कल सुबह का चिट्ठा कुछ भावावेश में लिखा था. शाम को दुबारा पढ़ा तो लगा कि अपनी बात को ठीक से नहीं व्यक्त्त कर पाया. अनूप, जितेंद्र और नितिन के चिट्ठों की बात की पर उनके लिंक भी नहीं दिये. असल में सब कुछ अनूप के मेरे पन्ने में लिखे बाजपेयी सर के बारे में पढ़ कर शुरु हुआ. अनूप ने बहुत अच्छा लिखा है, और दिल से लिखा है. पढ़ कर सोच रहा था कि मेरा किसी शिक्षक से ऐसा संबध नहीं बना, पर अगर यह सोचूँ कि किससे मुझे क्या मिला, तो कई नाम और चेहरे याद आ जाते हैं.
मिडिल स्कूल के हिंदी के गुरु जी, प्रीमेडिकल के दौरान भौतिकी के गुरु और मेडिकल कालिज से निकलने के बाद, कर्मभूमि मे काम कर रहे गुरु जिनके साथ काम करने का मौका मिला. फिर सोचा उनके बारे में जो बिल्कुल अच्छे नहीं लगते थे, लगता था कि उन्हें किस्मत ने हमें तंग करने के लिए ही हमारे जीवन में भेजा हो. पर उनसे भी कुछ सीखने का मौका मिला और ऐसे ही एक नापसंद से गुरु की वजह से ही मेरा जीवन बदल गया. यह सब सोचा शाम को, बाग में कुत्ते के साथ सैर करते हुए.
पर फिर सोचा कि बजाय यह सोचने के मुझे क्या मिला, उन्हें क्या मिला अच्छे गुरु बन कर ? अपने एक गुरु जी के लाचारी के अंतिम दिनों की बात याद आ गयी. सारा जीवन इमानदारी और आदर्शों का जीता जागता उदाहरण थे और उनकी बहुत सी बातें मेरा हिस्सा बन गयीं हैं. यही क्षोभ और ग्लानी थे मेरे कल के चिट्ठे में, सबसे पहले स्वयं से फिर उस समाज से, जहाँ ऐसे लोग गरीबी और लाचारी मे मरते हैं. गुस्सा था उनके बच्चों पर जो पढ़ लिख कर, अच्छे पदों पर हो कर भी, उन्हें इस लाचारी में अकेला छोड़ गये थे.
अतुल ने लिखा है, "मेरे गुरुजी भी आम आदमी थे.उनके सामने तमाम मानवीय चुनौतियां थीं. वे ट्यूशन भी पढाते थे उन लड़कों को जो उनसे पढ़ने आते थे.उनकी पारिवारिक समस्यायें भी थीं .जिन्दगी बिता दी किराये के मकान में जब मकान बन पाया तो रहने के लिये वो नहीं थे.बडी़ लडकी विधवा हो गयी ४०-४५ की उमर में .यह् सदमा भी रहा.अपने छोटे बेटे के भविष्य को लेकर काफी चितित रहे.इन सारी आपा-धापी के बीच वे सदैव अपने मानस पुत्रों के उन्नयन के लिये निस्वार्थ् लगे रहे." यह समझता हूँ कि कठिनाईयाँ तो किसी भी जीवन में हो सकती हैं, चाहे आप शिक्षक हों या कुछ और. उन्हीं को याद करेंगे लोग जिसने सब कठिनाईयों के होते हुए अपने जीवक को औरों के जीवन सँवारने में लगाया हो.
आज की तस्वीरें हैं दक्षिण अमरिकी देश, गुयाना से, जहाँ ६० प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं.
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आपकी टिप्पणी /लेख पढ़ने के बाद कल गया गुरुमाता से मिलने.तमाम यादें ताजा हुयीं फिर से. जल्द ही मैं कुछ और लोगों के विचार भी बताऊंगा अपने गुरुजी के बारे में.
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