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बुधवार, सितंबर 17, 2014

जीवन बदलने वाली शिक्षा

शिक्षा को जीवन की व्यवाहरिक आवश्यकताओं को पाने के माध्यम, विषेशकर नौकरी पाने के रास्ते के रूप मे देखा जाता है. यानि शिक्षा का उद्देश्य है लिखना, पढ़ना सीखना, जानकारी पाना, काम सीखना और जीवन यापन के लिए नौकरी पाना.

शिक्षा के कुछ अन्य उद्देश्य भी हैं जैसे अनुशासन सीखना, नैतिक मू्ल्य समझना, चरित्रवान व परिपक्व व्यक्तित्व बनाना आदि, लेकिन इन सब उद्देश्यों को आज शायद कम महत्वपूर्ण माना जाता है.

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

ब्राज़ील के शिक्षाविद् पाउलो फ्रेइरे (Paulo Freire) ने शिक्षा को पिछड़े व शोषित जन द्वारा सामाजिक विषमताओं से लड़ने तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने के माध्यम की दृष्टि से देखा. इस आलेख में पाउले फ्रेइरे के विचारों के बारे में और उनसे जुड़े अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभवों की बात करना चाहता हूँ.

पाउलो फ्रेइरे के विचारों से मेरा पहला परिचय 1988 के आसपास हुआ जब मैं पहली बार ब्राज़ील गया था. उस समय मेरा काम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण से जुड़ा था, तब शिक्षण का मेरा सारा अनुभव लोगों को लैक्चर या भाषण देने का था, जिस तरह से मैंने स्वयं स्कूल और मेडिकल कोलिज में अपने शिक्षकों तथा प्रोफेसरों को पढ़ाते देखा था. ब्राज़ील में लोगों ने मुझे फ्रेइरे की व्यस्कों के लिए बनायी शिक्षा पद्धिति की बात बतायी जिसका सार था कि व्यस्कों की शिक्षा तभी सफल होती है जब वह उन लोगों के जीवन के अनुभवों से जुड़ी हो, जिसमें वे स्वयं निणर्य लें कि वह पढ़ना सीखना चाहते हैं, उनको भाषण देने से शिक्षा नहीं मिलती.

उन्हीं वर्षों में मुझे उत्तर पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाउ में कुछ काम करने का मौका भी मिला, जहाँ पर पाउलो फ्रेइरे ने भी कुछ वर्षों तक काम किया था. वहाँ भी उनके शिक्षा सम्बंधी विचारों को समझने का मौका मिला. तब से मैंने अपनी कार्यशैली में, स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रशिक्षण से ले कर सामाजिक शोध में फ्रेइरे के विचारों का उपयोग करना सीखा है.

पाउलो फ्रेइरे की क्राँतीकारी शिक्षा

फ्रेइरे ब्राज़ील में 1950-60 के दशक में पिछड़े वर्ग के गरीब अनपढ़ व्यस्कों को पढ़ना लिखना सिखाने के ब्राज़ील के राष्ट्रीय कार्यक्रम में काम करते थे. ब्राज़ील में तानाशाही सरकार आने से उनके काम को उस सरकार ने अपने अपने विरुद्ध एक खतरे की तरह देखा और उन्हें देशनिकाला दिया.

इस वजह से फ्रेइरे ने 1960-70 के दशक में बहुत वर्ष ब्राज़ील के बाहर स्विटज़रलैंड में जेनेवा शहर में बिताये. उन्होंने व्यस्क शिक्षा के अपने अनुभवों पर कई पुस्तकें लिखीं, जिन्होंने दुनिया भर के शिक्षाविषेशज्ञों को प्रभावित किया. फ्रेइरे का कहना था कि अपनी शिक्षा में व्यस्कों को सक्रिय हिस्सा लेना चाहिये और शिक्षा उनके परिवेश में उनकी समस्याओं से पूरी तरह जुड़ी होनी चाहिये.

Paulo Freiere & Brazilian experiences

उनका विचार था कि व्यस्क शिक्षा का उद्देश्य लिखना पढ़ना सीखने के साथ साथ समाज का आलोचनात्मक संज्ञाकरण है जिसमें गरीब व शोषित व्यक्तियों को अपने समाजों, परिवेशों, परिस्थितियों और उनके कारणों को समझने की शक्ति मिले ताकि वे अपने पिछड़ेपन और गरीबी के कारण समझे और उन कारणों से लड़ने के लिए सशक्त हों. इसके लिए उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय में पढ़ाने से पहले, शिक्षक को पहले वहाँ अनुशोध करना चाहिये और समझना चाहिये कि वहाँ के लोग किन शब्दों का प्रयोग करते हैं, उनकी क्या चिँताएँ हैं, वे क्या सोचते हैं, आदि. फ़िर शिक्षक को कोशिश करनी चाहिये कि उसकी शिक्षा उन्हीं शब्दों, चिताँओं आदि से जुड़ी हुई हो.

