मोनतान्योला की पहाड़ी टूटे घरों, दीवारों आदि से बनी है. बहुत सा मलबा बोलोनिया की प्राचीन दीवार के तोड़ने से आया था. ऊपर जाने की सीड़ियाँ श्री पिनचियो ने बनायी थीं और पहाड़ी के ऊपर बना एक बाग. नये बाग और भव्य सीड़ियों का उदघाटन करने, सन् १९३८ में इटली के राजा विक्टोरियो ऐमनूएले और तत्कालीन प्रधानमंत्री मुसोलीनी. प्रधानमंत्री की खुली कार पर चलायी गोली एक १४ वर्षीय बालक ने, सड़क के किनारे एक घर की खिड़की से पर मुसोलीनी जी बच गये और बालक को लगी फाँसी शहर के मुख्य चौबारे में, नैपच्यून की मूर्ती के सामने. मुसोलीनी की मौत को अभी ५ साल बाकी थे, उन्हें तो द्वितीय महायुद्ध के बाद इटली के फाशिस्ट शासन से लड़ने वाले स्वतंत्रता सैनानियों के हाथों मरना था.
८ अगस्त चौबारा यानि स्क्वायर ठीक मोनतान्योला के पीछे है और यहाँ पिछले तीन सौ सालों से एक बाजार लगता है. आजकल इस बाजार का दिन है शनिवार. सुबह सुबह दूर दूर से बेचने और खरीदने वाले यहाँ आ जाते हैं. बाजार का अर्थ है शोर, संगीत, विभिन्न रंग और भीड़. करीब दो साल के बाद यहाँ आया हूँ, पर इन दो सालों में इस बाजार में बहुत बदलाव आ गया है. हर तरफ भारतीय, चीनी, पाकिस्तानी, बंगलादेशी लोगों का बोलबाला है. बिकती हुई चीज़े भी बदल गयीं हैं, कहीं अफ्रीकी बाटिक और ढ़ोल, कहीं भारतीय कपड़े, कहीं तुर्की की बनियाने, कहीं चीन से स्वेटर, खिलौने और जूते. एक जगह से, जहाँ कुछ पाकिस्तानी दुकाने थीं, "चुरा के दिल मेरा, गोरिया चली" के संगीत की आवाज़ आ रही थी और उनके करीब ही बंगलादेशी दुकान बंगाली संगीत सुनवा रहे थे. एक पल के लिए लगा मानो दिल्ली के करोलबाग में हूँ.
दुकानों के बीच अचानक एक बोर्ड दिखा जिस पर एक बच्चे की तस्वीर है, हाथ में लम्बी स्थानीय रोटी और नीचे लिखा है "हमारे काम करने वालों की रोटी न छीनिये, कृपया इतालवी चीज़े ही खरीदये". कैसे बचायेंगे ये लोग अपनी रोटी ? जहाँ इतालवी स्टाल पर जो चीज़ ६ या ८ यूरो की मिलती है, पाकिस्तानी, चीनी और भारतीय उसे १ या २ यूरो में बेचते हैं. सवाल केवल रोटी का नहीं, सारा जीवन बिताने का अंदाज़ ही बदल रहा है. इतालवी दुकानदार, छुट्टी और आराम से काम करने में विश्वास करते हैं, जब पूर्व से आये नये दुकानदार सारा दिन दुकान खोले रखते हैं, कोई छुट्टी नहीं लेते, दुकान में ही सो जाते हैं, तो कैसे मुकाबला करेंगे ये लोग ?
अगर आप नैपच्यून की मूर्ती के क्लोसअप देखना चाहें या बोलोनिया के बारे में कुछ और पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कीजिये.
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मैं आज की यह टिप्पणी पूरी संजीदगी के साथ लिख रहा हूँ। कारण यह हो सकता है कि , आप से बीसों , तीसों हज़ार किलोमीटर दूर , एक ऐसा व्यक्ति , जो आप को बिल्कुल नहीं जानता हो , उसने आप की भावनाओं के साथ न्याय करने में कोई हिचक नहीं दिखलाई , तमाम कठिनाइयों के बावजूद । मुझे , इस लेख के दिये लिंक की सारी तस्वीरें , बोलती सी लगीं । सजीव , सगेपन से जोड़ गयीं , ये नेपच्यून की तस्वीरें । मैंने किसी "हक" से तो यह तस्वीरें नहीं माँगी थीं , (न हीं आप के लिये , यह जरूरी ही था। ) पर , ऐसा ही कुछ सोच , बशीर बद्र ने कहीं लिखा है ;
जवाब देंहटाएं"मैकदे में , अजानों को सुन के रोया बहुत ,
लग रहा , इस शराबी को दिल से , खुदा याद है "
पुनः सधन्यवाद , और साभार ,
आप का ,
राजेश
(सुमात्रा)
राजेश जी,
जवाब देंहटाएंशायद लेख से आप ने देखा हो, नेपच्यून की मुर्ती की तस्वीर लेने के बहाने, मैंने एक सुबह बड़े सुंदर ढ़ंग से अपने शहर को घूमने में बितायी. उस पर आप का यह संजीदा, मन छूने वाला संदेश. धन्यवाद तो मुझे आप को देना चाहिये. सुनील
सुनील जी, बधाई इतने अच्छे वर्णन पर और आपके द्वारा खींचे गये चित्र काफ़ी सादे व सुन्दर होते हैं।
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