संदेश

जुलाई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भाषा, लिपि और लेखनी

चित्र
आजकल अक्सर हिंदी के शब्द अँग्रेज़ी यानि रोमन लिपि में लिखे हुए दिखने लगे हैं. ईमेल से या मोबाईल पर एस.एम.एस से या फ़िर गूगल टाक या फैसबुक पर चेट, बहुत सी बातें होती तो हिंदी में हैं लेकिन सहूलियत के लिए लिखी रोमन लिपि में जाती है. भारतीय नामों को अगर रोमन लिपि में देखा जाये तो अक्सर पता नहीं चलता कि उनका सही उच्चारण क्या है, क्योंकि अँग्रेज़ी भाषा तथा रोमन लिपि में बहुत से स्वर होते ही नहीं. कुछ साल पहले जर्मनी में रहने वाले एक भारतीय डाक्टर हमारे यहाँ बोलोनिया आये, नाम था गोपाल दाबड़े. तब वह यही कह रहे थे कि यहाँ यूरोप के लोग उनके नाम को कितनी अलग अलग तरह से कहते हैं. यानि अँग्रेज़ी भाषा के अलावा अन्य यूरोपीय भाषाओं को देखें तो दिक्कतें और भी बढ़ जाती हैं, क्योंकि बहुत सी भाषाओं में रोमन लिपि का ही प्रयोग होता है पर उनका उच्चारण अलग अलग है, जिससे दाबड़े का डाबड, डाबडे, दाबदे, दबदे, कुछ भी बन सकता है. इन्हीं बातों के अनुभव से सोच रहा था कि क्या धीरे धीरे हमारी हिंदी के कुछ स्वर जो अन्य भाषाओं में नहीं होते, लुप्त हो जायेंगे? वैसे तो एशिया में अन्य कई देश हैं, जैसे इंदोनेशिया, फिलि

कोमिक्स साहित्य

चित्र
बचपन में बेताल की कोम्किस पढ़ना मुझे वहुत अच्छा लगता था. तब इंद्रजाल कोमिक्स के नाम से यह पत्रिकाएँ आती थीं. कुछ साल बाद जब अंग्रेज़ी बोलने समझने की क्षमता बढ़ी तो आर्ची, जगहेड, सुपरमैन, स्पाईडरमैन जैसी कोमिक्स कुछ दिन पढ़ीं पर उनमें मेरी कोई विषेश दिलचस्पी नहीं बनी, और धीरे धीरे मेरा कोमिक्स पढ़ना बंद हो गया. तब लगता कि इस तरह की कोमिक्स की किताबें या पत्रिकाएँ केवल बच्चों के पढ़ने के लिए होती हैं. इटली में आये तो पहले जापानी चित्रकथाओं से परिचय हुआ, जब मेरा बेटा इनका दीवाना था. उस समय जापानी कामिक्स "मैंगा" (Manga) और जापानी कार्टून फिल्मों "एनीम" (Anime) से परिचय हुआ. बहुत साल के बाद अमर चित्र कथा का नाम सुनाई देने लगा, जिसमें पंचतंत्र, रामायण और महाभारत की कहानियाँ प्रस्तुत की जाती थीं. उस समय विदेशों में इनका प्रसार करते समय कहा जाता कि वे भारत से दूर पैदा हुए भारतीय मूल के बच्चों को भारत की संस्कृति के बारे में बताने का यह अच्छा तरीका है, कि चित्रकथाओं के माध्यम से बच्चे धर्म, परम्पराओं के बारे में भी जानेंगे और साथ ही हिंदी का अभ्यास भी हो जायेगा. तभी यह

पिँजरे के पंछी

चित्र
अमरीकी महाद्वीप के बहुत से हिस्सों में इतिहास बस कुछ सौ साल पुराना ही दिखता है, उससे पहले का इतिहास, कोलोम्बस के बाद आये यूरोपीय उपनिपेश से मिट कर, दब कर, कहीं गुम हो चुका है. "यह भवन शहर के सबसे प्राचीन भवनों में से है", हमारी साथी और गाईड तानिया ने बताया था. ऊँची दीवारें और काले रंग से पुते ऊँचे गेट के पीछे से भवन दिख नहीं रहा था. गेट पर बड़ा भारी सा ताला लगा था. उसे खोला गया और गाड़ी भीतर गयी, तो सामने वैसा ही एक अन्य गेट था, जिसे खोलने से पहले, पहले वाला गेट बंद किया गया, उस पर ताला लगाया गया. "मिल्ट्री वालों की बटालियन वहाँ तैनात रहती है, उन्हें अस्पताल में अंदर आना मना है", तानिया ने एक कोने में बंदूक ले कर खड़े सिपाहियों की ओर इशारा कर के कहा. हरी भरी घास से घिरा, वह पुराना भवन सुंदर लग रहा था. घास पर इधर उधर पीले वस्त्रों में बहुत से पुरुष थे, एक ओर पीले रंग की मेज़ और कुर्सियाँ थीं, जिन पर और पीले वस्त्र पहने पुरुष बैठे थे. लगा कि कोई बसंत मेला लगा हो. "यहाँ किसी व्यक्ति की तस्वीर नहीं खींच सकते", तानिया ने मुझे कैमरा बाहर निकालते देख कर कहा त