फ्रेइरे की शिक्षा पद्धति को सरल रूप में समझने के लिए हम एक उदाहरण देख सकते हैं. वर्णमाला का "क, ख, ग" पढ़ाते समय "स" से "सेब" नहीं बल्कि "सरकार" या "साहूकार" या "समाज" भी हो सकता है. इस तरह से "स" से बने शब्द को समझाने के लिए शिक्षक इस विषय से जुड़ी विभिन्न बातों पर वार्तालाप व बहस प्रारम्भ करता है जिसमें पढ़ने वालों को वर्णमाला सीखने के साथ साथ, अपनी सामाजिक परिस्थिति को समझने में भी मदद मिलती है - सरकार कैसे बनती है, कौन चुनाव में खड़ा होता है, क्यों हम वोट देते हैं, सरकार किस तरह से काम करती है, क्यों गरीब लोगों के लिए सरकार काम नहीं करती, इत्यादि. या फ़िर, क्यों साहूकार के पास जाना पड़ता है, किस तरह की ज़रूरते हैं हमारे जीवन में, किस तरह के ऋण की सुविधा होनी चाहिये, इत्यादि.

इस तरह वर्णमाला का हर वर्ण, पढ़ने वालों के लिए नये शब्द सीखने के साथ साथ, लिखना पढ़ना सीखने के साथ साथ, उनको अपनी परिस्थिति समझने का अवसर बन जाता है. फ्रेइरे मानते थे कि व्यस्क गरीबों का पढ़ना लिखना व्यक्तिगत कार्य नहीं सामुदायिक कार्य है, जिससे वह जल्दी सीखते हैं और साथ साथ उनकी आलोचनक संज्ञा का विकास होता है, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें.

फ्रेइरे के विचारों को दुनिया में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है, केवल व्यस्कों की शिक्षा पर नहीं बल्कि अन्य बहुत सी दिशाओं में भी. मैं इस सिलसिले में ब्राज़ील से सम्बंधित तीन छोटे छोटे अनुभवों के बारे में कहना चाहुँगा, जहाँ उनके कुछ विचारों को प्रतिदिन अभ्यास में लाया जाता है.

आशाघर की साँस्कृतिक लड़ाई

गोयास वेल्यो शहर, ब्राज़ील के मध्य भाग में गोयास राज्य की पुरानी राजधानी था. पुर्तगाली शासकों ने यहाँ रहने वाले मूल निवासियों को मार दिया या भगा दिया, और उनकी जगह अफ्रीका से लोगों को खेतों में काम करने के लिए दास बना कर लाया गया. इस तरह से गोयास वेल्यो में आज ब्राज़ील के मूल निवासियों, अफ्रीकी दासों की संतानों तथा यूरोपीय परिवारों के सम्मिश्रण से बने विभिन्न रंगों व जातियों के लोग मिलते हैं.

जैसे भारत में गोरे रंग के प्रति आदर व प्रेम की भावनाएँ तथा त्वचा के काले रंग के प्रति हीन भावना मिलती हैं, ब्राज़ील में भी कुछ वैसा ही है ‍‌- वहाँ का समाज यूरोपीय मूल के सुनहरे बालों और गोरे चेहरों को अधिक महत्व देता है तथा अफ्रीकी या ब्राज़ील की जनजातियों को हीन मानता है.

इस तरह की सोच का विरोध करने के लिए तथा बच्चों को अफ्रीकी व मूल ब्राज़ीली जनजाति सभ्यता के प्रति गर्व सिखाने के लिए, मेक्स और उसके कुछ साथियों ने मिल कर "विल्ला स्पेरान्सा" (Vila Esperanca) यानि आशाघर नाम का संस्थान बनाया. आशाघर में स्थानीय प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को पौशाकें, संगीत, नृत्य, गीत, कहानियाँ, भोजन, आदि के माध्यम से अफ्रीकी व मूल ब्राज़ीली संस्कृतियों के बारे में बताया जाता है और इस साँस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के प्रति प्रेरित किया जाता है.

आशाघर में काम करने वाले आरोल्दो ने मुझे बताया कि "मैं यहीं पर खेल कर बड़ा हुआ हूँ और आशाघर की सोच अच्छी तरह समझता हूँ. मेरे मन में भी अपने रंग और अफ्रीकी मूल के नाक नक्क्षे के प्रति हीन भावना थी. यह तो बहुत से स्कूल सिखाते हैं कि सब मानव बराबर हैं, ऊँच नीच की सोच ठीक नहीं है, लेकिन वे केवल बाते हैं, लोग कहते हैं लेकिन उससे हमारी सोच नहीं बदलती. यहाँ आशाघर में हम कहते नहीं करते हैं, जब अन्य संस्कृतियों का व्यक्तिगत अनुभव होगा, उनके नृत्य व संगीत सीख कर, उनके वस्त्र पहन कर, उनकी कथाएँ सुन कर, वह भीतर से हमारी सोच बदल देता है."

