असली भारतीय
कौन सी पहचान है असली भारतीय की, कौन सी बोली है उसकी, यह सवाल बार बार उठते रहते हैं. इन सवालों के पीछे जो भाव छुपा होता है वह होता है कि असली भारत तो गाँवों में बसता है, असली भारतीय संस्कृति तो वह है जो विदेशी प्रभाव से बची हुई है, यानि कि गाँवों में रहने वाले उसी असली भारत की, या फ़िर पहले किसी ज़माने में होती थी हमारी असली संस्कृति, आजकल तो विदेशी फैशनों और विदेशी टीवी चैनलों ने सब बँटाधार कर दिया. शायद यह सवाल इस लिए भी उठते हैं क्योंकि अधिकाँश लोगों की स्मृतियों में वही दिन हैं जब भारत अपने आप में अधिक सिमटा हुआ था, कोई थोड़े बहुत लोग कभी सिनेमा हाल में अँग्रेजी फ़िल्म देख लेते थे पर कुछ विदेशी पर्यटकों को छोड़ कर विदेश हमारे आम जीवन का हिस्सा नहीं था. भूमण्डलीकरण और बढ़ते उपभोक्तावाद ने आज विदेशी प्रभाव को हमारे सामान्य जीवन में महसूस करना बहुत अधिक आसान कर दिया है. अगर बात भारतीय साहित्य की हो तो यही सवाल बन जाता है कि "कौन सा साहित्य असली भारतीय साहित्य है?" टूरिन में बोलते समय यह प्रश्न अँग्रेजी में लिखने वाले ख्यातिप्राप्त कई भारतीय लेखकों ने उठाया. शशि थरुर ने इस बारे म