संगीत कक्ष
कुछ दिन पहले नमिता देवीदयाल की किताब "द म्यूज़िक रूम" यानि "संगीत कक्ष" पढ़ी जो मुझे बहुत अच्छी लगी (The Music Room, Namita Devidayal, Random House India, 2007) . इस किताब को किसी श्रेणी में बाँधना आसान नहीं. यह नमिता जी की आत्मकथा भी है और उनकी संगीत शिक्षका धोँधुताई की जीवनकथा भी. बीच में धोँधुताई के गुरु, जयपुर घराने के सुप्रसिद्ध गायक अल्लादिया खान के परिवार की कहानी भी है और साथ ही इसमें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जानने समझने की बातें भी हैं. इन सब परिभाषाओं से लग सकता है कि किताब रुखी, पढ़ाकू लोगों के पढ़ने वाले ग्रँथों के किस्म की किताब हो, पर सच में यह किताब किसी उपन्यास से अधिक रोचक है. भारत में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जानने वाले बहुत अधिक नहीं हैं. भीमसेन जोशी, कुमार गँधर्व, विलायत खान और ज़ाकिर हुसैन जैसे लोगों के नाम और काम को जानने वाले अवश्य ही हिंदी फ़िल्मों मे गाने वालों या इंडियन आइडल जैसे कार्यक्रम जीतने वालों से बहुत कम ही होंगे. शास्त्रीय संगीत बलिदान और जीवन भर की उपासना माँगता है और बदले में संगीत साधना का सुख देता है, और आज की भौतिकवाद