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

प्रश्नों का विद्यालय

आशाघर के पास ही एक प्राथमिक विद्यालय भी है जहाँ पर बच्चों को पाउलो फ्रेइरे के विचारों पर आधारित शिक्षा दी जाती है. इस शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है कि बच्चों को हर बात को प्रश्न पूछ कर अपने आप समझने की शिक्षा दी जाये. इस विद्यालय की कक्षाओं में बच्चों को कुछ भी रटने की आवश्यकता नहीं, बल्कि सभी विषय प्रश्न-उत्तर के माध्यम से बच्चे स्वयं पढ़ें व समझें.

बच्चा कुछ भी सोचे और कहे, उसे बहुत गम्भीरता से लिया जाता है. बच्चे केवल स्कूल की कक्षा में नहीं पढ़ते बल्कि उन्हें प्रकृति के माध्यम से भी पढ़ने सीखने का मौका मिलता है. स्कूल की कक्षाओं में एक शिक्षक के साथ बच्चे अधिक नहीं होते हैं, केवल आठ या दस, ताकि हर बच्चे को शिक्षक ध्यान दे सके.

सुश्री रोज़आँजेला जो इस प्राथमिक विद्यालय की मुख्याध्यापिका हैं ने मुझे कहा कि, "हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे दुनिया बदल दें, उनमें इतना आत्मविश्वास हो कि किसी भी बात के बारे में पूछने समझने से वे नहीं झिकझिकाएँ. जब माध्यमिक स्कूल के शिक्षक मुझे कहते हैं कि हमारे स्कूल से निकले बच्चे बहस करते हैं और प्रश्न बहुत पूछते हैं और हर बात के बारे में अपनी राय बताते हैं, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है."

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

कृषि विद्यालय का अनुभव

शिक्षा का तीसरा अनुभव ब्राज़ील के तोकान्चिन राज्य के "पोर्तो नास्योनाल" (Porto Nacional) नाम के शहर से है. पाउलो फ्रेइरे के पुराने साथी डा. एडूआर्दो मानज़ानो (Dr Eduardo Manzano) ने यहाँ 1980 के दशक में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरु किया. फ़िर समय के साथ उनके इस काम में एक कृषि विद्यालय भी जुड़ गया.

यह कृषि विद्यालय सामान्य विद्यालयों जैसा है और प्राथमिक से ले कर हाई स्कूल तक की शिक्षा देता है. लेकिन इसकी एक खासयित यह भी है कि यहाँ के बच्चे अन्य विषयों के साथ साथ यह भी पढ़ते हैं कि कृषि कैसे करते हैं, मवेशियों का कैसे ख्याल किया जाना चाहिये, इत्यादि.

डा. मानज़ानो ने मुझे बताया कि, "हमारी शिक्षा पद्धिति ऐसी बन गयी है कि हमारे विद्यार्थी कृषि व किसानों को अनपढ़, गवाँर समझते हैं. किसान परिवारों से आने वाले बच्चे भी हमारे विद्यालयों में यही सीखते हैं कि अच्छा काम आफिस में होता है जबकि कृषि का काम घटिया है, उसमें सम्मान नहीं है. हम चाहते हैं कि किसान परिवारों से आने वाले बच्चे कृषि के महत्व को समझें, अच्छे किसान बने, किसान संस्कृति और सोच का सम्मान करें. हमारा स्कूल इस तरह से काम करता है कि बच्चों के मन में कृषि व कृषकों के प्रति समझ व सम्मान हों, वे अपने परिवारों व अपनी पारिवारिक संस्कृति से जुड़े रहें."

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

Paulo Freiere & Brazilian experiences - Images by Sunil Deepak, 2014

निष्कर्श

पाउले फ्रेइरे के विचारों का दुनिया भर में ग्रामीण विकास, शिक्षा, मानव अधिकारों के लिए लड़ाईयाँ जैसे अनेक क्षेत्रों में बहुत गहरा असर पड़ा है. उनके विचार केवल तर्कों पर नहीं बने थे, उनका आधार रोज़मर्रा के जीवन के ठोस अनुभव थे.

भारत में भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से सुन्दर व प्रशँसनीय अनुभव हैं जिनके बारे में मैंने पढ़ा है. पर भारत में सामान्य सरकारी विद्यालयों में और गाँवों के स्कूलों में शिक्षा की स्थिति अक्सर दयनीय ही रहती है. इस स्थिति को कैसे बदला जाये यह भारत के भविष्य के लिए चुनौती है.

