जिससे प्रेम हुआ और विवाह किया, उसे हल्का फुल्का पढ़ने का शौक तो है पर गँभीर बातों पर बहस करने का बिल्कुल नहीं. पर इसके बदले में उसे तरह तरह के पकवान बनाने, घर का काम करने, कपड़े बनाने आदि जैसे शौक हैं. सुबह सुबह उठ कर काफी और नाश्ता बनाती है, काम पर ले जाने के लिए खाना बनाती है. इतालवी हो कर भी, इन सब मामलों में मुझे वह पुराने ज़माने की भारतीय पत्नी सी लगती है. आराम की आदत पड़ गयी है, और जब गम्भीर बहस का दिल करता है तो बहुत मित्र हैं. और कोई न हो तो चिट्ठा जगत में बहुत से निठल्ले बैठे हैं, उनसे बात हो जाती है. :-)
हमारी धर्मपत्नी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी बहुत गम्भीरता से लेती हैं. प्रेम करने से पहले इस बारे में कभी ठीक से नहीं सोचा था. अड़ोस पड़ोस में कहीं किसी को कुछ चाहिए तो हमारी श्रीमति जी को याद कर लेता है. आप की तबियत ठीक नहीं है, बाजार से कुछ लाना है ? आप का कुछ काम है पर आप के पास समय नहीं है ? अपना दुखड़ा रो कर आप किसी को उल्लु बनाने की ताक में हैं ? एक्सीडेंट हो गया, अस्पताल जाना है ? आप की टाँग पर पलस्तर चढ़ा है, खाना नहीं बना सकते ? कुछ भी बात हो हमारी श्रीमति जी पर भरोसा रखिये, वह खुद तो करेंगी ही, अगर जरुरत पड़ी तो हमें भी बीच घसीट लेंगी. इतनी बार लोग कुछ भी बात सुना कर, पैसे ले जाते हैं पर वह हैं कि मानव जाति की अंतर्हीन अच्छाई को मानने से बाज़ नहीं आतीं.
एक बार पड़ोस की एक वृद्धा की तबियत ठीक नहीं थी, तो कई दिन तक उसके लिए खाना बना कर ले जाती रहीं. एक दिन खाना खा कर उन वृद्धा के पेट में दर्द हो गया तो अस्पताल गयीं और बोलीं कि फलाँ औरत ने मुझे जहर दे कर मारने की कोशिश की है. जब बात मेरी श्रीमति तक पहुँची तो आप उनका आश्चर्य और परेशानी को समझ सकते हैं. बोलीं आगे से किसी के लिए खाना नहीं बनाऊँगी. दो महीने बाद फिर उसी वृद्धा की तबियत खराब हुई तो यह फिर से उसके लिए खाना बना रहीं थीं!
उनका यह परोपकारी गुण, कभी मुझे अच्छा लगता है और कभी खीज आती है जब अड़ोसी पड़ोसी बातें करने घर आ धमकते हैं, पर मुझे यकीन है कि हमारे पड़ोसियों को उनका यह गुण बहुत प्रिय है.
एक अन्य गुण है उनका कि उन्हें कार चलानी अच्छी लगती है. चूँकि मुझे कार चलाना बड़ा बोरियत का काम लगता है इसलिए अगर साथ कहीं भी जाना हो मुझे ड्राईवर तैयार मिलता है. इस गुण का एक बुरा पहलू भी है, यानि कि वह समझती हैं कि कार चलाने में उनसे अधिक होशियार कोई और हो नहीं सकता. इसलिए वह साथ में बैठी हों और कोई और गाड़ी चला रहा हो तो उसे निर्देश देने से बाज नहीं आती. "ब्रेक लगाओ. धीरे करो. इतने धीरे क्यों चला रहे हो....".
पर मुझे जो उनका गुण सबसे अच्छा लगता है वह है उनका नाचना. हिंदी फिल्मों से नृत्य की शिक्षा पायी है और हर पार्टी में जैसे ही नाचना प्राम्भ होता है, वह लग जाती हैं श्रीदेवी वाले झटकों में. इस तरह का आधुनिक नृत्य जिसमें हाथ पाँव इधर उधर फैंके जायें मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, कुछ ही देर में लगता हैं जैसे सारा तनाव टैंशन दूर हो गये हों.
यह आठ गुण हैं या अस्सी, यह मुझे नहीं मालूम, पर इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि हम अपनी श्रीमति पर अभी भी, शादी के पच्चीस साल बाद भी, वैसे ही लट्टू हैं.
आज की तस्वीरें, पिछले महीने की भारत यात्रा के दौरान, उन्हीं के नाम हैं.