आज कल यहाँ हमारे शहर बोलोनिया (Bologna, Italy) में अंतर्राष्ट्रीय कला मेला चल रहा है जिसमें शहर भर में पचासों कला प्रदर्शनियाँ लगी हैं. मेरी दृष्टि में कला का ध्येय केवल आँखों को अच्छा लगना ही नहीं है बल्कि दुनिया को नयी नज़र यानि कलाकार की दृष्टि से देखना भी है. सोचा कि इस तरह का मौका मिले कि विभिन्न देशों के जाने माने कलाकारों का काम देखने को मिले तो छोड़ना नहीं चाहिये. लेकिन सभी कला प्रदर्शनियों को देखने जाने के लिए तो सारा दिन भी काफ़ी नहीं था, इसलिए सोचा कि केवल शहर के प्राचीन केद्र के आसपास लगी कला प्रदर्शनियों को देखने जाऊँगा.
मध्ययुगीन इटली में सुरक्षा के लिए शहरों के आसपास ऊँची दीवारें बनायी जाती थीं और शहर के घेरे के केन्द्र में एक बड़ा खुला सा मैदान बनाया जाता था जहाँ जन समारोह के लिए शहर के सब लोग इकट्ठे हो सकते थे. इसी मैदान के पास शहर का सबसे बड़ा गिरजाघर यानि कैथेड्रल होता था, नगरपालिका का भवन और बड़े रईसों के घर भी. इस तरह से इटली के हर छोड़े बड़े शहर में यह प्राचीन केन्द्र होते हैं, जहाँ खुला मैदान होने से वहाँ अक्सर साँस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. मेरा विचार था कि वहीं जाया जाये क्योंकि वहाँ आसपास ही बहुत सी प्रदर्शनियाँ लगी हैं जिनके लिए चलना भी कम पड़ता. शहर के अन्य हिस्सों में लगी कला प्रदर्शनियों को देखने जाता तो इधर उधर जाने में आधा समय निकला जाता.
शाम को सात बजे घर से निकला तो अँधेरा घना हो रहा था और तापमान शून्य से कुछ नीचे ही था. केन्द्र में पहुँचा तो सबसे पहला मेरा पड़ाव था "कला तथा विज्ञान" के विषय पर लगी प्रदर्शनी. इस प्रदर्शनी का ध्येय था आधुनिक जीवन में कला और विज्ञान के मिलन से किस तरह हमारा जीवन बदल रहा है, उसे दिखाना. फेसबुक, गूगल तथा यूट्यूब जैसी इंटरनेट की तकनीकें, नेनो तकनीकी का विकास, मानव डीएनए के नक्शे जैसी विज्ञान की खोजों, आदि से आज का हमारा जीवन, कला को जानना परखना, सामाजिक समस्याएँ जैसे स्त्री पर गृह और पारिवारिक हिँसा या एल्सहाईमर जैसी बीमारियाँ, यह सब कुछ बदल रहा है. यह प्रदर्शनी इसी बदलाव को दिखलाती थी.
कला यात्रा का मेरा दूसरा पड़ाव था अमरीकी कलाकार किकी स्मिथ की बनी "खड़ी हुई नग्न आकृति", जिसमें उन्होंने नग्न स्त्री मूर्ति को बनाया है. किकी के शिल्प का विषय अक्सर नारी होता है लेकिन वह आम तौर के बनाये जाने वाले शिल्प जिसमें नारी शरीर की सुन्दरता या रूमानी रूप दिखाने पर ज़ोर होता है, उसमें वह विश्वास नहीं करतीं. उनके शिल्प की औरतों के शरीर सामान्य लोगों के शरीर होते हैं और इन आकृतियों से वह सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान खींचती है, विषेशकर औरतों पर होने वाली समस्याओं की ओर, जैसे कि हिँसा और सामाजिक शोषण.
