विकिपीडिया टीपू की जनछवि से जुड़ी विभिन्न मान्यताओं के बारे में बताता है, कि अधिकतर हिंदू बहुल्य वाले भाग में टीपू को मुस्लिम शासक होने की वजह से अपनी वैधता स्थापित करने की कठिनाई थी. एक तरफ़ वह स्वयं को धर्मपरायण मुसलमान दिखाना चाहते थे पर साथ ही संतुलित विचारों वाले ताकि अपनी प्रजा से सही नाता बना सकते. उनकी धार्मिक धरोहर के विषय में उपमहाद्वीप में बहुत विवादग्रस्त है. पाकिस्तान में कुछ गुटों का दावा है कि वह घाज़ी यानि धर्म के लिए लड़ने वाले बड़े यौद्धा थे और भारत में कुछ गुट कहते हैं कि उन्होंने बहुत से हिंदुओं को मारा. कई इतिहासकारों का कहना है कि टीपू ने हिंदुओं तथा ईसाईयों के विरुद्ध बहुत से काम किये थे और पूरे भारत में एक मुस्लिम राज्य की स्थापना करने का सपना देखते थे.
विलियम डारलिमपल का लेख टीपू पर अँग्रेज़ी हमले की तुलना, अमरीका के ईराक पर हमले से करते हैं. एतिहासिक दस्तावेज़ों के अध्ययन से वह यह निष्कर्ष निकालते हैं कि सन 1790 के आसपास अँग्रेज़ी शासन रूढ़िवादियों के हाथ में था जो अपने देश को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत देखना चाहते थे, फ्राँस के बहुत विरुद्ध थे और अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए उन सभी शासकों को हटाना चाहते थे जिनसे उन्हें कोई खतरा हो सकता था.
अँग्रेज़ी शासन को जिन लोगों से खतरा हो सकता था उनमें टीपू का नाम काफ़ी ऊपर था. उसने अपने शासित हिस्से में सड़के आदि बनवायीं थी, शासन के स्पष्ट नियम बनवाये थे, सेना के लिए फ्राँस से नयी बंदूकें और हथियार बनवाये थे. अँग्रेज़ो़ को लगा कि अगर टीपू इस तरह अपने शासन को सुदृढ़ करता रहा तो बाद में उसे हराना और भी कठिन हो जायेगा. इसलिए टीपू पर हमले का बहाना ढूँढ़ने के लिए उन्होंने टीपू के विरुद्ध मीडिया अभियान शुरु किया कुछ वैसे ही जैसे अमरीका ने सद्दाम हुसैन के विरुद्ध किया था. वह कहने लगे कि टीपू धार्मिक कट्टरवादी था, हिंदुओं और ईसाईयों को मार रहा था, उसे हटाना बहुत जरुरी था और इस तरह टीपू पर युद्ध किया.
डारलिमपल का कहना है कि दस्तावेज़ों से टीपू की जो छवि निकलती है वह उस तरह की नहीं हैं जैसी अंग्रेज़ी इतिहासकारों द्वारा बनाई गयी बल्कि और जटिल है. शासक के रुप में टीपू नये विचारों वाला, जनप्रगति और शासन दृढ़ बनाने, नयी तकनीकों को अपनाने वाला था. उसने पश्चिमों देशों के सामाजिक संगठन को देख कर उससे सीख ली और वैसी ही नीतियाँ अपने ही शासन में चलानी चाहीं. उनके निजि पुस्तकालय में 2000 से अधिक किताबें थीं, न केवल धर्म, सूफ़ी आदि के बारे में बल्कि इतिहास, गणित, नक्षत्रविज्ञान जैसे विषयों पर भी. वह कला को प्रोत्साहन देते थे. एक तरफ़ युद्ध में जीते प्राँतों में उन्होंने हिंदू मंदिर नष्ट करवाये और लोगों को जबरदस्ती धर्म बदलने के लिए मजबूर करवाया, दूसरी ओर अपने शासित प्राँत भाग में हिंदू मंदिरों को सरकारी सुरक्षा मिलती थी और सरकारी दान भी. उन्होंने कई मंदिरों को क्वार्टज़ाईट के शिवलिंगों का दान किया. श्रृंगेरी मंदिर जो एक मराठा युद्ध में नष्ट हुआ था, उसे दोबारा बनवाने के लिए दान दिया.
नीचे की तस्वीरों में टीपू का बंगलूरु का महल.