यह बात मुझे जितेंद्र के अझेल खाने की बात से याद आयी. मैं अक्सर यात्रा पर विभिन्न देशों में जाता हूँ. कई बार ओफिशियल खाना होता है जिसमे साथ में कोई मंत्री जी या मेयर या बड़े अधिकारी होते हैं, जिनके सामने कई बार ऐसी हालत हो जाती है कि न खाते बनता है, न उगलते. ऐसी घटनाओं का सबसे बड़ा फायदा यह है कि फिर जब कहीं गप्प बाजी हो तो मुझे सुनाने के लिए बढ़िया किस्सा मिल जाता है.
जिस दावत के बारे में सुना रहा हूँ वह १९९३ या ९४ की है. मैं विश्व स्वास्थ्य संघ की ओर से चीन मे गया था. देश के दक्षिण पश्चिम के राज्य ग्वीझू में अनशान के झरनों के पास एक छोटे से शहर में थे, जहाँ के मेयर ने हमें शाम की दावत का निमंत्रण दिया. यहाँ एक अल्पसाख्यिँक जनजाति के लोग रहते हैं. दावत के लिए एक छोटा सा नीचा गोल मेज़ था जिसके आसपास हम सब लोग घुटनों पर बैठे. मेरे बाँयीं तरफ मेयर जी थे. खाने का मुख्य भोज था एक मीट वाला सूप जिसे एक बड़े बर्तन में बीच में रखा गया. मेयर जी को मेरी बहुत चिंता थी, हाथ से चबर चबर मीट इत्यादि खा रहे थे, कोई अच्छा टुकड़ा दिखता तो उसे उन्हीं हाथों से उठा कर मेरी प्लेट में रख देते, और मुस्कुरा कर मुझे उसे चखने के लिए कहते और मेरी तरफ देखते रहते जब तक मैं उसे खाता नहीं.
सभी लोग मीट की हड्डियाँ निकाल फैंकने के चैम्पियन थे. मेज़ पर हड्डियाँ एकत्र करने के लिए कोई प्लेट नहीं थी, सभी लोग थोड़ा सा सिर घुमा कर, पीछे की तरफ हड्डियाँ थूक या फैंक रहे थे. पीछे हमारे आसपास कब्रीस्तान सा बन रहा था. जितनी बार मेयर जी पीछे मुड़ कर हड्डी फैंकते, कुछ थूक और हड्डियाँ मेरे जूतों पर गिरतीं.
खुद को बहुत कोसा कि कोई बहाना क्यों नहीं बनाया इस झंझट से बचने के लिए. पर अभी झंझट समाप्त नहीं हुआ था, जब नया पकवान आया. भुनी हूई मधुमक्खियाँ. उन्हो्ने मधुमक्खी को पूरा का पूरा, पँख समेत, ले कर भुना या तला था. देख कर बहुत जी घबराया पर सच कहुँ तो खाने में इतनी अजीब नहीं थीं, मुँह मे रखते ही घुल सी जाती थीं. दो तीन ही खायीं. मेरे साथ चीन स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से सरकारी अनुवादक थे, उन्होंने ही मेरी जान बचायी, कहा कि हमें देर हो रही है और मेयर जी के चुंगल से निकाल लाये. वह स्वयं भी बेजिंग के रहने वाले थे और शायद जनजातियों के यहाँ खाये जाने वाले ऐसे पकवानों के आदि नहीं थे. आज भी उस दावत के बारे में सोचूँ तो भूख गुम हो जाती है.
आज की तस्वीरें दक्षिण पश्चिम चीन की जनजातियों की हैं.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पिछले तीन-चार सौ वर्षों को " लिखाई की दुनिया " कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय में मानव इतिहास में पहली बार लिखने-पढ़ने की क्षमता ...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया ...
-
हमारे घर में एक छोटा सा बाग है, मैं उसे रुमाली बाग कहता हूँ, क्योंकि वो छोटे से रुमाल जैसा है। उसमें एक झूला है, बाहर की सड़क की ओर पीठ किये,...
-
हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई ...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
गृत्समद आश्रम के प्रमुख ऋषि विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे, जब उन्हें समाचार मिला कि उनसे मिलने उनके बचपन के मित्र विश्वामित्र आश्रम के ऋषि ग...
भुनी हूई मधुमक्खियाँ
जवाब देंहटाएंबड़े दिलेर हैं आप। तीन खा गए? :)
अरे बंधु जब खाने बैठ ही गए थे तो जैसी तीन वैसी तीस। चलो तीसमारखां न सही तीनमारखां सही। :)
जवाब देंहटाएंमसिजीवी