चिट्ठे लिखना पढ़ना तो जैसे एक नशा है, एक बार यह नशा चढ़ गया तो बस कुछ अन्य न दिखता है न करते बनता है. ऐसा कुछ कुछ मेरा विचार बन रहा है.
कल मेरे चिट्ठे पर नारद जी यानि जीतेंद्र की स्नेहपूर्ण टिप्पड़ीं थी कि लगातार नियमित रुप से लिखने में, बीच में छुट्टी मार लेना अच्छी बात नहीं. यह छुट्टी मैंने अपनी मरजी से नहीं मारी थी, ब्लोगर सोफ्टवेयर की कुछ कठिनाई थी इसलिए लिखा संदेश शाम तक नहीं चढ़ा पाया. सोचा, बच्चू अभी भी संभ्हल जाओ. बस एक दिन अपना चिट्ठा औरों को न दिखा पाने से इतनी छटपटाहट हुई है, अगर यह साला सोफ्टवैयर ही ठप्प हो गया तो अपन कहाँ जायेंगे ?
चिट्ठा लिखना ही नहीं, पढ़ना भी एक नशा है. पर कैसे मालूम चले कि किसने ताजा कुछ लिखा है ? पिछले कुछ दिनों से चिट्ठा विश्व पर कुछ गड़बड़ है क्योंकि जो नये चिट्ठे लिखे गये हैं उनकी सूचना वाला खाना खाली दिखता है. जितेंद्र ने सलाह दी कि उन्हे अक्षरग्राम के नारद पर देखिये. नारद को देखा,बहुत बढ़िया लगा. सभी नये चिट्ठे वहाँ दिखते हैं.
पर बात समय की है. परिवारिक जिम्मेदारियाँ, कुत्ते को घुमाने और काम पर जाने के बाद मेरे पास थोड़ा सा ही समय बचता है जिसे मैं अपना कह सकता हूँ. पहले, सुबह जल्दी उठ कर इस समय में ध्यान करता था, कुछ पढ़ता लिखता था, अपने वेबपृष्ठ यानि कल्पना का कुछ काम करता था.
अब, सुबह उठते ही चाय बनाते समय सोचता हूँ आज क्या लिखूँगा ? फिर प्याला लिए, औरों के चिट्ठे पढ़ने बैठ जाता हूँ, एक दो टिप्पड़ियाँ लिख देता हूँ. तब तक अपने चिट्ठे में क्या लिखना है इसका कुछ विचार आ जाता है. जब तक लिखना समाप्त होता है, काम पर जाने का समय हो जाता है और रोज की भागमभाग शुरु हो जाती है जो फिर रात को ही सोते समय खत्म होगी. आप ही कहिये, यह भी कोई जिंदगी है क्या ?
आज की तस्वीरें देबाशीष, जितेंद्र, रमण, अनूप आदि उन सब लोगों के नाम जो मुझ जैसे अकृतज्ञ चिट्ठाकारों का जीवन आसान और दिलचस्प बनाने में अपना समय देते हैं.
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बहुत-बहुत धन्यवाद खूबसूरत फूलों के लिये।
जवाब देंहटाएंचिट्ठे पढ़ने का एक और तरीका है - http://groups.google.com/group/charcha - डाक से मिलते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंअच्छा नशा है । भगवान करे कि ऐसा नशा लाखों-करोणों को लगे ।
जवाब देंहटाएंYou can also check http://www.hindiblogs.com.
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