गुरुवार, अगस्त 04, 2005

बंदर के बच्चे सा शहर

दो दिन के लिए काम से कोरतोना गया. कोरतोना एक छोटा सा शहर है रोम से करीब १०० किलोमीटर उत्तर में. कुछ अजीब सा नाम लगता है मुझे कोरतोना. "कोरता" का इतालवी भाषा में अर्थ है "छोटी". इतालवी भाषा में अगर आप किसी शब्द के साथ "ओना" जोड़ देते हैं तो उसका अर्थ होता है "बड़ी" या "मोटी". उस हिसाब से कोरताना का अर्थ हुआ "छोटी बड़ी" या "छोटी मोटी".

पूरे यूरोप में ऐसे कई शहर हैं जो मध्यम युग (तेहरंवी से सोलहंवी शताब्दी का युग) में पहाड़ियों पर किले की तरह बनाये गये थे ताकि बाहर से कोई हमला न कर सके. इटली में रोम से फ्लोरेंस के रास्ते में सड़के के दोनो तरफ ऐसे कई पुराने शहर हैं जहाँ पर ३००-४०० वर्ष पहले के घर, सड़कें इत्यादि सब कुछ अपने पुराने रुप में अभी भी बिल्कुल वैसे ही हैं. बहुत से ऐसे शहर आज भारत के फतह पुर सीकरी की तरह खाली शहर हैं जहाँ कोई नहीं रहता अब.

कोरतोना भी ऐसा ही शहर है, फर्क सिर्फ इतना है इस शहरवासियों को अपने शहर में देशी विदेशी पर्यटकों को घूमने के लिए बुलाने में सफलता मिली है, इसलिए यह शहर अभी भी आबाद है, खाली नहीं हुआ. जब कार से पहाड़ी के पास पहुँचो तो लगता है जैसे पहाड़ी के ऊपर बने घर पहाड़ी के कोने से कभी भी नीचे लुड़क सकते हैं. जाने क्यों उन घरों को देख कर मन में माँ के पेट से चिपके हुए बंदर के बच्चों की छवि उभर आती है. पहाड़ी के उपर पहुँच कर भी ऐसा ही लगता है, जैसे माँ के पेट से चिपका बच्चा हो जिसकी माँ पेड़ों के शाखाओं में, एक शाखा से दूसरी शाखा पर कूद रही हो. जिधर देखो घरों के बीच में से, पत्तों के बीच में से नीचे की वादी झलकती नजंर आती है.

नेपच्यून की मूर्ती का किस्सा अभी समाप्त नहीं हुआ लगता है. सुमात्रा से राजेश पूछते हैं कि क्या मूर्ती का क्लोसअप नहीं दिखा सकते. मेरे ख्याल से राजेश शायद शिवभक्त्त हैं इसलिए ऐसा पूछ रहे हैं. लगता है इस बार इतवार को इस मूर्ती की कुछ तस्वीरे लेने जाना ही पड़ेगा.

कुछ दिनों से कोई कविता नहीं प्रस्तुत की तो लीजिये आज महादेवी वर्मा की एक कविता की कुछ पंक्त्तियाँ:


"बीन भी हूँ तुम्हारी रागिनी भी हुँ.
नींद थी मेरी अचल निस्पंद कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पंदन में.
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में.
कूल हूँ मैं कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ."

आज की दो तस्वीरे हैं कोरतोना की.

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुनील जी , कृष्णभक्तों को तो वैसे भी किसी बात की कमी नहीं है , इन्टरनेट पर। रही बात शिवभक्तों की , तो , आशा है , उनकी पुकार भी पूरी होगी ही। सो , रविवार तक का इन्तजार रहेगा। महादेवी वर्मा की कविता अच्छी है। अगर पूरी कविता मिले , तो और भी अच्छा होता । (कोरतोना की तस्वीर भी मनमोहक है।)

    -राजेश
    (सुमात्रा)

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  2. राजेश जी, आप की हाज़िरजवाबी की दाद तो देनी ही पड़ेगी. रही बात महादेवी वर्मा की कविता की, किताब में छपी कविता पूरी देने में थोड़ी झिझक सी होती है. अगर किसी कवि को जानता हूँ तो चिंता नहीं होती पर अगर जान पहचान न होता तो सोचता हूथ कि उन्हें बुरा न लगे. हालाँकि महादेवी जी तो अब नहीं हैं पर उनका परिवार तो अवश्य होगा. शुनील

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  3. You are doing a great job Gudda!Your blog is such a delight!!

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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