मंगलवार, नवंबर 29, 2005

सही भाषा

हिंदी में कौन सा शब्द कैसे लिखें यह कौन निर्धारित करता है ? क्योंकि देश के विभिन्न भागों में हिंदी विभिन्न तरीके से बोली जाती है और हिंदी भाषा एक "फोनेटिक" भाषा है, जैसे बोली जायी वैसे ही लिखी जाये. न इसमें फ्राँसिसी और इतालवी भाषाओं जैसे कोई खामोश स्वर हैं, जो लिखे जायें पर बोले न जायें. न ही इसमें अंग्रेजी जैसे स्वर हैं जिन्हें एक शब्द में एक तरीके से बोला जाये और दूसरे शब्द में दूसरे तरीके से.

पिछले सप्ताह जब अपने पिता की १९५६ में ज्ञानोदय में छपी कहानी को क्मप्यूटर पर लिख रहा था तो देखा कि हर जगह "पहले" को "पहिले" लिखा था तो अचानक मेरठ की याद आ गयी, जहाँ कई लोग "मत करो" को "मति करो" कहते थे. सोचा कि यह उसी कारण से है कि देश के विभिन्न भागों में एक शब्द को अलग अलग तरह से बोलते हैं. इसमें सही गलत की बात नहीं.

हाँ इसमें मिलते जुलते स्वर अवश्य हैं जिनकी वजह से एक शब्द को आप विभिन्न तरीके से लिख सकते हैं जैसे "जायें" और "जाएँ", पर ऐसी स्थिति में इनमें शब्द को लिखने का एक प्रचलित तरीका हो सकता है जिसे हम सही मान सकते हैं. अतुल की टिप्पणीं पढ़ी तो यह सब सोचा. अतुल ने लिखा है कि मैं "टिप्पणीं" को "टिप्पड़ीं" क्यों लिखता हूँ ?

मैं तुरंत हिंदी का फादर कामिल बुल्के का शब्दकोष निकाल कर लाया. उसमें "टिप्पणीं" ही लिखा था. अच्छा, दूसरे शब्दकोष में देखते हैं, यह सोच कर मैं एलाईड का हिंदी शब्दकोष देखने लगा. उसमें भी टिप्पणीं ही लिखा था. फिर भी मैंने हार नहीं मानी. पुरानी सब किताबें घर के बेसमेंट के कमरे में बंद हैं, वहाँ से एक पुराना शब्दकोष ढ़ूँढ़ कर लाया, डा. भार्गव का अंग्रेजी शब्दकोष. उसमें भी टिप्पणीं ही पाया. आखिर हार माननी ही पड़ी. हो सकता है कि कुछ शब्द हिंदी में दो तरीकों से लिख सकते हैं पर टिप्पणीं उन शब्दों में नहीं है !

इसलिए अतुल को धन्यवाद. आगे से मेरी "टिप्पणियाँ" ही होगीं, "टिप्पड़ियाँ" नहीं.

एक सवाल अब भी है, क्या भारत में कोई ऐसी संस्था है जो यह निर्धारित करे कि हिंदी का कौन सा शब्द कैसे लिखना सही या गलत है, जिसकी सलाह मतभेद होने पर ली जा सके ?
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कई दिनों से चिट्ठा लिखने के कुछ विषय मेरे दिमाग में घूम रहे हैं और हर रोज रात को सोचता हूँ कि सुबह इस बात या उस बात पर लिखूँगा पर सुबह जब लिखने बैठता हूँ तो कुछ और ही बात लिखी जाती है. यानि कि लिखने में अनुशासन नहीं है !

आज की तस्वीरों का शीर्षक है चेहरे.



5 टिप्‍पणियां:

  1. offoo comment use kar lete hain, ok ! :)
    Dekhiye bhai grammar nazi type logon per maat jayiye. Waise hum to kuch nahi bolenge kyonki hum M.P. wale hindi kuch gadbad hi likhte hain.

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  2. 'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी', यह कहावत आज भी उतनी ही सही है जितनी पहले कभी थी। भारत में हिन्‍दी की ब्रजभाषा, अवधी आदि विभिन्‍न क्षेत्रिय बोलियाँ संख्‍या में इतनी ज़्यादा हैं कि अगर सब अपने-अपने उच्‍चारण के हिसाब से लिखने लगे तो नब्‍बे फ़ीसदी हिन्‍दी भाषी ही लिखी हुई हिन्‍दी नहीं समझ पाएँगे, फिर दूसरों की बात तो छोडिये। आपकी क्‍या राय है?

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  3. काली भाई, जब "कमेंट" ही लिखना है और रोमन लिपि में ही लिखना है तो फिर हिन्दी लिखना ही कौन सा ज़रूरी है? अँग्रेज़ी में, लिखना भी अधिक आसान है, और पढ़ना भी। मेरा यह मानना है कि यदि हम गिने चुने लोग मेहनत कर के, ढ़र्रे से हट कर, हिन्दी लिखने में जुटे हुए हैं तो कोशिश करें सही लिखने की। अँग्रेज़ी में भी उल्टा-सीधा लिखेंगे तो कौन पढ़ेगा, फिर सही हिन्दी (शुद्ध नहीं, सही) से परहेज़ क्यों? मेरे विचार में हम शब्दावली कोई भी प्रयोग करें (अँग्रेज़ी, देसी, उर्दू, बिहारी, कनपुरिया), पर वर्तनी सही प्रयोग करें। "ड़" के नीचे की बिन्दी खोजें, "ङ" न लिखें। "कि" और "की" में अन्तर करें।
    सुनील भाई, "टिप्पणी" पर टिप्पणी मैंने की थी, अतुल ने नहीं।

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  4. देख कर अच्छा लगा कि किसी को तो परवाह है हिंदी में शुद्ध वर्तनी की...कालीचरण जी, मध्यप्रदेशवासियों की ही हिंदी मानक मानी जाती है। आपको तो अपनी हिंदी का गर्व होना चाहिए, न कि अपनी कमजोर भाषा पर पर्दा डालना चाहिए।

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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