शुक्रवार, अप्रैल 28, 2006

पैर तुम्हारे, आलूबुखारे

चीनी, मंदारिन भाषा में शायद यही नाम है मेरा, "पैर तुम्हारे आलूबुखारे". चित्रमय भाषाओं, यानि वह भाषाएँ जिनकी लिपी चित्रों पर आधारित हैं, में दिक्कत तब आती है जब आप को कुछ ऐसा लिखना पड़े जिसका शब्द आप की भाषा में न हो. हिंदी जैसी भाषा जो चित्रों यानि शब्दों पर नहीं बल्कि अक्षरों से लिखी जाती है, उनके कोई भी नया शब्द हो उसे लिखने में कोई मुश्किल नहीं होती.

चित्रों पर आधारित भाषाओं में अक्षर नहीं होते, शब्द होते हैं. जब कोई नया शब्द आये तो आप को सबसे पहले उससे मिलते जुलते ध्वनी वाले शब्द खोजने पड़ते हैं जिनको मिला कर आप वह नया शब्द बना सकते हैं. मेरे नाम को ही लीजिए, सुनील. मंदारिन में लिखने के लिए मैं इससे मिलते जुलते शब्द खोजने लगा तो मुझे मिलेः

1. "ज़ू" यानि पैर - शब्दचित्र को ध्यान से देखिए, थोड़ी सी कल्पना से देखें तो इसमें आप को आदमी का सिर, हाथ और नीचे, लम्बा पैर दिखाई देगा.

2. "नि" यानि तुम, तुम्हारे - इसके शब्दचित्र में एक व्यक्ति खड़ा है तराजू के सामने जिस पर बैठा है एक और व्यक्ति

3. "लि" यानि आलूबुखारे का पेड़ + यह शब्दचित्र दो निशानों को मिला कर बना है, ऊपर है पेड़ का निशान और नीचे है बच्चे का निशान, यानि वह पेड़ जो बच्चों को पसंद है, यानि आलूबुखारा

और सबको मिला कर पढ़ियेः ज़ूनिलि यानि सुनील

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एक बार चीनी में अपना नाम लिखने लगा तो सोचा क्यों न यही काम मिस्र (Egypt) की पुरानी चित्रों पर आधारित भाषा (hieroglyphs) में भी किया जाये. मिस्र की यह भाषा पुराने पिरामिडों के साथ जुड़ी हुई है. इसमें वस्तुओं के चित्र किसी वस्तु की बात भी कर सकते हैं और उससे जुड़े विचारों की भी.

पहले प्रस्तुत है "देस" यानि चाकू. चित्र देख कर अर्थ पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होती.

अब बारी है "परवेर" की, यानि कि पूजा स्थल या छोटा मंदिर, यह भी आसानी से पहचाना जाता है.

यह है "आ" यानि द्वार, इसे पहचानने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है पर सोचिये कि एक दरवाजा जमीन पर रखा है तो पहचाना जायेगा. इसका स्वर और अर्थ हिंदी से मिलते हैं.

अंत में देखिये "का" यानि गुस्से में भरा बैल, नंदी. "का" को शाँत खड़े बैल से भी बनाया जा सकता है पर मुझे गुस्से से सिर मारता बैल अधिक अच्छा लगा.

मिस्र की भाषा लिखने वालों ने चीनी भाषा की कठिनाई से निकलने का तरीका भी ढ़ूँढ लिया था. अगर चित्रों को एक वर्गाकार रेखा की परिधी में बंद कर देगें तो हर शब्द का पहला स्वर अक्षर का काम करेगा. यानि ऊपर लिखे चित्रशब्दों को मिला दें और डिब्बे में बंद कर दें तो बनेगा "दपाक". दीपक ठीक से नहीं बना पाया, क्योंकि मेरा मिस्र की भाषा का ज्ञान कमजोर है!

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कल सुबह मुझे मिस्र की राजधानी कैरो जाना है इसलिए कुछ दिनों के लिए चिट्ठा लिखने से छुट्टी.

5 टिप्‍पणियां:

  1. मिस्र की भाषा लिखने वालों ने चीनी भाषा की कठिनाई से निकलने का तरीका भी ढ़ूँढ लिया था.

    क्या प्राचीन मिस्र की सभ्यता तथा भाषा चीनी सभ्यता तथा भाषा से पहले नहीं आई? पक्का विश्वास के साथ तो नहीं कह सकता परन्तु अभी तक जितना पढ़ा और जाना है उसके अनुसार प्राचीनतम चीनी सभ्यता लगभग 2000 वर्ष ईसा पूर्व से पहले नहीं थी और प्राचीन मिस्र की सभ्यता के प्रमाण तो 3000 वर्ष ईसा पूर्व के भी मिले हैं!!

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  2. मेरे ख्याल में पुराने मिस्र की चित्रशब्द भाषा और चीन की चित्रशब्द भाषा में आपस में कोई सम्बंध नहीं था और मैं यह नहीं कहना चाहता था कि मिस्र की भाषा चीनी भाषा से प्रभावित हुआ. मेरा कहने का अभिप्राय केवल यह है कि चीनी में चित्रशब्दों का का अक्षरों के रुप में प्रयोग नहीं कर सकते जबकि मिस्र में उन्होने इसका तरीका निकाल लिया था.

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  3. अच्छा, "足你李" जी हो गया आपका नाम!!
    (तो, मैं भी इस तरह लिखना पड़ेगा.)
    मज़े की बात यह है कि जहाँ आप लोगों का नाम लिखने के लिए मिलते जुलते ध्वनि वाले शब्दों का तलाश होता है, वहाँ जब हमारा नाम सीधे सामान शब्दों से लिखाया तो जाता है, मगर तभी ध्वनि की नज़र से तो कुछ गड़बड़ हो जाता है.
    वैसे मेरा नाम "मत्सु" भी मंदारिन में हो जाता है "सोंग", शायद ऐसा नाम सुनकर अपना ही समझूँगा नहीं...

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  4. सुनील जी,

    बहुत ज्ञानवर्धक लेख है.

    सच, मैं तो सोचता था कि ये चीनी, जापानी इत्यादि भाषा जाने कैसे समझते हैं लोग, मगर आपने तो एकदम सरल कर के आगे बढने का रास्ता बता दिया.

    अब कम से कम अपने दिमाग के घोड़े दौडा तो सकेंगे ऐसा कुछ भी लिखा हुआ देख कर.

    याने अब काला चित्र डायनासौर बराबर तो नहीं है, मगर हाँ भैंस जितना छोटा भी नहीं हुआ है :) .

    उम्मीद है, (समय मिलने पर) आगे भी ऐसे ही ज्ञान बढाते रहेंगे (हमारा).

    धन्यवाद.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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