सुबह से बारिश आ रही थी. जब काम से निकला तो कुछ थम गयी लगती थी. सोचा कि घर जाने से पहले सुपर मार्किट जा कर कुछ सामान खरीदा जाये क्योकि फ्रिज में खाने के सामान की कमी हो रही थी. श्रीमति जी जाने से पहले जो विभिन्न पकवान बना कर छोड़ गयीं थी वे भी समाप्त होने को आ रहे थे. गाड़ी पार्किंग में लगायी और सुपर मार्किट जाने के लिए पेड़ों के बीच में से जा रहे एक रास्ते पर था तो देखा पेड़ की एक डाल पानी के जोर से कुछ नीचे सी आ गयी थी. उसे हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो ठिठक कर रुक गया. डाल पर लगे सफेद फ़ूलों से तेज खुशबू आ रही थी.
कभी कभी ऐसा होता है कि एक गँध से अचानक ढ़ेर सारी यादें अचानक बादलों की तरह घुमड़ कर छा जाती हैं. उन फ़ूलों की खुशबू से कुछ ऐसा ही हुआ. लगा राजेंद्र नगर के अपने उस घर में खड़ा हूँ जहाँ कोने में बेला और रात की रानी के पेड़ लगे थे. गर्मियों में रात में उनके पास चारपाई लगा कर सोने पर उनकी मनमोहक खुशबू चारों तरफ छा जाती थी. फ़िर मन में छवि उभरी हैदराबाद की, जब करीब पाँच बरस का था और पापा माँ के जूड़े में बेला के फ़ूलों की लड़ी बाँध रहे थे.
पल में ही सारी थकान दूर हो गयी. तब से गुनगुना रहा हूँ
मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को
बेला महका रे महका आधी रात को
रोस्टेड लहसुन और सन ड्राईड टमाटर, बेज़िल लीव्स, जैतून के तेल में बना पास्ता और चिकन उस पर ढेर सारा चीज़ और अल्फ़्रेडो सॉस साथ में एक बोतल वाईन की! वाह इटैलियन खाना लज़्ज़तदार!! अगर मैं इटली में होता तो बस खाता ही रहता.
जवाब देंहटाएंहाँ , कई बार ऐसा होता है. यादें बहुत शैतान होती हैं, कब घेर लें पता ही नहीं चलता.
जवाब देंहटाएंइंसान के पास जो थोड़ी-सी दौलत जीवन भर बनी रहती है, उनमें 'स्मृतियाँ' सबसे क़ीमती हैं। यह अनमोल सौगात इंसान को न जाने कब भूली-बिसरी यादों के समुन्दर में ले जाए, कहा नहीं जा सकता। इसके लिए बस एक उत्प्रेरक (कैटलिस्ट) चाहिए।
जवाब देंहटाएंवाह, सुनील जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खुब लिखते हैं आप.
यह यादों का आक्रमण ही ऎसा है कि अनायास ही हो जाता है.
समीर लाल