बुधवार, सितंबर 06, 2006

दुर्गा माँ की वापसी

बिनिल का टेलीफ़ोन आया, बोला कि एक बहुत आवश्यक काम के लिए उसे मेरी सहायता की आवश्यकता है, कब मिल सकते हैं? बिनिल यहाँ की "सनातन साँस्कृतिक परिषद" का सभापति है. इस परिषद के सदस्य हैं भारत और बँगलादेश से आये बोलोनिया में रहनेवाले करीब ४० बँगाली हिंदु परिवार. दिक्कत यह है कि परिषद में किसी को भी ठीक से बँगला के अलावा कोई अन्य भाषा नहीं बोलनी आती. जबसे बिनिल को मालूम हुआ कि मुझे कुछ कुछ बँगला की समझ है तो तब से मुझे उनकी परिषद में माननीय सलाहकार की पदवी मिल गयी है जिसका अर्थ है कि जब भी बिनिल को किसी काम के लिए इतालवी या अँग्रेज़ी में कुछ तैयार करना होता है या फ़िर क्मप्यूटर पर कुछ करना होता है तो वह मुझे ही टेलीफ़ोन करते हैं.

शाम को बिनिल हमारे घर आया तो मालूम हुआ कि आवश्यक काम है आनेवाली दुर्गा पूजा के लिए विभिन्न भाषाओं में कुछ पोस्टर आदि बनाना.

बिनिल बात करते समय कुछ शब्द हिंदी के बोलता है और बाकि सर्राटेदार बँगला में. मैं बार बार कहता हूँ, "बिनिल बाबू, बेशी बाँगला आमारके बोलते पाड़बे ना, ओल्पो ओल्पो जानिश", यानि कि अगर आप इस तरह तेजी से बोलेंगे तो कुछ नहीं समझ सकता, धीरे धीरे बोलिये. हाँ कह कर सिर हिलाता है पर थोड़ी देर में फ़िर यह भूल जाता है.

पूजा प्रारम्भ होगी २८ सितम्बर को अधिवास से और उस दिन तो बस अधिवास पूजा ही होगी जब दुर्गा माँ की मूर्ती ला कर स्थापित की जायेगी. पूजा का महूर्त उनके पँडित ने बताया है शाम छहः बज कर तीस मिनट से ले कर रात आठ बज कर उन्नतीस मिनट.

"पर प्रोग्राम में लिखेंगे कि पूजा रात आठ बज कर उन्नतीस मिनट तक होगी तो कुछ अजीब सा नहीं लगेगा? मैंने पूछा. बिनिल मेरी तरफ़ बहुत दया से देखता है जब मैं ऐसे बेवकूफ़ी वाले प्रश्न पूछता हूँ. जब पँडित जी ने महूर्त का समय बताया है तो इसमे अज़ीब क्या? उसके कहने का तात्पर्य है कि हिंदू धर्म के प्रति मेरी श्रद्धा में कुछ कमी है.

"अच्छा साईं बाबा के बारे में आप का क्या विचार है?", इस बार प्रश्न पूछने की बारी बिनिल की थी. साई बाबा! मुझे पहले तो समझ नहीं आया क्या कहूँ. बहुत साल पहले दिल्ली में मेरी सीमा मौसी को साई बाबा की भक्ति का भूत चढ़ा था. उनके घर में एक बहुत बड़ी तस्वीर लगी थी जहाँ घर में आनेवाले सभी को जा कर दर्शन कराये जाते थे. "बाबा जी की विभूति", तस्वीर के सामने उन्होंने मुझे इशारा किया था. "विभूति माने क्या?, मैंने पूछा.

"बाबा का चमत्कार. उनकी तस्वीर से यह विभूति अपने आप ही आ जाती है!" कहते हुए उन्होंने हाथ जोड़ दिये थे. शायद मौसा की सिगरेट की राख होगी जो हवा से उड़ कर वहाँ गिर गयी, मैंने मन ही मन कहा था और सोचा था कि भारत में उनके इतने गरीब भक्त हैं उनका जीवन सुधारते तो चमत्कार होता. खैर अपने परिवार की यह सब पुरानी बातें बिनिल को क्या सुनाता, बोला, "साई बाबा का क्या? वह तो बहुत चमत्कार करते है, सुना है."

साई बाबा की एसोशियेशन वाले दुर्गा पूजा में "भोजन" करना चाहते हैं. पिछले साल भी किया था पर यह बात परिषद के सभी सदस्यों को अच्छी नहीं लगी थी, जिनका विचार था कि साईबाबा मुसलमान हैं. बँगलादेश से आये हिंदू इस पूजा में मुसलमानों से जुड़ा कुछ भी नहीं चाहते. कुछ देर लगी मुझे समझने में कि बात भोजन की नहीं भजन की थी. पर मुझे क्या मालूम था साई बाबा के बारे में जो इसका उत्तर देता? वह केवल हिंदुओं द्वारा पूजे जाते हैं या फ़िर उनके भक्तों में मुसलमान भी हैं, यह मुझे नहीं मालूम. सोचा कि चुपचाप सिर हिलाने में ही भलाई है. नहीं साईंबाबा मुसलमान नहीं हैं, अंत में बिनिल ने निर्णय लिया.

पाँच दिन का प्रोग्राम लिखने में दो घँटे निकल गये. बस बिनिल बाबू अब आप जाईये, मैंने कहा. पत्नी मुझे तीखी नजर से देख रही थी. ड्राईंगरुम में बैठे थे हम, इसलिए आज उसने टीवी नहीं देखा था. मैंने खाना भी नहीं खाया था और अभी कुत्ते को सैर कराना बाकी था. बेमन से उठे बिनिल बाबू जैसे कि मुझे छोड़ते समय बहुत दुख हो रहा हो, फ़िर जाते जाते, दरवाजे पर रुक गये, "आप इस प्रोग्राम को बँगला में भी लिख सकते हैं क्या क्मप्यूटर पर?"

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही व्यथा बयान की है।

    आपके लिए एक टूल है जिसका आप प्रयोग कर सकते है, आपकी राह और आसान हो जायेगी।

    टूल का नाम है गिरगिट
    बाँयी तरफ़ आप देवनागिरी मे( स्पोकेन बाँगला मे) वाक्य लिखिए और और बाँगला भाषा सिलेक्ट करके उसका बाँगला वर्जन ले लीजिए।

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  2. उदाहरण ये रहा:
    বিনিল বাবূ, বেশী বাঁগলা আমারকে বোলতে পাড়বে না, ওল্পো ওল্পো জানিশ

    अब ये कित्ता सही है ये तो बिनिल बाबू ही बता सकते है।

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  3. "आठ बज कर उन्नतीस मिनट"

    मजेदार है !

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  4. सुनिलबाबू नये नये टूल भले ही आजमाइये पर आपको लिखना आता हैं यह पता दुसरों को लगना आपके लिए खतरा होगा :) लिखते रहीयो फिर...
    अच्छा हो आप उन्हे भी कमप्युटर तथा स्थानिय भाषाएं सिखने के लिए प्रेरित करें.

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  5. Osta! ..... Ma cosa hai scritto per avere 4 commenti in poco più di tre ore????
    :-))))))
    Ciao ;-) Mariangela

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  6. विवरण मज़ेदार है,दुविधा कुछ पेंचदार है, कैसे बाहर निकलेंगे अब इसका इंतज़ार है।

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  7. "बाबा जी की विभूति", तस्वीर के सामने उन्होंने मुझे इशारा किया था. "विभूति माने क्या?, मैंने पूछा.

    भाई साहब,
    उसे विभूति नहीं भभूति कहते हैं।

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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