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बुधवार, अगस्त 29, 2012

ब्राज़ील यात्रा डायरी - खोयी सभ्यता की तलाश (1)


23 अगस्त 2012, गोईयास वेल्यो

दो कक्षाओं के बच्चे अपनी अध्यापिकाओं के साथ आये थे. पहाड़ की ढलान पर ऊपर नीचे जाती सीढ़ियाँ, नीचे चमकता नदी का पानी, अमेरिंडयन जनजाति के गाँव की झोपड़ियाँ, बच्चे यह सब कुछ मंत्रमुग्ध हो कर देख रहे थे.

एक ओर हारोल्दो और गुस्तावियो स्वागत के ढोल बजा रहे थे. दूसरी ओर एक चबूतरे पर रेजीना और शर्ली हाथ में कटोरियाँ ले कर खड़ी थीं जिनमें एक पौधे के बीजों से बनाया गहरा कत्थई रँग था जिससे वे हर बच्चे के गालों पर स्वागत चिन्ह बना रही थीं.

Vila Esperança, Indigenous culture festival, Brazil

दो अध्यापिकाएँ भी उत्साहित सी हो कर बच्चों के साथ अपने गालों पर स्वागत चिन्ह लगवाने लगीं, जबकि दो अन्य अध्यापिकाएँ दूर से ही खड़ी देख रही थीं. उनके चेहरे के भाव से स्पष्ट था कि उन्हें यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.

चेहरे पर स्वागत चिन्ह बनवाने के बाद बच्चे एक चकौराकार भवन में गये  जिसकी छत बीच में से खुली थी और जिसके बीच में लकड़ी का खम्बा लगा था. भवन की दीवारों पर अमेरिंडियन मुखौटे लगे थे. एक ओर रोबसन और लुसिया जनजातियों के गीत गा रहे थे. गीतों के बाद रोबसन ने धरती, अम्बर, पवन और अग्नी की पूजा की और फ़िर बच्चों को एक अमेरिंडियन लोककथा सुनायी.

फ़िर बारी आयी नत्यों की. जनजातियों के विभिन्न नृत्य थे, जिन्हें रोबसन पहले सिखाता फ़िर सब बच्चे मिल कर करते. बच्चों ने खूब मस्ती की.

Vila Esperança, Indigenous culture festival, Brazil

नृत्य के बाद बच्चों को छोटे छोटे गुटों में बाँट दिया गया. कोई जनजातियों की कला सीखने गया, कोई जनजातियों में आभूषण कैसे बनाते हैं यह सीखने. कोई मूर्तियों को बनाने की कला सीख रहा था, तो कोई सूखी घास से वस्त्र कैसे बनायें यह सीख रहा था. एक घँटे तक बच्चे इस तरह अलग अलग गुटों में कुछ न कुछ सीखते रहे.

इसके बाद सब बच्चे वापस चकौराकार भवन में एकत्रित हुए, जहाँ रोबसन ने पहले प्रकृति को प्रसाद चढ़ाया फ़िर सब बच्चों को खाने को मिला. प्रसाद के खाने में उबला हुआ भुट्टा, केला, तरबूज आदि थे और पीने के लिए अनानास का रस था. इसके साथ ही "जनजाति सभ्यता" का कार्यक्रम समाप्त हुआ.

***

दोपहर को मैं रोबसन के साथ बैठा बात कर रहा था. रोबसन ने "विल्ला स्पेरान्सा" (Vila Esperança) यानि "आशा घर" नाम की संस्था बनायी है, जहाँ हर सप्ताह इस तरह के कार्यक्रम होते हैं जिनमें जनजातियों या अफ्रीकी सभ्यताओं के गीतों, कहानियों, नृत्यों, कलाओं, आदि के बारे में बच्चों को सिखाया जाता है.

रोबसन बोला, "मैं देखने में युरोपीय लगता हूँ लेकिन मेरे परिवार में अफ्रीकी और यहाँ के मूल निवासियों की जनजातियों का खून भी है. यूरोप से आये लोगों के खून से घुलने मिलने से हमारे परिवार जैसे बहुत परिवार हैं ब्राज़ील में, जिनमें कुछ लोग यूरोप के लगते हैं, कुछ अफ्रीका के और कुछ जनजातियों के. लेकिन हमारे देश में यूरोपीय सभ्यता को उच्च समझा जाता है, और जनजाति तथा अफ्रीकी सभ्यताओं को निम्न. हर कोई अपने आप को यूरोपीय दिखाना चाहता है. जिसका चेहरा यूरोपीय लोगों की तरह गोरा है वह अपने परिवार के अफ्रीकी और जनजाति वाले हिस्से को छुपाने की कोशिश करते हैं. जिनके चेहरे और रंग में अफ्रीकी या जनजाति का प्रभाव स्पष्ट होगा तो वह इस भेदभाव को छोटी उम्र से ही महसूस करते हैं. यह नीचा होने की भावना, हीन भावना बचपन से ही मन में घर कर लेती है, इसे निकालना बहुत कठिन है. हमें बचपन से ही शिक्षा मिलती है कि अपनी अफ्रीकी और जनजाति मूल सभ्यता को भूल जाओ, बस यूरोपी सभ्यता को मान्यता दो."

