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सिँधू घाटी से यूरोप तक भाषा की यात्रा

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सँस्कृत तथा उससे जुड़ी विभिन्न भारतीय भाषाओं को इँडोयूरोपी (Indo-European) भाषाओं में गिना जाता है. यह सब भाषाएँ एक ही भाषा-परिवार का हिस्सा है जो पूर्व में भारत से ले कर पश्चिम में यूरोप तक जाता है. विश्व में चार सौ से अधिक इँडोयूरोपी भाषाओं को पहचाना गया है. इन इँडोयूरोपी भाषाओं की मूल स्रोत भाषा कहाँ से उपजी और शुरु हुई, विश्व में कैसे फ़ैली तथा भारत में कैसे आयी, इस विषय पर कैनेडा के एक लेखक श्री विम बोर्सबूम ( Wim Borsboom ) ने एक नया विचार रखा है. उनके अनुसार इँडोयूरोपी भाषाओं का स्रोत उत्तर पश्चिमी भारत में सिँधू घाटी में था और यह वहाँ से यूरोप तक फ़ैली. इस आलेख में उन्हीं के कुछ विचारों की चर्चा है. विम बोर्सबूम से मेरा परिचय कुछ माह पहले मेरी एक इतालवी मित्र, क्रिस्टीना ने कराया. उसने मुझे कहा कि विम ने इँडोयुरोपी भाषाओं के बारे में एक किताब लिखी है और इस किताब के सिलसिले में वह भारत में दौरे का कार्यक्रम बना रहे हैं, और उन्हें कुछ सहायता की आवश्यकता है. विम चाहते थे कि विभिन्न भारतीय शहरों में विश्वविद्यालयों, संग्रहालयों तथा साँस्कृतिक संस्थानों आदि के साथ जुड़ कर उनकी किताब