जो सिर दर्द नहीं देते
इराकी मूल की कवियत्री, दुनया मिखाईल की एक कविता पढ़ी, बहुत अच्छी लगी (मेरा अनुवाद): उन सब को धन्यवाद जिनसे प्यार नहीं करती क्योंकि मुझे सिर दर्द नहीं देते उन्हें मुझे लम्बे पत्र नहीं लिखने पड़ते वह मेरे सपनों में आ कर नहीं सताते न उनकी प्रतीक्षा में चिता करती हूँ न उनके भविष्य अखबारों में पढ़ती हूँ न उनके टेलीफ़ोन के नम्बर मिलाती हूँ न उनके बारे में सोचती हूँ उन्हें बहुत धन्यवाद वे मेरे जीवन को उथल पथल नहीं करते *** सोच रहा था कि फ़िल्म फेस्टिवल में देखी फ़िल्मों के बारे में लिखूँ पर भूचाल से हुए विनाश नें सब बातों को भुला दिया. हालाँकि किसी जान पहचान वाले को कुछ नहीं हुआ पर ध्वस्त हुए शहर में कई बार जाना हुआ था. सुना कि पिछली बार जिस होटल में ठहरा था, वह ढह गया. लोगों की दर्द भरी कहानियाँ सुन कर मन भीग गया. शुक्रवार को एक रिचर्च प्रोजेक्ट की मीटिंग के लिए बँगलौर जाना है. दिन यूँ ही बीत जाते हैं, धर्मवीर भारती जी कविता याद आती है, "दिन यूँ ही बीत गया, अँजुरी में भरा हुआ जल जैसे रीत गया."