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जो सिर दर्द नहीं देते

इराकी मूल की कवियत्री, दुनया मिखाईल की एक कविता पढ़ी, बहुत अच्छी लगी (मेरा अनुवाद): उन सब को धन्यवाद जिनसे प्यार नहीं करती क्योंकि मुझे सिर दर्द नहीं देते उन्हें मुझे लम्बे पत्र नहीं लिखने पड़ते वह मेरे सपनों में आ कर नहीं सताते न उनकी प्रतीक्षा में चिता करती हूँ न उनके भविष्य अखबारों में पढ़ती हूँ न उनके टेलीफ़ोन के नम्बर मिलाती हूँ न उनके बारे में सोचती हूँ उन्हें बहुत धन्यवाद वे मेरे जीवन को उथल पथल नहीं करते *** सोच रहा था कि फ़िल्म फेस्टिवल में देखी फ़िल्मों के बारे में लिखूँ पर भूचाल से हुए विनाश नें सब बातों को भुला दिया. हालाँकि किसी जान पहचान वाले को कुछ नहीं हुआ पर ध्वस्त हुए शहर में कई बार जाना हुआ था. सुना कि पिछली बार जिस होटल में ठहरा था, वह ढह गया. लोगों की दर्द भरी कहानियाँ सुन कर मन भीग गया. शुक्रवार को एक रिचर्च प्रोजेक्ट की मीटिंग के लिए बँगलौर जाना है. दिन यूँ ही बीत जाते हैं, धर्मवीर भारती जी कविता याद आती है, "दिन यूँ ही बीत गया, अँजुरी में भरा हुआ जल जैसे रीत गया."

गायक का धर्मयुद्ध

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कल रात को बोलोनिया फ़िल्म फैस्टिवल उद्घाटन हुआ जिसमें मानव अधिकारों के विषय पर बनी फ़िल्मों को दिखाया जाता है. इस बार मैं लघु फ़िल्मों के फैस्टिवल की जूरी का अध्यक्ष हूँ, जिसका फ़ायदा यह है कि कहीं पर जा कर कोई भी फ़िल्म देख लो. कल रात को मैंने अमरीकी फ़िल्मकार छाई वरसाहली की फ़िल्म "आई ब्रिंग व्हाट आई लव" (Chai Varsahely, I bring what I love, USA, 2008) यानि "मैं जिससे प्यार करता हूँ, उसे लाया हूँ", जो मुझे बहुत पसंद आयी. फ़िल्म का विषय है सेनेगल के सुप्रसिद्ध गायक यासनदूर (Youssou N'Dour) का धर्मयुद्ध. सेनेगल में 94 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं पर वहाँ का इस्लाम सूफ़ी इस्लाम है जिसमें कट्टरपन नहीं, जिसमें स्त्रियाँ पर्दा नहीं करती. सेनेगल के सूफ़ी इस्लाम के सबसे बड़े संत और धार्मिक नेता हैं शेख बाम्बा जो धर्मनेता होने के साथ साथ उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय उपनिवेशी शासन के विरुद्ध भी लड़े थे. यासनदूर की कहानी शुरु होती है करीब दस साल पहले जब कोई उनसे प्रश्न पूछता है कि वह रमजान के महीने में गाना क्यों नहीं गाते, क्या इसका कारण है कि इस्लाम में संगीत को हराम मान