशिश न करे. पर साथ ही वह यह भी चाहतीं हैं कि युवक बच्चे को नियमित मिले और उसके जीवन में स्नेह की दृष्टि से पिता का स्थान भरे.

इस तरह के युगलों के बच्चों को दो माँ मिलती हैं और कम से एक पिता. अगर पिता का भी स्थायी साथी हो, दो पिता भी मिल सकते हैं.
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मेरे विचार में बच्चों को स्नेहपूर्ण वातावरण की आवश्यकता होती है. अगर माता पिता की न बने और उनमें तलाक हो तो बच्चों को पीड़ा तो होगी ही पर अगर उसके बावजूद, अपने आपसी मतभेद भूल कर माँ पिता बच्चों को स्नेह का वातावरण दे सकते हें तो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कैसा संयुक्त परिवार है जहाँ बच्चा बड़ा हुआ है. आप का क्या विचार है इस बारे में?

7 टिप्‍पणियां:

  1. संजय बेंगाणी23 जनवरी 2007 को 9:00 am बजे

    हमारी राय?

    इन रिश्तो के बारे में पढ़ कर सर चक्करा रहा है. थोड़ा आधूनिक हो जाएं फिर ही राय व्यक्त कर सकते है.

    अपनी बात स्पष्ट करने के लिए एक ऐसे पुरूष की बात करता हूँ जो जन्म से तो पुरूष हैं मगर स्त्री बनना चाहता है, वह समलिंगी है. ऐसे लोगो के लिए मेरा मत है की-

    व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोत्तम है, मगर अपनी जिम्मेदारी से भागना कहाँ तक सही है. प्रकृति ने पुरूष बनाया है तो एक पुरूष का कर्तव्य निभाओ. कुछ कमी रही है तो ईलाज करवाओ. एक महिला बनने की कमना करते हुए उल्टा ईलाज करवाने से कहीं ज्यादा अच्छे परिणाम एक पुरूष बनने का ईलाज करवाना चाहिए. मन तो और भी बहुत कुछ करने को चाहता होगा, अच्छा हो अन्य मामलो की तरह इसका भी ईलाज मनोचिकित्सक से करवाया जाय.

    यह सब नैतिक या धार्मिक प्रेरणाओं से नहीं बल्कि शारीरिक जटिलताओं को ध्यान में रख कर लिखा है.

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  2. संजय बेंगाणी23 जनवरी 2007 को 9:05 am बजे

    उपर आपने लिखा है उसके अनुसार पुरूष से वीर्य तो चाहिए मगर समागम नहीं करना. क्या यह दिमागी दीवलियापन नहीं है?

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  3. ये रिश्ता पढकर तो सभी को चक्कर आ जाएगा। लेकिन आजकल भारत भी बहुत तरक्की कर रहा है, ना मानिए तो सास-बहू के सीरियल देख लीजिए, कंही एकता कपूर, इटली मे तो नही पली-बढी है?

    दूसरा समाचार काफी अच्छा है। सब कुछ सम्भव है, इस दुनिया में।

    सुनील भाई, ब्लॉग की थीम बदलो यार! बहुत दु:खी लगती है।

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  4. पहली वाली कहानी समझने के लिये MS Visio में फ्लो चार्ट बनाया, तब जाकर कुछ कुछ स्थितियां स्पष्ट हुईं. :)
    उस पूरे परिवार को मेरा साधुवाद दे देवें कि उनकी वजह से
    MS Visio का ठीक से इस्तेमाल करने का मौका मिला.

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  5. यह विषय तो ऐसा है कि जिसपर ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं । सोचने कि बात यह है कि हम किसके भले या खुशी की बात कर रहे हैं । तो सबसे पहले तो यह मान कर चलना चाहिए कि
    विवाह चाहे जल्दबाजी में किया जाए, बच्चे तभी संसार में लाए जाएँ जब व्यक्ति पूरी तरह से
    आश्वस्त हो जाए कि विवाह या यह सम्बन्ध टिकने वाला है । यदि फिर भी सम्बन्ध कड़वे हो
    जाएँ तब बच्चे की खातिर उन्हें ढोना बच्चे के प्रति अन्याय है । कोई भी बच्चा अपने माता पिता के बीच के कड़वेपन को देख सकता है और यह उसे कभी खुश नहीं होने देगा । उसके मन में परिवार की एक बहुत ही नकारार्थक सोच रहेगी । किन्तु यदि बात तलाक तक पहुँच ही जाए
    तो माउरा आदि की तरह बिना मनमुटाव के अलग हो जाना बेहतर होगा । माता पिता को
    बच्चे का मन पूर्व साथी के प्रति विषाक्त नहीं करना चाहिए । यदि हमारी किसी से निभी
    नहीं तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह बुरा ही हो ।
    समलैंगिकता आदि व्यक्तिगत पसन्द हैं, और इसे आम व्यक्ति समझ नहीं सकता । किन्तु फिर भी
    शायद बच्चे की चाह में उन्हें एक ऐसे समाज में लाना जहाँ यह रिश्ता अभी तक पूरी तरह से
    स्वीकार्य नहीं है उनके प्रति अन्याय है । वैसे असल परिवार वह है जहाँ हम एक दूसरे के दुख सुख के साथी हों,जहाँ प्रेम हो, सहयोग हो, और यदि बच्चा हो तो जहाँ बच्चा प्रसन्न रहे, जहाँ उसका लालन पालन मानसिक व शारीरिक रूप से अच्छे से हो सके ।
    पर इन सभी के लिए एक मानसिक परिपक्वता की आवश्यकता है ।

