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फ़रवरी, 2006 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खो गये हैं कहाँ ?

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कल दिन सुंदर था, धूप निकली थी, मैं साइकल ले कर शहर के प्रमुख चौबारे "पियात्सा माजोरे" जा पहुँचा. पियात्सा का अंग्रेज़ी में अनुवाद होगा, "स्कावायर" यानि समभुज चकोराकार, पर मैंने आज तक कोई समभुज चकोराकार रुप का चौबारा नहीं देखा इस लिए मेरे विचार से इसका सही अंग्रेज़ी अनुवाद रेक्टेंगल होना चाहिये था. चौबारों का इतालवी सामाजिक जीवन में बहुत महत्व है. यहाँ लोग मित्रों को मिलते हैं, अपने नये कपड़े पहन कर सैर करते हैं औरों को दिखाने के लिए, खेल तमाशा देखते हैं, बैठ कर चाय काफी पीते हैं. इस लिए पियात्सा माजोरे में हमेशा भीड़ सी लगी रहती है जो मुझे बहुत अच्छी लगती है. कल सब तरफ प्रोदी को समर्थको की भीड़ थी, जो प्रधानमंत्री पद के अपने उम्मीदवार के लिए वोट माँग रहे थे. ९ अप्रैल को राष्ट्रीय चुनाव होने वाले हैं इटली में और प्रधानमंत्री पद के दो प्रमुख नेता हैं सिलवियो बरलुस्कोनी और रोमानो प्रोदी. बरलुस्कोनी जी जो इस समय प्रधानमंत्री हैं, कानून की झँझटों में फँसे हैं पर उनका जनता पर बहुत प्रभाव रहा है. करोड़पति हैं, कई अखबारों, पत्रिकाओं, टेलीविजन चेनलों के मालिक भी, पर कहते हैं कि

लुक्का छुप्पी

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पिछले महीने दिल्ली से वापस आते समय, साथ में "रंग दे बसंती" फिल्म के संगीत का कैसेट ले कर आये थे. इधर कुछ दिनों से कार में वही कैसेट चल रहा है. शुरु शुरु में तो गाने और संगीत कुछ विषेश नहीं लगे थे, पर कुछ बार सुन कर बहुत अच्छे लगने लगे हैं. भगत सिंह, राजगुरु आदि का गीत "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है", बचपन से जाने कितनी बार सुना और गाया होगा पर उनके शब्दों के बारे में कभी गहराई से सोचा नहीं था. मालूम नहीं कि यह "रंग दे बसंती" में इस गीत को कहने की तरीके की वजह से है या फ़िर गाड़ी में अकेले बैठे, बिना किसी अन्य शोर इत्यादि के सुनने की वजह से, पर इस बार इस गीत के शब्द सुन कर रौंगटे खड़े हो गये. पर फिल्म का सबसे अच्छा गीत मुझे लगा "लुक्का छुप्पी, बहुत हुई सामने आजा ना", शायद इस लिए कि उम्र के साथ मेरी नज़र भी धुँधली पड़ने लगी है! गीत के कुछ अंश लोरी जैसे लगते हैं और लता जी की गाई हुई लोरियों का कौन मुकाबला कर सकता है. यह सोच कर कि यह गीत पचहत्तर साल की औरत गा रही है, कुछ अजीब भी लगता है और लता जी की आवाज़

प्रेमी से जीवनसाथी (२)

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ऐसी जीवनसाथी होनी चाहिए जिसके साथ बैठ कर साहित्य, दर्शन शास्त्र, धर्म जैसे विषयों पर बात कर सकूँ, यह सोचता था. जिससे प्रेम हुआ और विवाह किया, उसे हल्का फुल्का पढ़ने का शौक तो है पर गँभीर बातों पर बहस करने का बिल्कुल नहीं. पर इसके बदले में उसे तरह तरह के पकवान बनाने, घर का काम करने, कपड़े बनाने आदि जैसे शौक हैं. सुबह सुबह उठ कर काफी और नाश्ता बनाती है, काम पर ले जाने के लिए खाना बनाती है. इतालवी हो कर भी, इन सब मामलों में मुझे वह पुराने ज़माने की भारतीय पत्नी सी लगती है. आराम की आदत पड़ गयी है, और जब गम्भीर बहस का दिल करता है तो बहुत मित्र हैं. और कोई न हो तो चिट्ठा जगत में बहुत से निठल्ले बैठे हैं, उनसे बात हो जाती है. :-) हमारी धर्मपत्नी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी बहुत गम्भीरता से लेती हैं. प्रेम करने से पहले इस बारे में कभी ठीक से नहीं सोचा था. अड़ोस पड़ोस में कहीं किसी को कुछ चाहिए तो हमारी श्रीमति जी को याद कर लेता है. आप की तबियत ठीक नहीं है, बाजार से कुछ लाना है ? आप का कुछ काम है पर आप के पास समय नहीं है ? अपना दुखड़ा रो कर आप किसी को उल्लु बनाने की ताक में हैं ? एक्सीडेंट हो गया, अस्पता

प्रेमी से जीवनसाथी

आदर्श प्रेमी या प्रेमिका ? कुछ बेतुका सा सवाल नहीं हैं यह क्या ? प्रेम क्या पूछ कर आता है किसी से या आने से पहले सर्वे करने का समय देता है ताकि आप सवाल जवाब कर सकें ? जब प्रेम का बुखार थोड़ा कम होता है और कुछ सोचने बूझने की समझ आती है, तब तक गुण अगुण गिनने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है. जब प्रत्यक्षा जी का संदेश पढ़ा "आप को टैग किया है" तो कुछ ठीक से समझ नहीं आया. फिर उनका आदर्श प्रेमी वाला लेख पढ़ा तो सोचा कि शायद अनूगूँज का नया तरीका निकला है. इन दिनों काम में ऐसा फँसा हूँ कि कुछ दिनों तक कुछ चिट्ठे लिखने पढ़ने का मौका ही नहीं मिला और मैं इस बात को भूल गया. आज सुबह सोचा कि कुछ चिट्ठे पढ़े जायें तो पाया कि यह टेगिंग रोग तो फ्लू से भी भयँकर रुप से फैल रहा है. सभी इस बीमारी में अटके हैं हाँलाकि विषय कुछ कुछ अदल बदल हो रहा है, कभी कोई प्रेमी प्रेमिका की बात करता है तो कभी कोई जीवन साथी की. हीर राँझा और सोहनी महवाल जैसे प्रसिद्ध प्रेमियों का सोच कर तो यही ठीक लगता है कि आदर्श प्रेमी तो वही जो अपनी प्रेमिका को जीवन साथी बनाने से पहले ही खुदा को प्यारा हो जाये, यानि प्रेम को रुमानी ध