हम लोग होटल से तो सभीपति जी की गाड़ी के पीछे ही निकले थे पर थोड़ी दूर के बाद भीड़ में गड़बड़ हो गयी. मरीआँजेला किसी और गाड़ी के पीछे चल पड़ी जो कि वनवे (सिर्फ एक दिशा में यातायात वाली) वाली एक छोटी सी गली में घुस गयी. कुछ अंदर जा कर मालूम चला कि हम लोग गलत गाड़ी के पीछे गलत जगह आ गये थे तब तक बहुत देर हो गयी थी. आगे जा कर गली इतनी तंग थी कि मरीआँजेला की बड़ी गाड़ी न आगे जा पा रही थी न पीछे. पीछे से अन्य कुछ कारें भी आ पहुँची.
लगा कि बोतल में बंद हो गये हों.
आखिरकार, मैंने ही पीछे वाली गाड़ियों को हटवाया, फिर बहुत मुश्किल से पीछे घुमा कर गलत दिशा में ले जा कर ही बाहर निकल पाये. किस्मत अच्छी थी कि कोई पुलिसवाला नहीं टकराया. तब तक सभापति जी हमें खोज कर परेशान हो गये थे, मैंने अपना मोबाइल बंद किया हुआ था इसलिए वे मुझे टेलीफ़ोन नहीं कर पा रहे थे.
जब भी ओस्तूनी का सोचूँगा, इस बात को अवश्य याद करुँगा.
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पर ओस्तूनी की सभा मरीआँजेला की एक और बात से भी याद रहेगी, उसका सबके सामने अपनी आपबीती कहने का साहस. सभा का विषय था "स्त्री, विकलाँगता और यौनता" (Disabled women and sexaulity) जिसमें मुझे बुलाया गया अपने शोधकार्य के बारे में बताने जिसमें मैंने कुछ इतालवी विकलाँग स्त्रियों और पुरुषों से उनके यौन जीवन में आनेवाली रुकावटों पर शोध किया था. मरीआँजेला से मेरी इसी शोध के दौरान मुलाकात हुई थी. मैंने सोचा कि केवल शोध के बारे में कहना अधूरा सा रहेगा, अगर शोध में भाग लेने वाली कोई विकलाँग महिला मेरे साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बात कर सके तो शोध के बारे में समझाना अधिक आसान होगा.
यह सोचना तो आसान था पर किसी को खोजना जिसमें भरी सभा के सामने अपने यौन अनुभवों के बारे में बात करने की हिम्मत हो, आसान नहीं था. इसलिए जब मरीआँजेला ने हाँ कही तो पहले मुझे विश्वास ही नहीं हुआ था.
सभा में हम दोनो ने मिल कर भाषण दिया. मैं बात करता वैज्ञानिक तरीके से, कैसे शोध तैयार हुआ, कैसे लोगों ने भाग लिया, क्या निश्कर्ष निकले, आदि और मरीआँजेला मेरी हर बात पर अपने अनुभव सुनाती. भीड़ के सामने अपने बलात्कार की बात करना या विकलाँगता की वजह से ठुकराये जाने की बात करना, अकेलेपन में पुरुष वेश्या खोजना जैसी व्यक्तिगत बातें भरे हाल में लोगों के सामने कहना कितना कठिन हो सकता है, इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं. बोलते बोलते कई बार उसकी आवाज़ भर्रा आई पर रुकी नहीं वह. सारा हाल उसके सामने स्तब्ध सा था.
ओस्तूनी से गाड़ी में वापस आने में करीब आठ घँटे लगे, बहुत बातें की रास्ते में हमने. मरीआँजेला कहती है कि हम दोनो को मिल कर "विकलाँगता और यौनता" विषय पर किताब लिखनी चाहिये. मैं हाँ हाँ तो करता रहा पर यहाँ चक्करधुन्नी की तरह घूमने से फ़ुरसत मिलेगी तभी कुछ लिखने की बात सोच सकता हूँ. कल रविवार रात को ओस्तूनी से वापस आये. अभी तक फरवरी में की हुई नेपाल यात्रा की रिपोर्ट नहीं पूरी कर पाया हूँ और अगले शनिवार को कैरो (इजिप्ट - Egypt) जाना है.
आज की तस्वीरों में ओस्तूनी और मरीआँजेला, अपनी गाड़ी में.