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  6. १) मुझे समलैंगिकों से बस इतना कहना है की वे अपनी जीवनशैली जीने के लिए स्वतंत्रता का हक रखते हैं लेकिन वे "विवाह" शब्द की परिभाषा से छॆडछाड ना करें. विवाह एक स्त्री और एक पुरुष के बीच ही हो सकता है इस परिभाषा का सम्मान करें. अगर दो पुरुषों को या दो स्त्रीयों को अपनी जोडी को सामाजिक और न्यायिक मान्यता दिलवानी है तो अपने गठजोडों के लिए कोई नये शब्द गढें और सटीक परिभाषा गढें जैसे की पुरुष-पुरुष का हो तो हीवाह और स्त्री-स्त्री का होतो शीवाह - विवाह कतई नहीं मैरिज कतई नहीं - इस बारे में मैं बहुत कट्टर हूं!

    २)मैं ये समझ सकता हूं की लैंगिक पुरुषत्व या स्त्रीत्व जितना शारीरिक संरचना से जुडा मामला है उतना ही मानसिक रचना से संबद्ध भी है. ये समझा जा सकता है की एक पुरुष मानसिक रूप से अपने आप को एक स्त्री के रूप में निरुपित करता हो या स्त्री अपने आपको एक पुरुष जानती हो. ये एक जटिल मामला है जिस पर अभी हमारी समझ सीमित है. ये भी ठीक है की शारीरिक सरंचना को मानसिक रचना से मिलाने के लिए लिंगपरिवर्तन आदी का सहारा ले कर ऐसा व्यक्ति बेहतर महसूस करता/करती हो - ये व्यक्तिगत मामला है - लेकिन दिक्कत होती है जब इस प्रकार के जीवों को एक दूसरे से अलग सिद्ध करते पचास शब्द और परिभाषाएं उपलब्ध होते हैं - क्रास-ड्रैसर, ट्रांसवेस्टाईट, ट्रांससेक्षुअल,शीमेल, गे, लेस्बियन, बाईसेक्षुअल, थर्ड जेंडर... ब्लाह ब्लाह!! इनमें कई मनलहरी और पथभ्रष्ट हैं - या किसी जटिल रूप में असंतुलित लोग हैं जिन के लिए समझ, सम्मान और इनकी जीवनशैली के प्रति सहनशक्ति रखना किसी भी सामान्य मर्द का या औरत के सब्र का इम्तेहान है.

    ३. दो पुरुषों वाले परिवार या दो स्त्रीयों वाले परिवार जिनमें बच्चा पाने के लिए आपके लेख में बताए उपाय किये गए हों, उनमे बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिये चाहा गया संतुलन पाना दुष्कर है. ये एक जानीमानी बात है की एक लडके को बचपन में अपने पिता से मर्दों जैसा बर्ताव करना सीखने को मिलता है - पिता की अनुपस्थिती में और मात्र स्त्रीयों द्वारा बडा किये जाने पर लडके की प्रकृति पर क्या दुष्प्रभाव होते हैं वो सब भी समझना आसान नहीं है और ये आदर्श परिस्थिती तो क्या सामन्य परिस्थिती भी नहीं है!

    ४. हमारी हिंदी में एक कहावत है "कहीं की ईंट कहीं का रोडा भानुमति ने कुनबा जोडा" - कुनबा जुड सकता है और इस कुनबे के सदस्यों में प्रेम भी पनप सकता है जो शायद किसी संयुक्त परिवार वालों के प्रेम से अधिक हो- मान लिया. लेकिन इस मिश्र-तंत्र को संयुक्त परिवार की पारंपरिक और सर्वमान्य परिभाषा में फ़िट ही नहीं किया जा सकता!

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  7. सागर चन्द नाहर25 जनवरी 2007 को 12:24 pm बजे

    लेख और टिप्पणियाँ दोनो ही मजेदार रही।
    कुछ समय पहले एक ऐसा ही लेख पढ़ा था जिसमें एक युवा लड़की ने एक अधेड़ से प्रेम विवाह कर लिआ और बाद में उस अधेड़ के युवा पुत्र ने उस लड़की की विधवा माँ से। दोनो के बच्चे हुए और जो रिश्तों का जाल बुना गया पढ़ कर बहुत मजा आया।
    वह लड़की अपनी ही माँ की सास बन गयी तो उसके बच्चे उसकी माँ के नाती होने के साथ देवर बने और माँ के बच्चे उसके भाई होने के साथ उसके पौत्र भी... उफ़्फ़.... एक बार फिर से क्न्फ्युजिया गया हूँ

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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