Vila Esperança, Indigenous culture festival, United colours of Brazil

इसी भावना के विरुद्ध काम करने की सोची रोबसन ने और "आशा घर" को 1989 में संस्थापित किया. वह बोला, "वैसे तो बहुत सी किताबों में, बातों में कहते हैं कि रंग और सभ्यता का भेदभाव करना गलत बात है, लेकिन वे केवल बातें हैं. हमारे घरों परिवारों में, हमारे आम जीवन में, टीवी पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों में, विज्ञापनों में, हमारा समाज कुछ और संदेश देता है, जो कहता है कि काला रंग या अफ्रीकी चेहरा या जनजाति के नाकनक्श का अर्थ हीनता, नीचापन है."

हाँ, हमारे भारत में भी बिल्कुल यही बात है, मैंने रोबसन को बताया. भारत में अगर आप का काला रंग हो या जाति की वजह से, हमारे समाज में हर ओर से छोटी उम्र से ही यही संदेश मिलता है कि तुम नीचे हो, तुममे कमी है. उस पर भारत में भाषा से जुड़ी हीन भावना भी है, अगर अंग्रेज़ी न बोलनी आये तो तुममे कुछ भी करने की शक्ति नहीं है यह कहते हैं. नर्सरी स्कूल से ही बच्चों को अंग्रेज़ी की कवितायें याद करायी जाती हैं.

रोबसन बोला, "हमारी मूल भाषाएँ तो अब लुप्त ही हो गयी हैं, सभी केवल पोर्तगीज़ भाषा बोलते हैं, जिन्होंने हमारे देश पर राज किया. कुछ जनजाति की प्राचीन भाषाओं के शब्द उनके धार्मिक रीति रिवाज़ों के साथ जुड़ी प्रार्थनाओं में बचे हुए हैं लेकिन आज उन शब्दों के अर्थ कोई नहीं जानता. इसलिए मेरे लिए 'आशा घर'  का यह कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है कि केवल बात न की जाये, बल्कि बच्चे यहाँ आ कर अपनी अफ्रीकी और जनजाति की सभ्यताओं को स्वीकार करें. यह समझें कि यह गीत, कहानियाँ, मिथक, नृत्य आदि हीन नहीं हैं, इनकी अपनी गरिमा है. कोई ऊँचा नीचा नहीं, बल्कि हमें अपने अंदर दौड़ रहे अफ्रीकी और जनजातियों के खून पर गर्व होना चाहिये."

***

रोबसन से बात करने के कुछ देर बाद मेरी बात रेजीमार से हुई जो कि 'आशा घर' द्वारा चलाये जाने वाले प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक है. रेजीमार अफ्रीकी मूल का है. उसने कहा, "अन्य जगह बात बराबरी की होती है, कि हम सब एक बराबर हैं, कोई ऊँचा नीचा नहीं, लेकिन वह सिर्फ़ कहने की बाते हैं. यहाँ 'आशा घर' में इन विचारों को कहने की नहीं, जीने की कोशिश है. इस तरह जियो कि हर इन्सान की गरिमा को महत्व दो. यह नहीं कहता कि समाज में हर कोई भेदभाव करता है लेकिन अगर अन्य लोग भेदभाव न भी करें, तो हमारे अपने मन में हीन भावना इतनी गहरी होती है कि हम स्वयं भीतर से अपने आप को अन्य लोगों के बराबर नहीं मानते. इसलिए बच्चों के साथ काम करना बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे उनके अन्दर वह हीन भावना न पनपे."

"लेकिन अगर स्कूल में बराबरी का महत्व समझ में आ भी जाये तो स्कूल के बाहर का असर उससे रुक सकेगा? बच्चे स्कूल से बाहर जायेंगे तो खेल के मैदान में, घर में, वहीं भेदभाव वाला समाज नहीं मिलेगा उन्हें?" मैंने पूछा.

"हमारा स्कूल अन्य स्कूलों से भिन्न है, हमारे यहाँ बच्चे शिक्षा का केन्द्र हैं न कि शिक्षक या फ़िर किताबें. हम कोशिश करते हैं कि बच्चों में प्रश्न पूछने, अपने उत्तर स्वयं खोजने की क्षमता दें. बच्चा कुछ भी पूछ सकता है, कुछ भी कह सकता है. हमारे बच्चे एक बार दुनिया को अपनी तरह से समझने का तरीका सीख लेते हैं तो घर परिवार, समाज हर जगह इसका असर पड़ता है. पंद्रह साल हो गये मुझे यहाँ पढ़ाते, इन सालों में इतनी बार औरों से अपनी आलोचना सुनी है कि 'आप के स्कूल के बच्चे प्रश्न बहुत पूछते हैं, टीचर कुछ भी कहे उसे यूँ ही नहीं मान लेते' तो मुझे बहुत गर्व होता है. मैं सोचता हूँ कि हमारे बच्चे बाहर के हर भेदभाव से लड़ सकते हैं, इतना आत्मविश्वास बन जाता है उनका."

