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लिखनेवाले के लिए सबसे बड़ी सुख होता है उसे पढ़नेवालों की राय जानना. इस दृष्टि से चिट्ठा लिखना, लेखन की अन्य सभी विधाओं से बेहतर है क्योंकि पढ़ने वाले चाहें तो सीधा ही उसपर अपनी राय दे सकते हैं.
बचपन में हिंदी लेखिका शिवानी मुझे बहुत पसंद थीं, पर उनसे कभी सीधा कोई सम्पर्क नहीं हुआ. फ़िर कुछ वर्ष पहले छोटी बहन से सुना कि अमरीका में शिवानी जी उसके ही क्लिनिक में साथ काम करने वाले एक डाक्टर की सम्बंधीं हैं और उनके घर पर ठहरीं हैं. लगा कि हाँ, अपने प्रिय लेखक से सम्पर्क हो सकता है पर इससे कुछ समय बाद ही मालूम चला कि शिवानी जी नहीं रहीं.
फ़िर अचानक पिछले वर्ष अमरीका से शिवानी जी के पुत्र का संदेश मिला. उन्होंने कल्पना पर शिवानी जी के बारे में मेरा लिखा पढ़ा था जो उन्हे अच्छा लगा था. लगा जैसे कोई पूजा थी, जिसके लिए मुझे वरदान मिल गया हो.
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मैंने अपनी एक इतालवी मित्र को अपनी नई लाल मेज़ और अलमारी के बनाने की कठिनाईओं के बारे में बताया और लिखा कि यह अलमारी मेरे लिए ताजमहल जैसी है.
मेरी मित्र ने मुझे उत्तर में लिखा है, "मैंने शब्दकोश में ढूँढा, वहाँ लिखा है कि ताजमहल मुगल भवन निर्माण कला का उच्च उदाहरण है जिसे एक राजा ने अपनी रानी की कब्र के लिए बनवाया था, समझ नहीं आया कि इसका तुम्हारी मेज से क्या सम्बंध हो सकता है, ज़रा ठीक से समझाओ ?"
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आज कल वर्ल्डकप के दिन हैं. जिस दिन इटली का कोई खेल होता है, उस समय सड़कें ऐसे खाली हो जाती हैं जैसे भारत में क्रिकेट के मैच के दौरान होता है, जब भारत खेल रहा हो. हर तरफ सड़कों और घरों पर इटली के झँडे दिखाई देते हैं. जब लगे कि कोई गोल होने वाला है तो हर ओर से ऐसी ध्वनि उठती है जो दूर से सुनाई देती है, और फ़िर अगर गोल हो जाये तो बादलों की गरज जैसी बन जाती है.
कल दोपहर को इटली और आस्ट्रेलिया का मैच था. हर तरफ सन्नाटा था. पर वह गूँजने वाली ध्वनि नहीं थी हर तरफं. जो दिखता, कुछ परेशान सा दिखता. अंतिम मिनट तक वह सन्नाटा रहा फ़िर आखिर जब गोल हुआ तो वह सन्नाटा टूटा. यानि कि अब अगले मैच का इंतज़ार है.
मैंने स्वयं कभी कोई फुटबाल का मैच टेलीविजन पर पूरा नहीं देखा, सिवाय एक बार, 1982 में जब इटली ने वर्ल्डकप जीता था. उस रात का पागलपन अभी तक याद है. उत्तरी इटली के एक छोटे से शहर में रहते थे और लगता था कि सारा शहर सड़कों पर निकल आया था, नाचने गाने के लिए.
अगर बार बार जीत होती रहे तो शायद उत्साह कम हो जाये पर जब कभी कभार हो तो आनंद दुगना हो जाता है.
मुझसे मेरे कुछ इतालवी मित्रों ने पूछा कि अगर फाइनल का मुकाबला इटली और भारत के बीच हो तो मैं किसकी जीत चाहूँगा ? मैंने कहा कि इटली में किसी को क्रिकेट का नाम भी ठीक से नहीं आता, भला फाईनल में साथ कैसे मुकाबला हो सकता है ? वह बोले, नहीं कल्पना करो कि फुटबाल में अगर ऐसा हो तो ?
तब सोच कर मैंने कहा, सच में चाहूँगा कि भारत जीते, क्योंकि कुछ भी हो मन से सबसे पहले भारतीय ही हूँ. पर इससे एक और फायदा यह होगा कि हम लोग क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के बारे में भी सोचेंगे, पर अगर भारत न भी जीता तो उतना दुख नहीं होगा क्योंकि यह मुकाबला तो माँ पिता का मुकाबले की तरह हुआ, एक तरफ वह देश है जिसने जन्म दिया, दूसरी ओर ससुराल का देश है.