जातिवाद को बदलना
हम लोग यात्रा में मिले थे. वह मुझसे करीब चालिस वर्ष छोटा था. बातों बातों में जाति की बात उठी तो वह बोला कि भारत में जातिवाद बहुत उपयोगी है, इससे समाज के हर व्यक्ति को मालूम रहता है कि समाज में उसका क्या स्थान है और उसे क्या काम करना चाहिये. मुझे पहले तो कुछ हँसी आयी, सोचा कि शायद वह मज़ाक कर रहा है. मैंने कहा, "तो तुम्हारा मतलब है कि सबको अपनी जाति के अनुसार ही काम करना चाहिये? यानि अगर कोई झाड़ू सफ़ाई का काम करता है तो उसके बच्चों को भी केवल यही काम करना चाहिये?" वह बोला, "हाँ. अगर वह नहीं करेंगे तो यह सब काम कौन करेगा?" इस तरह की सोच वाले पढ़े लिखे लोग आज की दुनिया में होंगे, यह नहीं सोचा था. मालूम है कि भारत में जातिवाद की जड़े बहुत गहरी हैं और यह जातिवाद बहुत क्रूर तथा मानवताविहीन भी हैं. समाचार पत्रों में इसके बारे में अक्सर दिल दहलाने वाले समाचार छपते हैं. यह भी मालूम है कि बहुत से पढ़े लिखे लोग सोचते हैं कि विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई में या नौकरी में दलित तथा पिछड़ी जाति के लोगों के लिए रिर्ज़वेश्न गलत है या कम होना चाहिये. लेकिन आज की दुनिया में शहर में