चित्रों पर आधारित भाषाओं में अक्षर नहीं होते, शब्द होते हैं. जब कोई नया शब्द आये तो आप को सबसे पहले उससे मिलते जुलते ध्वनी वाले शब्द खोजने पड़ते हैं जिनको मिला कर आप वह नया शब्द बना सकते हैं. मेरे नाम को ही लीजिए, सुनील. मंदारिन में लिखने के लिए मैं इससे मिलते जुलते शब्द खोजने लगा तो मुझे मिलेः
1. "ज़ू" यानि पैर - शब्दचित्र को ध्यान से देखिए, थोड़ी सी कल्पना से देखें तो इसमें आप को आदमी का सिर, हाथ और नीचे, लम्बा पैर दिखाई देगा.
2. "नि" यानि तुम, तुम्हारे - इसके शब्दचित्र में एक व्यक्ति खड़ा है तराजू के सामने जिस पर बैठा है एक और व्यक्ति
3. "लि" यानि आलूबुखारे का पेड़ + यह शब्दचित्र दो निशानों को मिला कर बना है, ऊपर है पेड़ का निशान और नीचे है बच्चे का निशान, यानि वह पेड़ जो बच्चों को पसंद है, यानि आलूबुखारा
और सबको मिला कर पढ़ियेः ज़ूनिलि यानि सुनील
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एक बार चीनी में अपना नाम लिखने लगा तो सोचा क्यों न यही काम मिस्र (Egypt) की पुरानी चित्रों पर आधारित भाषा (hieroglyphs) में भी किया जाये. मिस्र की यह भाषा पुराने पिरामिडों के साथ जुड़ी हुई है. इसमें वस्तुओं के चित्र किसी वस्तु की बात भी कर सकते हैं और उससे जुड़े विचारों की भी.
पहले प्रस्तुत है "देस" यानि चाकू. चित्र देख कर अर्थ पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होती.
अब बारी है "परवेर" की, यानि कि पूजा स्थल या छोटा मंदिर, यह भी आसानी से पहचाना जाता है.
यह है "आ" यानि द्वार, इसे पहचानने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है पर सोचिये कि एक दरवाजा जमीन पर रखा है तो पहचाना जायेगा. इसका स्वर और अर्थ हिंदी से मिलते हैं.
अंत में देखिये "का" यानि गुस्से में भरा बैल, नंदी. "का" को शाँत खड़े बैल से भी बनाया जा सकता है पर मुझे गुस्से से सिर मारता बैल अधिक अच्छा लगा.
मिस्र की भाषा लिखने वालों ने चीनी भाषा की कठिनाई से निकलने का तरीका भी ढ़ूँढ लिया था. अगर चित्रों को एक वर्गाकार रेखा की परिधी में बंद कर देगें तो हर शब्द का पहला स्वर अक्षर का काम करेगा. यानि ऊपर लिखे चित्रशब्दों को मिला दें और डिब्बे में बंद कर दें तो बनेगा "दपाक". दीपक ठीक से नहीं बना पाया, क्योंकि मेरा मिस्र की भाषा का ज्ञान कमजोर है!
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कल सुबह मुझे मिस्र की राजधानी कैरो जाना है इसलिए कुछ दिनों के लिए चिट्ठा लिखने से छुट्टी.