कुछ दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी के प्रोग्राम वाले श्री समय रैना और अन्य विदूषकों को आदेश दिया कि वे अपने कार्यक्रम में विकलांग और बीमार व्यक्तियों की खिल्ली उड़ाने के लिए उनसे क्षमा माँगें।
हर भाषा में कमज़ोर, अल्पसंख्यक, नीचे देखे-माने जाने वाले समुदायों के व्यक्तियों के लिए ऐसे शब्द होते हैं जिनसे उनकी कमज़ोर तथा अवाँछनीय सामाजिक स्थिति पर ज़ोर दिया जाता है। वैश्या, अँधा, बहरा, लूला, अछूत, गँवार, पागल जैसे शब्द इनके कुछ उदाहरण हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद १९४८ में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सार्वभौमिक मानव अधिकारों के घोषणापत्र को अपनाया। उसके बाद से विभिन्न वंचित समुदायों ने शब्दों की हिंसा के बारे में बात करनी शुरु की और कहा कि उनके लिए नये शब्द होने चाहिए जिनसे उनकी मानव अस्मिता को स्वीकारा जाये और उनकी छवि सकारात्मक बने।
लेकिन यह संघर्ष बहुत पहले से चल रहे थे। जैसे कि गाँधीजी ने "हरिजन" शब्द का प्रयोग १९३२ में किया था क्योंकि वह सोचते थे कि अछूत की जगह हरिजन कहने से अस्पृश्यता निवारण में मदद मिलेगी।
लेकिन केवल भाषा बदलने से व्यक्तियों की स्थिति नहीं सुधरती और कई बार, समय के साथ नये शब्द भी नकारात्मक बन जाते हैं। जैसे कि समय के साथ 'हरिजन' शब्द के बदले 'दलित' शब्द का उपयोग बेहतर माना गया, जबकि आजकल कुछ लोग भीमटा या भीमवादी शब्द का प्रयोग भी करते हैं।
इस तरह के समय के साथ नये शब्दों के नकारात्मक बदलाव एक अन्य उदाहरण है मन्दबुद्धि बच्चों के लिए अंग्रेज़ी में पहले 'इम्बेसाईल' (नासमझ) शब्द का प्रयोग होता था, उसे बदल कर 'ईडियट' (बेवकूफ) किया गया, फ़िर जब ईडियट शब्द को बुरा माना गया तो 'लो इटेलिजैंस' (मन्द बुद्धि), 'इटेलेक्चुअल डिसएबिल्टी' (मानसिक विकलाँता) जैसे शब्द खोजे गये। आजकल इन सभी शब्दों का प्रयोग न करने के लिए कहते हैं और उनकी जगह पर 'लर्निन्ग डिसएबिल्टी' (सीखने की विकलाँगता) शब्द का प्रयोग करने के लिए कहते हैं। (नीचे की छवि इसी विषय पर हुई मंगोलिया में एक मीटिन्ग से है)
शब्दों के बदलाव में जिस समुदाय की बात हो रही हो, उसके लोग स्वयं अपने लिए शब्द चुनना पसंद करते हैं। जैसे कि कुछ वर्ष पहले भारत सरकार ने 'विकलाँग' के बदले 'दिव्याँग' शब्द का प्रयोग रखा, लेकिन बहुत से विकलाँग व्यक्तियों ने इस नये शब्द का विरोध किया है।
शब्दों से जुड़ी हिंसा की बहसें सबसे अधिक अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विषेशकर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर होती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय घोषणापत्रों और समझौतों में कौन से शब्दों का प्रयोग होना चाहिये। कई बार मुझे लगता है कि सालों तक इन बहसों में लड़ने-झगड़ने वाले लोगों को अपने आप को बड़ा एक्टिविस्ट दिखाने और बढ़-चढ़ कर बोलने में अधिक दिलचस्पी होती है, जबकि उनके देशों में गाँवों-शहरों में रहने वाले लोगों को इस सबसे कुछ फायदा नहीं होता क्योंकि इन बहसों का उनकी अपनी भाषाओ में कुछ सार्थिकता नहीं होती।
जैसे कि विकलांगों के सम्बंध में मैंने सालों तक 'डिसएब्लड पर्सन' (विकलाँग व्यक्ति) और 'पर्सन विद डिसएबिलिटी' (व्यक्ति जो विकलाँग है) में से कौन सा शब्द बेहतर है इस पर हज़ारों अंतर्राष्ट्रीय बहसें देखी हैं। अंत में यह फैसला हुआ कि 'पर्सन विद डिसएबिल्टी' का प्रयोग होना चाहिेये क्योंकि इसमें पर्सन (व्यक्ति) शब्द पहले आता है, जिससे उसकी विकलाँगता को नहीं बल्कि उसके व्यक्ति होने को अधिक महत्व देते हैं। आज अगर आप किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में गलती से 'डिसएब्लड पर्सन' बोल दें तो कुछ लोग बहुत क्रोधित हो जाते हैं, आप को निकालने की धमकियाँ देते हैं।
मैं सोचता हूँ कि इस सारी बहस का हमारे देशों में रहने वाले लाखों विकलाँग व्यक्तियों पर क्या असर पड़ता है? कितने हिंदी बोलने वाले, 'विकलाँग व्यक्ति' के बदले में 'व्यक्ति जो विकलाँग हैं' बोलना चाहेंगे?
मेरे विचार में भाषाओं में हिंसा होती है, क्योंकि समाजों में हिँसा होती है और भाषाएँ समाजों के प्रतिबिम्ब होती हैं। समाज की हिंसा से लड़े बिना, भाषा की हिंसा से लड़ने का क्या फायदा है?
मेरे विचार में व्यक्तियों को नीचा दिखाने वाले शब्दों को बदलने का पहला कदम उन व्यक्तियों की आत्मचेतना है जिससे उन्हें अपनी स्थिति की समझ आये, वह स्वयं उस शब्द को अस्वीकार करें। यह पहला कदम आसान नहीं है क्योंकि हम जिन समाजों में पलते और बड़े होते हैं, वह बचपन से हमारी सोच को प्रभावित करता है। बचपन से अपने लिए सुनी नकारत्मक बातें हमारे भीतर घर बना कर रहती हैं, हम खुद अपने आप को नीचा, कमज़ोर, मानने लगते हैं।
इसका दूसरा कदम है कि अपने लिए नया शब्द चुनना और उसके लिए लड़ना, लेकिन वह केवल शब्द बदलने की लड़ाई नहीं होती। उसके साथ एक दूसरी बड़ी लड़ाई भी होती है जिसमें वह अपनी सामाजिक स्थिति के बदलाव तथा उत्थान के लिए भी लड़ते हैं।
अगर आप किसी ऐसे समुदाय से हैं जिनके लिए नकारात्मक शब्दों का प्रयोग होता है, तो आप इस बारे में अपनी राय टिप्पणी के माध्यम से अवश्य दें कि आप इस विषय में क्या सोचते हैं और आप का व्यक्तिगत अनुभव क्या बताता है?
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