कल सुबह हड़बड़ी में लिखा था चिट्ठा, इसलिए गड़बड़ हो गयी. चिट्ठे का शीर्षक लिखा "कैसे आऊँ पिया के नगर" पर उसमें बातें कम्प्यूटर, मोडम, सर्वर और कुत्तों की थीं, पिया के नगर का कोई नामोनिशान ही नहीं था. शायद ऐसा होने का कारण है कि कुछ सोच कर शीर्षक लिखता हूँ कि आज का चिट्ठा इस बारे में होगा, पर फिर जब लिखने लगता हूँ तो विचार कभी कभी किसी अन्य दिशा में चले जाते हैं. अगर हड़बड़ी न हो, तो अंत में कोई नया शीर्षक ढ़ूंढ़ा जाता है और चिट्ठा तैयार हो जाता है.
पर क्या सब बात केवल हड़बड़ी की थी ? अगर आप मनोविज्ञान जानते हैं तो समझ गये होंगे कि जल्दबाजी में की हुई गलती में मन की छुपी हुई बातें भी कई बार निकल कर आ सकती हैं. अगर इस दृष्टि से देखें तो इस शीर्षक से सपष्ट समझ में आता है कि शादीशुदा होने के वावजूद मेरी कहीं कोई छिपी हुई प्रेमिका है जिससे मैं मिलने को बेताब था. क्या खयाल है आप का ? या फिर इस शीर्षक में भक्त्ती भाव भी ढ़ूंढ़ा जा सकता है जैसे मन्नाडे जी के गीत "लागा चुनरी में दाग, छुपाऊँ कैसे" में था. यानी कि जिस "पिया" से मैं मिलने को बेचैन हूँ, वह इश्वर है. राम नाम सत्य!
कुछ वर्ष पहले मैंने एक कोर्स किया था कि कैसे हाथ कि लिखाई से लिखने वाले के व्यक्तित्व को समझें. यानी आप अगर कागज़ के दाहिने हाशिये की तरफ खाली जगह छोड़ देते हैं तो इसका अर्थ है कि आप को भविष्य से डर है और आप उसका सामना नहीं करना चाहते. अगर आप बायें हाशिये पर जगह छोड़ देते हैं तो आप अपने बीते हुए कल से भागने के चक्कर में हैं. अगर बिना लाइन के कागज पर आप सीधा एक लकीर में लिखते हैं तो, आप में भयंकर आत्मसंयम है, अगर शब्द ऊपर की ओर जा रहे हैं तो आप आशावादी हैं और अगर शब्द नीचे जा रहे हैं तो निराशावादी. इस कला के विशेषज्ञ तो केवल हाथ की लिखाई से पहचान लेते हैं कि आप असली खूनी हैं या नहीं. अगर आप सोचते हैं कि मैं यूँ ही लम्बी हाँक रहा हूँ तो पढ़िये इस बारे में. अमरीका में लिखाई विशेषज्ञ की गवाही कानून में भी स्वीकार की जाती है.
मेरे इस चिट्ठे से तो आप समझ ही गये होंगे कि मुझमें भयंकर आत्मसंयम है. तो इन कम्प्यूटर, एस एम एस, आदि की दुनिया में यह विशेषज्ञ शायद बेकार हो रहे होंगे ? नहीं, अब यह देखते हैं कि आप कौन सा फौंट इस्तेमाल करते हैं, छोटा फौंट पसंद करते हैं या बड़ा, इत्यादि. अगर आप यूनीफौंट में विश्वास रखते हैं तो आप प्रगतिवादी हैं ...
अगर आप के पास कोई नये विचार हों कि कैसे चिट्ठे से उसके लिखने वाले की बेवकूफी को मापा जाये तो मुझसे संपर्क करें. तब तक, आज की तस्वीरों से आप यह समझने की कोशिश कीजिये कि मैंने इन्हें क्यों चुना ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पिछले तीन-चार सौ वर्षों को " लिखाई की दुनिया " कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय में मानव इतिहास में पहली बार लिखने-पढ़ने की क्षमता ...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया ...
-
हमारे घर में एक छोटा सा बाग है, मैं उसे रुमाली बाग कहता हूँ, क्योंकि वो छोटे से रुमाल जैसा है। उसमें एक झूला है, बाहर की सड़क की ओर पीठ किये,...
-
हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई ...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
गृत्समद आश्रम के प्रमुख ऋषि विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे, जब उन्हें समाचार मिला कि उनसे मिलने उनके बचपन के मित्र विश्वामित्र आश्रम के ऋषि ग...
यह तो फिर कभी सोचूंगा कि आपने यह क्यों लिखा पर बताना चाहता हूं कि आपके ब्लाग तथा खूबसूरत फोटुओं का मैं मुरीद हूं।
जवाब देंहटाएं