24 अगस्त, 2012, गोईयास वेल्यो

सुबह उठा तो बाहर सैर करने की सोची. हमारे होटल के बिल्कुल साथ में नदी बहती है, रियो वेरमेल्यो (Rio Vermelho), यानि "सिँदूरी नदी". सैर करते हुए उसी नदी के किनारे पहुँच गया. नदी के ऊपर एक पुराना कुछ टूटा हुआ सा पुल था, जिसके पीछे एक झरना भी दिख रहा था. बहुत सुन्दर जगह थी. आसपास कोई था भी नहीं, बस एक बूढ़े से खानाबदोश किस्म के व्यक्ति दिखे जो अपने दो कुत्तों के साथ घूम रहे थे. उन्होंने मेरी ओर देखा तक नहीं, अपने में ही मग्न थे. आधे घँटे तक वहीं झरने के पास बैठा रहा, कुछ तस्वीरें खींचीं. रात को नींद ठीक नहीं आयी थी, लेकिन उस आधे घँटे में सारी थकान दूर हो गयी.

Rio Vermelho, Goias Velho, Brazil

वापस होटल पहुँचा तो जी भर के नाश्ता खाया. नाश्ते में इमली का खट्टा सा रस भी था जो मुझे बहुत अच्छा लगा. इतनी अलग अलग तरह के फ़ल मिलते हैं यहाँ, जो दुनियाँ में अन्य कहीं नहीं देखे जैसे माराकुजा और कुपुआसू. और उनका स्वाद भी बहुत बढ़िया है. नाश्ते में इतना खाया कि बाद में अपने पर खीज आ रहा थी. अपने को रोकने की और संयम की शक्ति मेरी बहुत कम है.

***

"आशा घर" में पढ़ने वाले एक बच्चे के पिता से बात हुई तो उसने एक अन्य बात बतायी. बोला, "इस स्कूल के बारे में शहर में बहुत से गलत बातें कही जाती हैं कि यहाँ धर्म बदल देते हैं. इसलिए यहाँ बहुत से लोग अपने बच्चे को नहीं भेजना चाहते. मैं इस बात को नहीं मानता. मेरे बच्चों ने कोई धर्म नहीं बदला, बल्कि यहाँ की शिक्षा ने उन्हें सोचने समझने की ताकत दी है. मेरा बड़ा बेटा अब विश्वविद्यालय में पढ़ता है, वह यहीं से पढ़ा है. वह कहता है कि इस स्कूल में पढ़े दिन उसके जीवन के सबसे सुन्दर दिन थे और उसने जो यहाँ सीखा है उससे उसका दिमाग और चरित्र दोनो बने हैं."

बाद में मैंने यह बात रोबसन से पूछी कि अन्य धर्म वाले तुमसे नाराज़ क्यों हैं? वह बोला, "मैं कन्दोमब्ले धर्म में विश्वास करता हूँ जो कि अफ्रीकी मूल के आये लोगों के मूल धर्म से प्रेरित है. अफ्रीकी गुलामों को यहाँ ला कर उन्हें ईसाई बनाया गया, लेकिन उन्होंने अपने मूल धर्म को छुपा कर बचाये रखा. आज का कन्दोमब्ले उनके पुराने अफ्रीकी धर्म से साथ ईसाई धर्म और यहाँ रहने वाले मूल जनजाति के निवासियों के धर्म के सम्मिश्रण से बना है. हमारे धर्म के अनुसार पृथ्वी की हर वस्तु, पेड़ पौधे, पहाड़ पत्थर, मानव और पशु पक्षी, सबमें एक ही परमात्मा है. 'आशा घर' की बहुत से कार्यक्रम मेरे धर्म के विश्वास से प्रभावित हैं लेकिन हमारे यहाँ कैथोलिक, एवान्जेलिक सब धर्मों के लोग काम करते हैं, सब धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं, मैंने कभी किसी का धर्म बदलने की कोशिश नहीं की. मैं उनके धर्म का मान करता हूँ क्योंकि अगर सोचोगे कि हर वस्तु में वही परमात्मा है तो कोई तुमसे भिन्न नहीं, तो मैं उनके विरुद्ध कैसे कुछ कह या कर सकता हूँ? लेकिन यहाँ के कैथोलिक और एवान्जेलिक लोग हमारे विरुद्ध प्रचार करते हैं कि हम बच्चों का धर्म बदलना चाहते हैं."

मैं सोच रहा था कि दुनिया के दो कोनों पर हैं भारत और ब्राज़ील, लेकिन फ़िर भी कितनी बातों में हमारी समस्याएँ एक जैसी हैं! रोबसन ने कहा कि उन पर यह भी आरोप लगाया जाता है कि वह बच्चों से ईसाई धर्म की आलोचना की बातें करते हैं.

