"बस ये चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं. सहर भी है रात भी है, दोपहर भी मिली लेकिन, हमने शाम चुनी है. नहीं उदास नहीं." जाने क्यों बार बार यही शब्द मन में बार बार लौट आते हैं. मन में एक तस्वीर उभरती है, छत वाले बंद कमरे में कैद घुघी, इधर से उधर पँख फड़फड़ाती हुई, रोशनदान के शीशे से टकराती, चारपाई के नीचे छुप जाती है. जब थक कर हाथ में आती है तो उसके दिल की धड़कन महसूस होती है. धक धक, धक धक.
नहीं उदासी नहीं, बस चुप्पी सी है. बात नहीं करो कोई. नहीं सुनना कोई गाना. नहीं देखनी कोई फ़िल्म. किताब के अक्षर पढ़े तो जाते हैं पर समझ नहीं आते. बार बार आँखें शब्दों को देखती हैं और सामने कोई और चेहरे आ जाते हैं.
बाग में अकेला बैठा लड़का, हाथ में मोबाईल फ़ोन को टक टकी लगाये देख रहा है. मानो मन ही मन उसे घँटी बजाने के लिए प्रार्थना कर रहा हो. कुत्ते के साथ घूमने निकला जोड़ा भी मोबाईल पर ही लगा है. युवक अपने मोबाईल पर किसी से बात कर रहा है, उसकी साथी अपने मोबाईल पर किसी और के साथ बात कर रही है. रोमेयो नाम है उनके कुत्ते का. रोमेयो याने रोमियो, रोमियो जूलियट वाला. इतालवी भाषा में रोमियो को रोमेयो ही कहते हैं. आप्रेशन हुआ है रोमेयो का, अण्डकोष निकाल दिये गये हैं उसके. इससे झँझट कम होता है. न तो कुत्ता अन्य कुत्तों से कोई झगड़ा करता है, न ही कुत्तियों के पीछे भागता है. यानि इस रोमेयो की कभी कोई जूलियट नहीं होगी.
होर्स चेस्टनट के पेड़ों के नीचे वाले बैंच पर एक वृद्ध बैठा है. हर तरफ़ फ़ूल खिले हैं. जैसे "दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे" का खेत हो जहाँ शाहरुख खान गिटार बजाता है और घर से भागी भागी, काजोल वहाँ पहुँच जाती है. पर यहाँ सिर्फ फ़ूल हैं, कोई गिटार नहीं, न ही कोई खेतों के बीच प्रेमी से मिलने भाग रहा है. बस मोबाईल पर बात करने वाली चुप्पी है, जो बातों की दरारों में से झाँकती है.
अगर कोई समय वाली मशीन हो जिससे घड़ी की सूईयाँ पीछे कर सकते हों तो अपने अतीत के किस क्षण में जाना चाहूँगा? अचानक ही यह बात मन में आती है. जीवन पल पल के छोटे छोटे निणयों पर बना है, ऐसे करो, वैसे करो. पगडँडियाँ हैं, अचानक दोराहे पर पहुँच जाती हैं, इधर जाओ या उधर. बीस साल पहले उस दिन ऐसा करने की बजाय वैसा कर देता तो आज कहाँ होता, क्या कर रहा होता? और अगर आज वापस जा सकूँ तो क्या वह दूसरा रास्ता लेने की हिम्मत होगी? पर क्या इस राह को चुनने पर कहाँ आया था, क्या यह बात याद रहेगी? और अगर याद नहीं रहेगी तो क्या वही पश्चाताप मन को तंग नहीं करेगा कि ऐसा करने की बजाय वैसा करता?
एक बार जाने कहीं पढ़ा था समानान्तर विश्वों के बारे में. एक यही विश्व नहीं जहाँ मैं रह रहा हूँ. और भी दुनिया हैं जहाँ दूसरे मैं रहते हैं, जिन्होंने पगडण्डी के दोराहे पर दूसरा रास्ता चुना था. सोच कर हँसी आती है कि क्या फायदा इस तरह के समानान्तर विश्वों का, अगर जाने किसी विश्व में एक दूसरा मैं इस समय यही सोच रहा हो, "बस चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं"?
एक बार एक पार्टी में बरनादेत मिली थी. लाल वाईन पी थी, पर खाया कुछ नहीं था, सिर कुछ घूम सा रहा था. वह साथ वाली कुर्सी पर बैठी थी. बोली कि वह पेरिस की रहने वाली थी और कार्ल रोजर के दर्शन विचारों में विश्वास करती थी. बोली, "हमारे मन में हमारा पश्चाताप छुपा है, अपनी गलतियों का. अपने आप को हम क्षमा नहीं कर पाते, यही कारण है हमारे दुखों का." मेरे मन में कोई पश्चाताप नहीं, मैंने हँस कर कहा तो उसने भौंहें उठा कर मेरी ओर देखा. थोड़ी देर में ही भूल गया था कि हम कहाँ बैठे थे, आसपास और कौन बैठा था, बस केवल वह थी और मैं था, और उसे मन खोल कर अतीत सुना रहा था.
अगर समय की मशीन हो तो अतीत के किस पल में वापस जाना चाहूँगा? सुखद पल में वापस जाना चाहूँगा या दुख के पल में? किसको गुस्से में क्या कहा था, किसको अनजाने में दुख पहुँचाया था, किससे ईश्या में बोला था? हो सके तो सब गलत शब्द, गलत बातें वापस ले लूँगा या फ़िर इस बार भी क्षण के ज़्वार में अतीत वैसा ही रहेगा, बदल नहीं पायेगा?
वह रात जिस जब पापा को दिल का दौरा पड़ा था, उस रात को वापस जाना चाहूँगा? जिन दिनों जानकी देवी में मैदान में दीदी के साथ घूमते थे और बातें नहीं चुकती थीं उन दिनों में वापस जाना चाहूँगा? जिस दिन मित्र ने आत्महत्या के विचार के बारे में बताया था उस दिन वापस जाना चाहूँगा?
समय एक गोल चक्कर है, अतीत, भविष्य सब बार बार आते हैं, सभी समानान्तर हैं. किसी समानान्तर विश्व में अभी भी दीदी के साथ मैदान में घूम रहा हूँ. एक दूसरे विश्व में पापा से लिपट जाता हूँ. एक अन्य विश्व में मित्र से कहता हूँ कि आज की रात मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा.
"बस ये चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं. सहर भी है रात भी है, दोपहर भी मिली लेकिन, हमने शाम चुनी है. नहीं उदास नहीं." जाने क्यों बार बार यही शब्द मन में बार बार लौट आते हैं.