रविवार, अक्टूबर 02, 2005

ट्यूबालय

इटली में "एरिया" शब्द का अर्थ है "का घर" और इसको मिला कर दुकानों से सम्बंधित शब्द बनते हैं जैसे पित्जेरिया (Pizzeria) यानि जहाँ पित्ज़ा (Pizza) मिलता है. ऐसा ही हमारा हिंदी का शब्द है "आलय", पर क्या आप ने कभी ट्यूबालय का नाम सुना है ? यानि ट्यूब जैसा घर ? यहाँ ट्यूब का अर्थ लंदन की मेट्रो है और इस बार मेट्रो से इतनी यात्रांए कीं, कि लगा मानो ट्यूब में ही घर बन गया हो.

बार बार एक ही शहर जाने से सबसे बुरी बात यह होती है कि आप सोचें, यहाँ कितनी बार आ चुका हूँ, अब तो यह शहर वही जाना पहचाना है और आसपास जो हो रहा है उसे पर्यटक की उत्सुकता से न देखें. लंदन के बारे में मुझे ऐसा ही लगता था. हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही, रेल में या ट्यूब में कोई किताब या पत्रिका खोल कर बैठ जाता, न खिड़की से बाहर देखता न ट्यूब में बैठे अन्य यात्रियों को. हालाँकि भीड़ के समय ट्यूब में लोग आप के शरीर के हर भाग को छूते हों और आप की साँसों से साँसे मिला रहे हों, ट्यूब शिष्टाचार कहता है कि आप किसी से न नजर मिलाईये न, किसी को घूरिये. यानि भीड़ में भी अकेले.
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हेमरस्मिथ के ट्यूब स्टेशन से निकले तो तेज बारिश देख कर थम गये. इतनी तेज कि लंदन की नहीं, दिल्ली की बारिश लग रही थी. साथ में छतरी नहीं थी पर होटल अधिक दूर नहीं था इसलिए बैग से सिर को ढ़का और भागे. किंगस् स्टीर्ट को पार करते समय अचानक सामने एक लड़की आ गयी. ऊँचा कद, काले घुँघराले बाल, लम्बा सुंदर चेहरा. बारिश में एकदम भीगी हुई वह एक पहिये वाली अटैची खींच रही थी. बोली, "मेरी मदद कीजिये." जब कोई भीख माँगता है तो जैसे अकसर होता है, हम लोग रुके नहीं, दुसरी तरफ मुड़ कर उससे कुछ दूर हो कर निकलने की कोशिश की. चिल्ला पड़ी, "चले जाओ, मुझसे दूर चले जाओ." हम लोग रुके नहीं, तेज बारिश में भागे जा रहे थे. पीछे से उस लड़की की आवाज आ रही थी. वह जोर जोर से रोने लगी थी. "हे भगवान, कोई मेरी मदद करो." एक पल के लिए मुड़ कर देखा. चौराहे के पास, वह जमीन पर बैठ गयी थी और जोर जोर से रो रही थी. थोड़ी देर में बारिश और ट्रेफिक के शोर में उसकी आवाज सुनायी देनी बंद हो गयी और हमारा होटल आ गया. मन में लग रहा था कि रुक कर उसकी मदद करनी चाहिये थी. शायद वह आम भिखारन नहीं थी, मुसीबत की मारी कोई थी.

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ट्यूब में यह कविता पढ़ी, कुर्दी लेखिका चमोन हर्दी कीः



मैं उनकी बातें सुन सकती हूँ, अपने बच्चों की
बढ़िया अंग्रेज़ी और टूटी फूटी कुर्दी.

और जब उनकी किसी बात से सहमत नहीं होती
वह एक दुसरे को हौंसला देने के लिए कहते हैं
माँ की चिंता न करो, वह तो कुर्दिस्तानी है.

क्या मैं अपने ही घर में विदेशी बन जाऊँगी ?


आज की तस्वीरों में लंदन में बकिंगम पैलेस के पास की मूर्तियाँ

1 टिप्पणी:

  1. ये अच्छी बात नहीँ की आपने सुनील दीपक जी जो चौराहे पर कन्या राशि को असहाय छो आये

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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