सुबह और शाम जब गावों में गायें धूलि उड़ाती हुई, घंटियां बजाती हुई चलती हैं, शहरों में धूँआ उगलती, होर्न बजाती बस और स्कूटर पर काम से लोग लौटते हैं, हमारा कुकुरमुत्ता बाग जाने का समय हो जाता है. जिन जिन के यहाँ कुत्ते हैं वह अपने लाडलों और लाडलियों को ले कर सैर के लिए निकल पड़ते हैं. हमारे परिवार में यही नियम है कि अगर मैं घर पर हूँ तो यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं समय पर अपने कुत्ते को उसकी मल मूत्र (क्षमा कीजिये पर इन शब्दो के लिए पर इस बारे में बात करने का कोई अन्य तरीका भी नहीं है) आदि की जरुरतों के लिए बाहर सैर पर ले जाऊँ.
शहरों में जहाँ एक बिल्डिंग में रह कर भी, अपने पड़ोसियों को नहीं पहचानने का नियम है, कुत्ते आप की जान पहचान बढ़ाने का काम करते हैं. अन्य कुत्ता स्वामियों से पहचान तो अपने आप ही हो जाती है क्योंकि कुत्तों ने अभी "पड़ोसियों को न पहचानने" वाले नियम के बारे में नहीं सुना, और शायद सुनना ही नहीं चाहते. उनके इलावा, अन्य लोग जो अकेलेपन को महसूस करते हैं, जैसे घर के बड़े बूढ़े, उनसे भी जान पहचान कुत्तों के बहाने आसानी से हो जाती है. हालाँकि कभी कभी यह जान पहचान कुछ अजीब सी होती है, जैसे हमारे बाग में, हम सभी कुत्तों के नाम तो जानते हैं, उनके मालिकों से हमेशा हँस कर दुआ सलाम होता है पर हमें किसी का भी नाम नहीं मालूम. यानि हम लोगों को "एशिया के मालिक", "टक्की की मालकिन", "साशा की वह मोटी मालकिन", के नामों से याद रखते हैं.
इसमे गलती उनकी नहीं कि अपना नाम नहीं बताना चाहते, हमारे कुत्ते की है जो घर में गुमसुम सा भोला भाला रहता है पर बाहर निकलते ही बाकी कुत्तों को देखते ही या तो "भौंकना चैम्पियन" बन जाता है या शक्त्ति कपूर की तरह अपनी सभी सखियों के ऊपर चढ़ने की कोशिश करता है, इसलिए किसी से ठीक से बात करने का मौका नहीं मिलता.
पर जिसने भी यह सोचा कि जहाँ कुत्ते मूतते हैं वहाँ कुकुरमुत्ते निकल आते हैं, यह ठीक नहीं है. हमने अपने वैज्ञानिक जाँच से इसकी गहराई में जाँच पड़ताल की है. अगर यह सच होता तो हमारा बाग अब तक कुकुरमुत्तों का जंगल बन गया होता, पर हमारे बाग में कभी एक भी कुकुरमुत्ता नहीं दिखाई दिया.
आज हमारे कुकुरमुत्ता बाग से दो तस्वीरें:
सोमवार, सितंबर 05, 2005
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