अपनी पहली हवाई यात्रा की हल्की सी याद है मुझे. दिल्ली से रोम की यात्रा थी वह, जापान एयरलाईनस् के जहाज पर. मेरी फुफेरी बहन के पति जापान एयरलाईनस् में काम करते थे, उन्होंने ही टिकट बनवाया था और पहले दर्जे की सीट पर बिठवा दिया था. तब से जाने कितनी यात्राएं होने के बाद, आज हवाई यात्रा में काम पर कहीं भी जाना पड़े तो कोई विशेष उत्साह महसूस नहीं होता. कितने घंटे कहाँ पर इंतजार करना पड़ेगा इसकी चिंता अधिक होती है. और जहाज के भीतर जा कर, सारा समय किताब पढ़ने या कुछ काम करने में निकल जाता है.
जब कभी यात्रा अप्रयाशित रुप में अपने तैयार रास्ते से निकल कर कुछ नया कर देती है तब याद आती है यात्रा और मंजिल की बात. ऐसा ही कुछ हुआ कल सुबह, जेनेवा से वापस बोलोनिया के यात्रा में. परसों जेनेवा में बर्फ गिरी थी और बहुत सर्दी थी. पर कल सुबह जब जागा तो आसमान साफ हो गया था. जेनेवा से म्यूनिख की यात्रा में कोई विशेष बात नहीं हुई पर म्यूनिख में तेज बर्फ गिर रही थी. पहुँच कर पाया कि बोलोनिया का जहाज एक घंटा देर से चलने वाला था. घर पर टेलीफोन करके देरी का बताया और फिर बैठ कर एक किताब पढ़ने लगा. आखिरकार बोलोनिया की उड़ान भी तैयार हुई. जहाज से दिखा कि पूरा उत्तरी इटली बादलों से ढ़का है. एल्पस् के पहाड़ एक क्षण के लिये भी नहीं दिखे. फिर बोलोनिया पहुँचे तो जहाज बहुत देर तक आसमान में ही चक्कर काटता रहा. काफी देर बाद घोषणा हुई कि वहाँ तेज हिमपात की वजह से जहाज पीसा हवाई अड्डे जायेगा और वहाँ से बस द्वारा हमें बोलोनिया लाया जायेगा.
उसके तुरंत बाद जहाज में झटके से लगने लगे. शायद बाहर तेज तूफान था और हमारे छोटे से जहाज में झटके अधिक महसूस होते थे. दस पंद्रह मिनट तक इतनी बार ऊपर नीचे हुए कि कई लोगों ने मतली कर दी, एक सज्जन बेचारी एयर होस्टेस से लड़ने लगे. एक झटका इतनी जोर से आया कि ऊपर से ओक्सीजन का बाक्स खुल गया और मास्क नीचे आ गये. लगा कि अपनी जीवन यात्रा की मंजिल आ गयी. पीसा उतरे तो तेज हवा के साथ बारिश हो रही थी.
अगर म्यूनिख से पीसा की यात्रा रोमांचक थी तो पीसा से बोलोनिया की बस यात्रा भी कम रोमांचक नहीं थी. बर्फीले तूफान में पहाड़ों के बीच में हो कर गुजरना किसी भी भौतिकवादी को आध्यत्मवादी बनाने के लिए अच्छा तरीका है. तीन घंटे बाद जब बोलोनिया पहुँचे तो जेनेवा से यात्रा प्रारम्भ किये ११ घंटे हो चुके थे.
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"आपका लेखन कुछ नीरस टाइप का और एक ही ढर्रे पर रहने वाला है। कुछ नया क्यों नहीं ट्राई करते।" एक अनाम पाठक ने यह टिप्पड़ीं दी है. अनाम जी बहुत धन्यवाद क्यों कि आप ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि मैं चिट्ठा क्यों लिखता हूँ ? मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मैं अपने लिए लिखना चाहता हूँ, जो मुझे भाये. मुझे लगता है कि अगर मैं यह सोच कर लिखूँ कि पढ़नेवालों को क्या अच्छा लगता है तो यह चिट्ठा लेखन के प्रति बेईमानी होगी. यह नहीं कि मैं उसे पढ़ने वालों के महत्व को छोटा करना चाहता हूँ पर अंतरजाल का यही तो मजा है कि आप के पास पढ़ने के लिए चुनने के लिए बहुत सारे चिट्ठे हैं.
आज की तस्वीरें जेनेवा यात्रा से.