इसके बाद मैं मिस्री शिल्पकार मुआताज़ नस्र की बनायी शिल्पकला "प्रेम की मीनारें" देखने गया. इस शिल्प में उन्होंने सात विभिन्न तत्वों से भिन्न धर्मस्थलों की मीनारें बनायी हैं. यह तत्व हैं मिट्टी, काठ, शीशा, क्रिस्टल और कुछ धातुएँ. सभी मीनारों की नोक पर अरबी भाषा में एक ही शब्द लिखा हुआ था. मेरे विचार में उन्होंने अवश्य उन मीनारों पर अपनी भाषा में "प्रेम" या "खुदा" लिखा होगा, लेकिन सच में क्या लिखा है यह तो कोई अरबी जानने वाला ही बता सकता है.
इसके बाद मैं वहाँ करीब बने प्राचीन राजभवन में गया जहाँ प्राचीन कला का संग्रहालय है. यह जगह मुझे बहुत पसंद है और इस संग्रहालय में मैंने कई बार कई घँटे बिताये हैं. संग्रहालय के बाहर के हाल की दीवारों और छत पर मनमोहक चित्रकारी है जिसके गहरे काले, कथई और भूरे रंग मुझे बहुत भाते हैं, जी करता है कि उन्हें देखता ही रहूँ. इसी हाल में फ्राँस के राजा नेपोलियन ने बोलोनिया की सैना को 1796 में हरा कर अपना शासन की घोषणा की थी.
कला संग्रहालय की छत पर जो चित्रकारी की गयी है उसे "त्रोम्प लोई" (Trompe-l'oiel) यानि "आँख का धोखा" कहते हैं. इसकी चित्रकारी इस तरह की है जिससे पत्थर की नक्काशी का धोखा होता है. संग्रहालय की छत पर इतने सुन्दर चित्र बने हैं कि जी करता है ऊपर ही देखते रहो. पर चूँकि ऊपर देखने से गर्दन दुखने लगती है, मैं छत की तस्वीरें खींच लेता हूँ और उन्हें कम्प्यूटर पर आराम से देखना अधिक पसंद करता हूँ. अगली तस्वीर में "आँख का धोखे" का एक नमूना प्रस्तुत है, आप बताईये कि यह पत्थर की नक्काशी लगती है या नहीं?
आजकल बोलोनिया में और यूरोप में करीब करीब हर शहर में, अधिकतर जगहों पर, संग्रहालयों आदि में तस्वीर खींचने की स्वतंत्रता है, बस फ्लैश का उपयोग करना मना है क्योंकि फ्लैश की तेज रोशनी से पुरानी कलाकृतियों को नुक्सान हो सकता है और संग्रहालय में घूम रहे अन्य लोगों को भी परेशानी होती है. इस तरह तस्वीरें लेने की छूट होने का फायदा है कि जो लोग यहाँ आते हैं वह फेसबुक, गूगल प्लस और यूट्यूब आदि से यहाँ की कलाकृतियों के बारे में लोगों को बताते हैं और संग्रहालय को मुफ्त में विज्ञापन मिल जाते हैं.
प्राचीन कला संग्रहालय में इतालवी कलाकार मेस्त्राँजेलो की दो कलाकृतियाँ लगी थी. मुझे उनकी कलाकृति "कोगनिती दिफैंसोर" यानि "ज्ञान की रक्षा" अच्छी लगी, जिसमें उन्होंने अठाहरवीं शताब्दी की किताबों को ले कर उन्हें रंग बिरंगी रोशनी वाली तारों से सिल दिया है.
मेरा अगला पड़ाव था एक छोटी सी सड़क पर लगी नये युवा कलाकारों की प्रदर्शनी जहाँ कलाकृतियों के साथ ही एक वाईनबार भी था जहाँ पर एक डीजे संगीत बजा रहे थे और लोग कलाकृतियों के आसपास नाच रहे थे या वाईन की चुस्कियाँ लेते हुए बातें कर रहे थे. जैसा कि आप अनुमान लगा सकते हैं यहाँ पर नवयुवकों की बहुत भीड़ थी. मुझे यहाँ लगी कलाकृतियों में इतालवी युवा फोटोग्राफर पाओला सन्डे की तस्वीर अच्छी लगी जिसमें उन्होंने एक कपड़े सिलने वाली फैक्टरी में एक लाल स्कर्ट पहने हुए मोडल की तस्वीरों को मिला कर नयी तस्वीर बनायी है, लगता है कि फैक्टरी में काम करने वाली युवतियाँ मोडल को विभिन्न तरीकों से सिल रही हैं. आप चाहें तो पाओला सन्डे की तस्वीरों को उनके वेबपृष्ठ पर देख सकते हैं.