मेरे विचार में यह सोचना कि कोई अन्य तुम्हारे भगवान की या पैगम्बर की आलोचना या बुराई कर सकता है, यह बात असम्भव है. क्योंकि भगवान या पैगम्बर इतने कमज़ोर नहीं हो सकते कि किसी के कुछ कहने, लिखने या चित्र बनाने से उनकी बेइज़्ज़ती हो जाये. यह तो मानव के अपने मन की असुरक्षा की भावना है जो यह सोच सकती है. दूसरी ओर बात है धर्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाना या उनको दबाना और उनके मानव अधिकार और गरिमा का शोषण करना. धर्म के नाम पर जो लोग इस तरह की बात करते हैं उसकी आलोचना करना तो मेरे विचार में भगवान की पूजा के बराबर होगी.

पर यह सच है कि दुनिया के बहुत से देशों में बहुसंख्यकों के धर्म की रक्षा के नाम पर दूसरे अल्पसंख्यक धर्मों के लोगों के साथ अन्याय होता है, उन्हें दबाया जाता है. बहुत से देशों ने तो कानून भी बनाये हैं जहाँ धर्म की बेइज़्ज़ती के नाम पर लोगों को कारावास या मृत्यू दँड तक दे देते हैं.

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इस बार पोर्तगीज़ बोलने में मुझे अधिक कठिनाई हो रही है!

आखिरी बार पोर्तगीज़ यहीं ब्राज़ील में ही बोली थी, करीब चौदह महीने पहले. उसके बाद किसी पोर्तगीज़ भाषा के देश में जाने का मौका नहीं मिला. शायद इस लिए भाषा को कुछ जंग सा लग गया. या फ़िर उम्र का असर है.

एक अन्य कारण भी हो सकता है इसका, मेरा ईबुक रीडर! पहले कोई भी यात्रा हो साथ में एक किताब तो अवश्य होती थी, लेकिन नये देश में जा कर, वहाँ के समाचार पत्र पढ़ना, टीवी देखना, लोगों से बातें करना, इस सबसे भाषा का अभ्यास तुरंत शुरु हो जाता था. इस बार ईबुक रीडर है जिसमें 153 किताबें हैं, बस हर समय उसी में मग्न रहता हूँ. शायद इसी लिए इस बार पोर्तगीज़ भाषा को ठीक से  बोलने में इतनी कठिनायी हो रही है.

26 अगस्त 2012, गोईयानिया

कल शाम को गोईयास वेल्यो से वापस आये. आज रविवार को मैं खाली था. सुबह सुबह शहर का नक्शा ले कर निकल पड़ा कि धूप तेज़ होने से पहले शहर में कुछ नया देखा जाये.

रास्ते में एक बाग में छोटा उल्लू का बच्चा दिखा जो तेज़ स्वर में पुकार रहा था. शायद उसके माता पिता उसके खाने की खोज में ही गये थे. मैं तस्वीर खींचने के लिए करीब गया तो एक पत्थर के नीचे खुदे खड्डे में दुबक गया.

Baby owl, Goiania, Brazil

आजकल ब्राज़ील के राष्ट्रीय फ़ूल इपे के खिलने का मौसम है. इपे के अधिकतर पेड़ों में पत्ते नहीं हैं बस फ़ूलों से भरे हैं. बागों में गुलाबी, जामुनी, पीले, नीले, विभिन्न रंगों के इपे दिखते हैं.

Ipé tree, Goiania, Brazil

घूमते घूमते विश्वविद्यालय वाले इलाके में पहुँच गया, जहाँ एक बाग में ब्राज़ीली शिल्पकारों की बनायी बहुत सी मूर्तियाँ लगीं थीं. मिट्टी की बनी एक कलाकृति मुझसे सबसे अच्छी लगी, पर शायद विश्वविद्यालय के छात्रों को एक हाथ की कलाकृति सबसे अधिक पसंद थी जिसके ऊपर उन्होंने अपने संदेश लिख दिये थे. उस हाथ की कलाकृति के अतिरिक्त किसी अन्य कलाकृति को लिख कर नहीं बिगाड़ा गया था.
Terracotta Sculptures University square, Goiania, Brazil

