दो दिन पहले यहाँ बोलोनिया में भारत के आन्ध्र प्रदेश के गुँटूर शहर से मेयर श्री कन्ना नागाराजू आये. गुँटूर तथा बोलोनिया के बीच प्रदूषण कम करने का एक प्रजोक्ट चल रहा है, उसी सिलसिले में नागाराजू जी यहाँ आये हैं. वह गुँटूर में सामान्य प्रदूषण से कैसे लड़ रहे हैं इसके बारे में मैं उनका भाषण सुनने गया. 27 वर्षीय नागाराजू दो साल पहले मेयर बने, और शायद भारत में या विश्व में वह सबसे कम उम्र के मेयर हैं. मकेनिकल एनजींयर में बीटेक पास नागाराजू का कहना था कि उन्होंने गुँटूर में प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत कुछ किया है जैसे कि पीने की पानी की जाँच ताकि घरों में स्वच्छ पानी दिया जाये, घर घर से कूड़ा इक्ट्ठा करने का नया तरीका, यातायात को सरल करने के तरीके और शहर में पेड़ों और हरियाली को बढ़ावा, नये बाग इत्यादि. उनके कहने से लगा कि गुँटूर शहर ने बहुत तरक्की की है. (तस्वीर में नागाराजु)
नागाराजू जी के कहने में कितनी सच्चाई है और कितनी राजनीतिक भाषणबाजी यह तो गुँटूर में रहने वाले ही बता सकते हैं, हालाँकि मुझे लगता है कि आज विकास और प्रदूषण दोनों साथ साथ कदम कदम मिला कर चलते हैं. गरीबों के साथ काम करने वाले कुछ मित्रों और साथियों को इस तरह के विकास के विरुद्ध बात करते सुना है पर मुझे नहीं लगता कि आज कोई यह मानेगा कि अपना सादा सरल जीवन जिसमें सदियों की चली आ रही परम्पराएँ बनी हैं, उसको बना कर रखने के लिए उद्योगिक विकास को रोकना चाहिये. यह कोशिश करना कि विकास इस तरह का हो जिसमें गरीब, कम पढ़े लिखे, दलित और अल्पसँख्यकों को भी विकसित होने का मौका मिले, यही आज सबसे बड़े सँघर्ष की बात है.
साथ ही यह चाहना कि विकास इस तरह का हो जिससे प्रदूषण न बढ़े भी महत्वपूर्ण है पर यह कहाँ तक हो पायेगा?
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एक नयी वेबसाईट बनी है कारमा डोट काम जहाँ दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले बिजली उत्पादन के प्लाँट के बारे में जानकारी दी गयी है. दुनिया के पचास सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले बिजली उत्पादन के प्लाँट में से 7 अमरीका में हैं, 2 जर्मनी में, 5 दक्षिण कोरिया में, 15 चीन में और 4 भारत में.
भारत के सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले पावर प्लाँट हैं - वाराणसी के पास विंध्याचल प्लाँट जो प्रदूषण में दुनिया में छठे नम्बर पर है, उत्तरी आँध्रप्रदेश में रामागुंडम प्लाँट जो दुनिया में तीसवें स्थान पर है, तमिलनाडू में नेयवेली जो दुनिया में छत्तीसवें स्थान पर है और उत्तरी उड़ीसा में तलछेर जो दुनिया में सेंतिसवे स्थान पर है.
अच्छे कारखाने जहाँ बिजली का उत्पादन अधिक हो और प्रदूषण न के बराबार, अधिकतर पश्चिमी योरोप में हैं और कुछ एक अमरीका में. भारत में इस तरह का कोई पावर प्लाँट नहीं है.
पिछले सात सालों में विकास के साथ साथ भारत में कार्बन डाईओक्साईड की मात्रा बढ़ी है. सन 2000 में यह मात्रा थी करीब 46 करोड़ टन, आज यह मात्रा है 58 करोड़ टन और विकास की इसी दर पर भविष्य में यह मात्रा बढ़ कर हो जायेगी 148 करोड़ टन. यानि अगर आप अभी प्रदूषण का रोना रो रहे हैं तो भविष्य में यह तीन गुना बढ़ जायेगा क्योंकि विकास चाहिये तो प्रदूषण तो होगा ही और साँस की बीमारियाँ भी.
चीन में कार्बन डाईओक्साईड की वार्षिक मात्रा सन 2000 में थी 126 करोड़ टन, आज है 268 करोड़ टन और इसी दर से विकास होता रहा तो भविष्य में हो जायेगी 427 करोड़ टन. यानि भविष्य में चीन दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित देश होगा. इसी प्रदूषण से हम अंदाजा लगा सकता हैं कि भारत चीन से कितना पीछे है.
चीन की तो इतनी जनसँख्या है पर अमरीका जिसकी जनसँख्या चीन से चार या पाँच गुना कम है आज दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषण करने वाला देश है. अमरीका की कार्बन डाईओक्साईड छोड़ने की वार्षिक मात्रा सन 2000 में थी 276 करोड़, आज है 303 करोड़ और भविष्य में हो जायेगी 368 करोड़. इन सबके मुकाबले में अफ्रीका सबसे दुनिया में प्रदूषण करने में सबसे पीछे है. पूरे अफ्रीका महाद्वीप की कार्बन डाईओक्साईड छोड़ने की वार्षिक मात्रा सन 2000 में थी 27 करोड़, आज है 34 करोड़ और भविष्य में बढ़ कर हो जायेगी 48 करोड़.
पर क्या हमें यही विकास चाहिये जिससे जीवन बीमारियों से भर जाये? या फ़िर प्रदूषण की वजह से वातावरण और मौसम सब बदल जायें?
पर योरोप को देखें तो लगता है कि प्रदूषण कम करके भी विकास सँभव है. पूरे यूरोप में कार्बन डाईओक्साईड की वार्षिक मात्रा सन 2000 में 157 करोड़ टन थी, आज है 178 करोड़ टन और भविष्य में बढ़ कर हो जायेगी 248 करोड़ टन.
जब कोई कहता है कि दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, समुद्रों का स्तर ऊपर जा रहा है, दुनिया को भारत और चीन के विकास से खतरा है तो मुझे गुस्सा आता है. जो देश आज सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं वही उपदेश दे रहे हैं कि भारत और चीन को विकास की गति कम कर देनी चाहिये या विभिन्न तरह का विकास खोजना चाहिये. पर फ़िर लोगों का प्रदूषण से क्या हाल होगा यह सोच कर लगता है भारतीय वैज्ञानिकों को नये तरीके खोजने होंगे जिनसे ऊर्जा तो मिले पर प्रदूषण कम हो. विकसित देशों ने अपने विकास और समृद्धी की नीव अपनी तकनीकी को कोपीराईट के पीछे छुपा कर उससे पैसा कमा कर बनायी है, क्या भारत ऐसा कर पायेगा कि कम प्रदूषण करने वाली नयी तकनीकों का आविष्कार करे और उनसे अन्य विकासशील देशों की सहायता करे ताकि अन्य देश भी उन तकनीकों का फायदा उठा सकें?
यह तो केवल सपने हैं, पर अगर आप को प्रदूषण के विषय में दिलचस्पी है तो कारमा की वेबसाईट को अवश्य देखियेगा.