इसके बाद मैं पुरात्तव संग्रहालय में लगी कला प्रदर्शनी को देखने गया, जहाँ मुझे नीना फिशर तथा मारोअन अल सनी की वीडियो कला "डिस्टोपिक स्पैलिंग" ने प्रभावित किया. इस वीडियो कलाकृति में इन दो कलाकारों ने जापान के एक द्वीप की कहानी को लिया है जहाँ 1974 तक कोयले की खाने थीं और लोग रहते थे, पर अब वहाँ कोई नहीं रहता और खानें बन्द हो गयी हैं. वीडियो में एक तरफ़ एक जापानी स्कूल की लड़कियाँ हैं जो द्वीप के वीरान स्कूल के खेल के मैदान में मिल कर अपने शरीरों से जापानी भाषा में शब्द लिखती हैं और दूसरी ओर पुराने वीरान स्कूल के कमरों की और लड़कियों की फ़िल्म चलती है, जिसमें पीछे से आवाजें हैं - उस द्वीप पर बड़े होने वाले एक युवक की जो पुराने दिनों के बारे में बताता है, और एक जापानी फँतासी फ़िल्म की जिसमें फ़िल्म में होने वाली हिँसा के विवरण हैं. सब कुछ इस तरह से मिला जुला है कि कला अनुभव में अतीत, आज, सत्य, फँतासी सब मिल जाते हैं.
मेरा अगला पड़ाव था बोलोनिया विश्वविद्यालय का पँद्रहवीं शताब्दी का प्राचीन भवन. यह भवन बहुत सुन्दर है, इसकी दीवारों पर यूरोप के प्राचीन घरानो से आने वाले विद्यार्थियों के राज परिवारों के हज़ारों चिन्ह सजे हैं. इस भवन के प्रागंण में इतालवी कलाकार फाबियो माउरी की कलाकृति "हार" थी जिसमें उन्होंने "हार" को श्वेत ध्वज से दर्शित किया था. मुझे उनकी कलाकृति कोई विषेश नहीं लगी, लेकिन उस सुन्दर भवन की रात की रोशनी में दिखती सुन्दरता की वजह से, सब मिला कर बहुत अच्छा लगा.
अब तक चलते घूमते मुझे थकान होने लगी थी तो सोचा कि बोलोनिया के मध्ययुगीन कला संग्रहालय में मेरा अंतिम पड़ाव होगा. यहाँ पर संग्रहालय के प्राँगण में फ्लावियो फावेल्ली की कलाकृति "कम्युनिस्ट पार्टी को वोट दीजिये" कुछ अलग लगी. उन्होंने नीचे लकड़ी और उस पर लगे पुराने विज्ञापन के चित्र को बहुत खूबी से बनाया है.
बाहर निकला तो साथ के फावा भवन से बहुत से लोगों को बाहर आते देखा. हालाँकि अब तक पैर दुखने लगे थे फ़िर भी वहाँ घुस कर अन्य कलाकृतियों को देखने के लोभ को रोक नहीं पाया. वहाँ कलाकृतियों के बीच में एक युवती पियानो का संगीत बजा रही थी, जिससे शिल्पकला और संगीत दोनो का साथ आनन्द मिल रहा था. मुझे वहाँ दो कलाकृतियाँ बहुत अच्छी लगी - लूचियो फोन्ताना की नीले रंग की "ओलिम्पिक चैम्पियन" की मूर्ति और आर्तुरो मार्तीनी की मिट्टी की बनी "पागल माँ".
अंत में बाहर निकला तो बस स्टाप तक चल कर जाने में कठिनाई हो रही थी, करीब आधी रात होने वाली थी. कला प्रदर्शनियों में पाँच घँटे घूमा था. बीच में एक क्षण के लिए भी कहीं बैठ कर आराम नहीं किया था.
इसलिए थकान तो बहुत थी पर मन में संतोष भी था कि कुछ समय के लिए अपनी गाड़ी की कला की टंकी फुल भरवा ली थी. आप बताईये आप को कैसे लगी मेरी यह कला यात्रा?
***