Hand Sculpture university square, Goiania, Brazil

तीन घँटे तक चला, जब वापस होटल पहुँचा तो टाँगें थकान से चूर हो रही थीं. फ़िर भी खाना खा कर होटल के करीब एक बाग में लगे चित्रकला बाज़ार में गया, क्योंकि वहाँ अपने एक पुराने मित्र तादेओ से मिलना चाहता था. तादेओ भी चित्रकार है और कुछ वर्ष पहले खरीदी उसकी एक कलाकृति बोलोनिया में हमारे घर में भी लगी है जो मुझे बहुत अच्छी लगती है. तादेओ को बचपन में कुष्ठ रोग हुआ था, जिसकी वजह से उन्हें उनके परिवार से हटा कर कुष्ठ रोगियों की कोलोनी में रहना पड़ा, परिवार भाई बहनों से उनके सब नाते टूट गये. आज वह बात नहीं है क्योंकि अब कुष्ठ रोग का उपचार आसान है इसलिए किसी को उसके परिवार से निकाल कर कोलोनी में बन्द करने वाली बातें अब नहीं होतीं. सोचा था कि तादेओ की एक अन्य पैंटिंग खरीदूँगा, लेकिन बाज़ार में तादेओ नहीं दिखा. अन्य चित्रकारों से पूछा तो उसके एक मित्र ने बताया कि उसकी तबियत ठीक नहीं थी.

Ashwarya Rai in art market, Goiania, Brazil

चित्रकला बाज़ार में भारत की एश्वर्या राय भी दिखीं. एक कलाकार ने उनकी बड़ी तस्वीर पर चमकते सितारे और मोती टाँक कर तस्वीर बनायी थी जिसे लोग दिलचस्पी से देख रहे थे और किसकी तस्वीर है यह पूछ रहे थे.

अब नींद आ रही है, जल्दी सोना चाहिये क्योंकि कल सुबह सुबह बेलेन जाने की उड़ान लेनी है.

27 अगस्त 2012, बेलेम

आज दोपहर को बेलेम पहुँचे. होटल बस अड्डे के सामने है. मैं सामान आदि रख कर घूमने निकला, सोचा था कि यहाँ के एक संग्रहालय और बाग में घूमूँगा लेकिन सोमवार होने की वजह से दोनो ही बन्द थे. शाम को खाना खाने हम लोग पुरानी बँदरगाह की ओर गये जहाँ पुराने गौदामों में नये रेस्टोरेंट, दुकाने आदि खोली गयी हैं. वहीं एक "किलो रेस्टोरेंट" में खाना खाया. किलो रेस्टोरेंट में आप अपनी प्लेट में कुछ भी खाना ले लेजिये, बाद में उसके वजन के हिसाब से उसकी कीमत चुकाईये. इस तरह अगर आप चाहे तो केवल चावल सब्जी खाईये नहीं तो केवल माँस मछली, उससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता, बस वजन के हिसाब से कीमत लगेगी. शहर के अधिकतर किलो रेस्टोरेटों में 20 या 22 रियाइस यानि 500 या 550 रुपये प्रति किलो की कीमत होती है लेकिन बँदरगाह के नये शापिंग सेंटर की कीमत दुगनी थी, फ़िर भी खाना अच्छा था.

मैंने खाने के साथ खूब आम भी खाये. इस साल बोलोनिया में कई बार आम खोजने गया था पर नहीं मिले थे, केवल चटनी वाले कच्चे आम मिलते थे. वहीं छत पर लटकते चबूतरे पर बैठ कर एक युवक गिटार बजा रहा था और साथ गीत गा रहा था, वही चबूतरा भवन में इधर उधर घूम रहा था.

खाना खा कर यहाँ कि पुराने पुर्तगाली किले और उसके सामने बने कैथेड्रल को देखने गये. सफ़ेद रंग का कैथेड्रल, सफेद और लाल रोशनियों से सजा, रात के अँधेरे में बहुत सुन्दर लग रहा था.

Cathedral, Belem, Brazil

मेरे साथ यहाँ आयी ब्राज़ीली साथी दियोलिँदा यहीं नदी के बीच में एक द्वीप में पैदा हुई थी. वह अपने बचपन की साठ साल पहले की बातें बता रही थी कि कैसे यहाँ सड़क नहीं थी और वह अपनी माँ के साथ बाग में लगने वाले हाट में खाने का सामान बेचने आती थी. उसकी माँ अफ्रीकी मूल की थीं और पिता एक फ्राँसिसी और अमेज़न जनजाति के सम्मिश्रित. उसके परिवार में गोरे, काले, हर रँग और नस्ल के दिखने वाले लोग हैं. उसके अपने बच्चों में भी अफ्रीकी रँग और चेहरे वाले भी हैं और सुनहरे बालों वाले यूरोपीय दिखने वाले भी.

गोयानिया में आकाश इतना नीला दिखता था मानो शेम्पू से धोया हो. यहाँ का आसमान उसके मुकाबले में कुछ मटमैला सा है.

Bosque do Buritis lake, Goiania, Brazil

कल सुबह अबायतेटूबा यानि "भीमकाय लोगों का गाँव" जाना है जो कि अमेज़न जँगल के बीच में बसा है. राज्य स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी आयेगी हमें लेने, और आधा रास्ता नाव में नदी पार करने का होगा. वहाँ पिछले वर्ष भी गया था. लोग सागर जैसे नदी के बीच में अलग अलग द्वीपों में रहते हैं.

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(अंत भाग 01)

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